मनीषा शर्मा। राजस्थान के समरावता गांव में हुई हिंसा का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। प्रशासनिक स्तर पर चल रही जांच को लेकर गंभीर सवाल उठाए जा रहे हैं। इस मामले में अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद के अध्यक्ष और पूर्व आईएएस केसी घुमरिया ने जांच प्रक्रिया की निष्पक्षता पर संदेह जताया है। उन्होंने आरोप लगाया है कि संभागीय आयुक्त द्वारा ग्रामीणों से धमकी भरे लहजे में बात की गई, जिससे वे अपने बयान निड़र होकर नहीं दे पाए।
जांच अधिकारी पर गंभीर आरोप
घुमरिया ने कहा कि अजमेर संभागीय आयुक्त ने 24 जनवरी को बिना किसी पूर्व सूचना के कलेक्टर और एसपी समेत अन्य अधिकारियों के साथ समरावता गांव का दौरा किया। उन्होंने आरोप लगाया कि इस दौरे के दौरान जांच अधिकारी ने पीड़ित ग्रामीणों से धमकी भरे लहजे में बात की।
उन्होंने यह भी कहा कि जब एक अधिकारी अपने साथ कलेक्टर और एसपी जैसे उच्च पदस्थ अधिकारियों को लेकर जाएगा, तो पीड़ित पक्ष उनके सामने निड़र होकर अपने बयान कैसे दे पाएगा। घुमरिया ने इस बात पर जोर दिया कि एक अधिकारी कभी भी दूसरे अधिकारी के खिलाफ निष्पक्ष रिपोर्ट नहीं दे सकता।
हाईकोर्ट के जज से जांच की मांग
पूर्व आईएएस केसी घुमरिया ने इस मामले की प्रशासनिक जांच को खानापूर्ति करार दिया। उन्होंने राजस्थान सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि यह जांच महज औपचारिकता के लिए की जा रही है। घुमरिया ने मांग की है कि इस प्रकरण की निष्पक्ष जांच हाईकोर्ट के सिटिंग जज से करवाई जाए।
उन्होंने कहा कि केवल एक निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच ही इस हिंसा के पीछे के असल कारणों को उजागर कर सकती है। उनके अनुसार, वर्तमान जांच प्रक्रिया से सही तथ्य सामने आने की उम्मीद नहीं है।
नरेश मीणा की जमानत पर खड़ा विवाद
इस बीच, समरावता हिंसा के मामले में गिरफ्तार निर्दलीय प्रत्याशी नरेश मीणा अभी भी जेल में बंद हैं। उन्हें 14 नवंबर 2024 को गिरफ्तार किया गया था और तब से वे टोंक जेल में हैं।
हाल ही में राजस्थान हाईकोर्ट ने उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने हिंसा के वीडियो का संज्ञान लेते हुए कहा, “यह तो चोरी ऊपर से सीना जोरी है, यह नहीं चलेगा।” यह बयान हिंसा में उनकी कथित भूमिका को लेकर दिया गया।
नरेश मीणा के अलावा इस मामले में गिरफ्तार किए गए 62 में से 61 आरोपियों को पहले ही जमानत मिल चुकी है। केवल नरेश मीणा अभी जेल में हैं, जिससे उनके समर्थकों में रोष है।
क्या है समरावता हिंसा मामला?
समरावता गांव में हुई हिंसा का यह मामला राजनीतिक और सामाजिक दृष्टि से काफी संवेदनशील है। हिंसा के दौरान कई संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया गया और ग्रामीणों के बीच भय का माहौल बना। यह घटना एक स्थानीय विवाद के चलते भड़की, लेकिन इसके पीछे की सच्चाई सामने लाने के लिए अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं।
ग्रामीणों का बयान क्यों महत्वपूर्ण है?
घुमरिया ने ग्रामीणों के बयान को लेकर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि जब ग्रामीणों से उनके गांव में ही दबाव और धमकी के माहौल में बयान लिए जाएंगे, तो वे सच नहीं बोल पाएंगे। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि प्रशासनिक अधिकारी अपने उच्चाधिकारियों के दबाव में काम कर रहे हैं, जिससे निष्पक्ष जांच संभव नहीं है।
सरकार पर सवालिया निशान
पूर्व आईएएस अधिकारी ने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि वह केवल दिखावे के लिए जांच कर रही है। उनका मानना है कि सरकार ने समरावता हिंसा के वास्तविक पीड़ितों की तकलीफों को नजरअंदाज किया है।
उन्होंने यह भी कहा कि यदि इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया गया, तो यह ग्रामीण क्षेत्रों में प्रशासनिक विफलता का उदाहरण बन सकता है।