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उर्स में 6 दिन खुलता है सूफी परंपराओं का प्रतीक जन्नती दरवाजा

उर्स में 6 दिन खुलता है सूफी परंपराओं  का प्रतीक जन्नती दरवाजा

शोभना शर्मा, अजमेर।  ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती, जिन्हें गरीब नवाज के नाम से भी जाना जाता है, के उर्स का आयोजन हर साल सूफी परंपराओं और धार्मिक श्रद्धा के साथ किया जाता है। यह उर्स दुनिया भर से हजारों जायरीन को अजमेर शरीफ की दरगाह पर खींच लाता है। उर्स के दौरान जन्नती दरवाजा खोलने की परंपरा और इससे जुड़ी आस्था जायरीन के बीच खास आकर्षण का केंद्र होती है।

जन्नती दरवाजा और इसका महत्व

जन्नती दरवाजा, ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह का एक ऐसा विशेष स्थान है, जो सूफी परंपराओं और आस्था का प्रतीक है। साल में इसे केवल चार मौकों पर खोला जाता है। इनमें उर्स का समय सबसे महत्वपूर्ण है, जब यह दरवाजा छह दिनों तक खुला रहता है। इस दौरान जायरीन बड़ी संख्या में यहां मन्नत का धागा बांधते हैं और अपनी मनोकामनाओं के पूरे होने की प्रार्थना करते हैं।

इसके अलावा, ईद-उल-फितर, बकरा ईद और ख्वाजा साहब के गुरु हजरत उस्मान हारूनी के सालाना उर्स के मौके पर भी जन्नती दरवाजा खोला जाता है। इस दरवाजे को पार करना जायरीन के लिए विशेष महत्व रखता है, क्योंकि यह उनकी आस्था के अनुसार जन्नत का दरवाजा है।

उर्स की रस्मों की शुरुआत

उर्स की विधिवत शुरुआत इस्लामी कैलेंडर के आधार पर 1 या 2 जनवरी को चांद दिखने पर होती है। हालांकि, इसके अनौपचारिक आयोजन 28 दिसंबर से झंडा चढ़ाने की रस्म के साथ शुरू हो जाते हैं।

28 दिसंबर:
सुबह आस्ताना शरीफ के खुलने के साथ उर्स की रस्में प्रारंभ हो जाती हैं। इसी दिन मजार शरीफ की खिदमत बंद कर दी जाती है, जो 5 रजब तक रात की नमाज के बाद जारी रहती है।

31 दिसंबर:
मजार शरीफ से संदल उतारने की रस्म अदायगी होती है।

1 जनवरी:
सुबह जन्नती दरवाजा खोला जाता है। इस दिन शाम को बाबा कुतुब से आने वाली छड़ियों का पारंपरिक स्वागत किया जाता है।

6 रजब:
यह दिन उर्स के सबसे महत्वपूर्ण दिनों में से एक है। सुबह 9 बजे से अपराह्न 4 बजे तक आस्ताना केवल खुद्दाम-ए-ख्वाजा के लिए खुला रहता है। इस दौरान विशेष प्रार्थनाएं की जाती हैं, जिसमें देश, दुनिया और इंसानियत के लिए दुआ की जाती है।

जायरीन की आस्था और मन्नत का धागा

जन्नती दरवाजे पर मन्नत का धागा बांधने की परंपरा साल भर चलती रहती है। लेकिन उर्स के दौरान इस दरवाजे पर जायरीन की भीड़ बहुत अधिक होती है। लोग अपनी मन्नतों के साथ यहां आते हैं और दरगाह के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं।

जायरीन सिर पर मखमली चादर और फूलों की टोकरी लेकर अपनी बारी का इंतजार करते हैं। जन्नती दरवाजा खुलने के बाद इस दरगाह पर जियारत करना एक खास अनुभव माना जाता है।

6 रजब और छठी की फातिहा

6 रजब के दिन दरगाह पर खास फातिहा का आयोजन होता है। सुबह 10 से 12 बजे तक होने वाली इस फातिहा में हजारों जायरीन हिस्सा लेते हैं। इस मौके पर खुद्दाम-ए-ख्वाजा मजार शरीफ को गुस्ल देते हैं और दुआ करते हैं।

छठी की फातिहा के बाद बड़े कुल की रस्म 9 रजब को पूरी की जाती है। यह रस्म उर्स के समापन से पहले की सबसे महत्वपूर्ण परंपरा है।

उर्स का समापन

10 या 11 जनवरी को उर्स का समापन हो जाता है। समापन से पहले खुद्दाम-ए-ख्वाजा की दस्तारबंदी की जाती है और सलातो-सलाम के साथ अंतिम प्रार्थना की जाती है।

सूफी परंपराओं और वैश्विक आस्था का प्रतीक

ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का उर्स न केवल सूफी परंपराओं का एक अनूठा उदाहरण है, बल्कि यह भारत और दुनिया भर से आने वाले जायरीन को एकजुट करता है। इस आयोजन में केवल मुस्लिम ही नहीं, बल्कि अन्य धर्मों के लोग भी हिस्सा लेते हैं।

यह उर्स दुनिया को यह संदेश देता है कि सूफी संतों की शिक्षा और आस्था मानवता और सहिष्णुता पर आधारित है। जन्नती दरवाजा, जायरीन की श्रद्धा और उनकी मन्नतों का प्रतीक बनकर हर साल लाखों लोगों को प्रेरित करता है।

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