भरतपुर और धौलपुर जिलों के जाटों को केंद्र में आरक्षण देने की मांग को लेकर 17 जनवरी से चल रहा आंदोलन अब भी जारी है। सरकार से वार्ता विफल होने के बाद जाट नेताओं ने 22 जनवरी तक अल्टीमेटम दिया था, लेकिन इस दिन भी कोई नतीजा नहीं निकला। अल्टीमेटम के चार दिन बाद भी आंदोलन गांधीवादी तरीके से चल रहा है। जाट आरक्षण संघर्ष समिति के संयोजक नेम सिंह फौजदार ने दिल्ली-मुंबई रेलवे ट्रैक और नेशनल-स्टेट हाइवे को जाम करने की चेतावनी दी है। उन्होंने कहा है कि अगर उनकी मांगे नहीं मानी जाती हैं तो वे चक्का जाम करने को मजबूर होंगे।
आंदोलन में शामिल जाट समाज के लोग लगातार बढ़ रहे हैं। जयचोली गांव में आयोजित महापड़ाव में भी रोजाना बड़ी संख्या में लोग शामिल हो रहे हैं। जानकारी के मुताबिक, आगामी दिनों में जिले के जगह-जगह स्थानों पर महापड़ाव डाले जाएंगे।
आंदोलन को नई गति देने के लिए जाट नेताओं ने पूर्व कैबिनेट मंत्री विश्वेंद्र सिंह से मुलाकात की है। हालांकि, इस मुलाकात को लेकर किसी भी जाट नेता ने आधिकारिक रूप से कोई जानकारी नहीं दी है। लेकिन माना जा रहा है कि इस मुलाकात से आंदोलन को नई दिशा मिलेगी।
जाट आरक्षण आंदोलन का इतिहास:
भरतपुर और धौलपुर जिलों के जाटों को केंद्र में आरक्षण देने की मांग 1998 से चली आ रही है। 2013 में केंद्र की मनमोहन सरकार ने भरतपुर और धौलपुर जिलों के साथ अन्य 9 राज्यों के जाटों को केंद्र में ओबीसी का आरक्षण दिया था। लेकिन 2014 में केंद्र में भाजपा की सरकार बनी तो सुप्रीम कोर्ट का सहारा लेकर 10 अगस्त 2015 को भरतपुर-धौलपुर के जाटों का केंद्र और राज्य में ओबीसी आरक्षण खत्म कर दिया गया। लंबी लड़ाई लड़ने के बाद 23 अगस्त 2017 को पूर्ववर्ती वसुंधरा राजे ने दोनों जिलों के जाटों को ओबीसी में आरक्षण दिया गया। लेकिन केंद्र ने यह आरक्षण नहीं दिया।
आगामी संभावनाएं:
जाट आरक्षण आंदोलन का अगला कदम क्या होगा यह अभी स्पष्ट नहीं है। लेकिन जाट नेताओं की चेतावनी को देखते हुए माना जा रहा है कि आंदोलन तेज होने की संभावना है। अगर सरकार उनकी मांगें नहीं मानती है तो वे चक्का जाम कर सकते हैं।