मनीषा शर्मा। जयपुर हेरिटेज नगर निगम की मेयर मुनेश गुर्जर और उनके पति सुशील गुर्जर के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में सोमवार को राजस्थान हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को दो सप्ताह के भीतर चालान पेश करने के लिए मौखिक निर्देश दिए हैं। इसके साथ ही, अभियोजन की मंजूरी को रिकार्ड पर लेते हुए सुनवाई की अगली तारीख दो सप्ताह बाद तय की गई है। जस्टिस एनएस ढड्ढ़ा की अदालत ने यह निर्देश सुधांशु सिंह ढिल्लन की याचिका पर दिए।
मेयर निलंबन के बाद नए महापौर की नियुक्ति
यूडीएच और स्वायत्त शासन मंत्री झाबरसिंह खर्रा ने बताया कि जैसे ही मेयर मुनेश गुर्जर का निलंबन होता है, नए महापौर की नियुक्ति की जाएगी। उन्होंने कहा कि हमें 60 दिनों तक कार्यवाहक मेयर नियुक्त करने का अधिकार है। चूंकि यह सीट ओबीसी महिला के लिए आरक्षित है, इसलिए जो पात्र महिला होगी, उसे कार्यवाहक मेयर नियुक्त किया जाएगा। अगर चुनाव आयोग निर्देश देता है, तो चुनाव से मेयर का चयन किया जाएगा।
कुसुम यादव और ललिता जायसवाल की दावेदारी
मेयर मुनेश गुर्जर के हटने के बाद भाजपा की कुसुम यादव और ललिता जायसवाल कार्यवाहक मेयर पद के प्रमुख दावेदार मानी जा रही हैं। कुसुम यादव वर्तमान में किशनपोल विधानसभा क्षेत्र से पार्षद हैं और उनकी छवि साफ-सुथरी मानी जाती है। वे पहले सांस्कृतिक और महिला उत्थान समिति की चेयरमैन रह चुकी हैं।
दूसरी दावेदार ललिता जायसवाल हैं, जिनके पति भाजपा युवा मोर्चा के राजस्थान मीडिया प्रभारी रहे हैं। ललिता भी किशनपोल विधानसभा क्षेत्र से पार्षद हैं और इस क्षेत्र में भाजपा लगातार दो बार विधानसभा चुनाव हार चुकी है। पार्टी को मजबूत करने के लिए किशनपोल से कार्यवाहक मेयर बनाए जाने की संभावना है।
अभियोजन की मंजूरी पर कोर्ट की सुनवाई
सोमवार को अदालत में डीएलबी निदेशक को पेश किया गया, जहां एएजी जीएस गिल ने अदालत को बताया कि मेयर मुनेश गुर्जर के खिलाफ अभियोजन की मंजूरी दी जा चुकी है। प्रार्थी के अधिवक्ता ने अदालत को बताया कि राज्य सरकार ने चार महीने से मामले में कोई कार्रवाई नहीं की है।
जस्टिस एनएस ढड्ढ़ा ने कहा कि राज्य सरकार को दो सप्ताह का समय इसलिए दिया जा रहा है ताकि मामले में चालान पेश किया जा सके। डीएलबी निदेशक को अब व्यक्तिगत पेशी से छूट दी गई है।
पिछली सुनवाई में कोर्ट की नाराजगी
पिछली सुनवाई में हाईकोर्ट ने अभियोजन की मंजूरी में देरी को लेकर नाराजगी जताई थी। अदालत ने कहा था कि जब भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) ने अपनी जांच रिपोर्ट में आरोप प्रमाणित माना है, तो अभियोजन मंजूरी पर निर्णय में देरी क्यों की गई। अदालत ने डीएलबी निदेशक से इसका स्पष्टीकरण भी मांगा था। PC एक्ट की धारा 19 के तहत अभियोजन मंजूरी के मामलों में 4 माह में निर्णय लेने का प्रावधान है, लेकिन इस मामले में चार महीने बीत जाने के बावजूद कार्रवाई नहीं की गई।