शोभना शर्मा। जन्माष्टमी, भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का पावन पर्व, हर साल भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। लेकिन इस वर्ष 2025 में इसकी सही तारीख को लेकर भारी असमंजस बना हुआ है। वजह यह है कि इस बार 15 और 16 अगस्त दोनों दिनों में अष्टमी तिथि मध्यरात्रि में पूर्ण रूप से नहीं लग रही है, जिसके चलते श्रद्धालु दुविधा में हैं कि व्रत किस दिन रखा जाए।
जन्माष्टमी की धार्मिक मान्यता
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जन्माष्टमी के पर्व के दो स्वरूप होते हैं — पहला श्रीकृष्ण जन्म व्रत और दूसरा श्रीकृष्ण जन्मोत्सव व्रत जिसे नंदोत्सव भी कहा जाता है। परंपरा के मुताबिक, भगवान श्रीकृष्ण का जन्म निशीथ काल (मध्यरात्रि) में भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर हुआ था। इसीलिए व्रत उसी दिन रखा जाता है जब मध्यरात्रि में अष्टमी तिथि लगती हो।
कथा के अनुसार, जन्म के बाद वसुदेवजी, श्रीकृष्ण को कंस की कैद से मुक्त कर नंदगांव ले गए, जहां अगले दिन नंदोत्सव के रूप में उनके आगमन का उत्सव मनाया गया।
2025 में तिथि का पेंच
इस वर्ष अष्टमी तिथि का आरंभ 15 अगस्त की रात 1 बजकर 6 मिनट पर हो रहा है, यानी यह समय निशीथ काल बीतने के बाद का है। वहीं, अष्टमी तिथि का समापन 16 अगस्त की रात 10 बजकर 36 मिनट पर हो जाएगा। इसका अर्थ है कि 15 और 16 अगस्त दोनों दिनों में मध्यरात्रि में अष्टमी नहीं होगी।
शास्त्रसम्मत मान्यता के अनुसार, जब अष्टमी तिथि मध्यरात्रि में न हो, तो अष्टमी वृद्धा नवमी तिथि को व्रत रखा जाता है। इसके साथ ही 16 अगस्त को चंद्रोदय व्यापिनी अष्टमी तिथि भी रहेगी, जो व्रत पूजन के लिए शुभ मानी गई है।
16 अगस्त का मुहूर्त
16 अगस्त को व्रत रखने वाले श्रद्धालु निशीथ काल में चंद्रदर्शन के साथ पूजन करेंगे। यह समय रात 11 बजकर 36 मिनट से 12 बजकर 56 मिनट तक रहेगा। इस दौरान भगवान श्रीकृष्ण का पंचामृत अभिषेक, भजन-कीर्तन और रात्रि जागरण करने की परंपरा है।
मथुरा-वृंदावन का उत्सव
भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि मथुरा और लीलाभूमि वृंदावन में भी 16 अगस्त को ही जन्माष्टमी का मुख्य पूजन और भव्य आयोजन होगा। मंदिरों में मध्यरात्रि को श्रीकृष्ण के जन्म का दृश्य सजाया जाएगा, शृंगार दर्शन होंगे और भक्तगण रात्रि भर कीर्तन में लीन रहेंगे।
वहीं, नंदोत्सव मानने वाले भक्त 17 अगस्त को प्रातः स्नान-ध्यान कर, विशेष पूजन और प्रसाद वितरण करेंगे। यह दिन नंदगांव में श्रीकृष्ण के आगमन की खुशी का प्रतीक है, जिसे पूरे उत्साह से मनाया जाता है।
जन्माष्टमी व्रत के नियम और पूजन विधि
जन्माष्टमी व्रत के दिन भगवान श्रीकृष्ण के साथ माता देवकी का भी पूजन करना चाहिए। पूजन स्थल पर प्रसूतिका गृह और मंडप का निर्माण करना शुभ होता है।
भोग में पंचामृत, माखन-मिश्री, खीरा और धनिया की पंजरी अवश्य अर्पित की जाती है। पूजन पंचोपचार विधि से किया जाता है और रातभर जागरण करते हुए श्रीकृष्ण नाम का कीर्तन, भजन और लीला कथाओं का पाठ किया जाता है। व्रतधारी को व्रत के दौरान संयम, स्वच्छता और सच्चे मन से भक्ति का पालन करना चाहिए।


