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भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 702.3 अरब डॉलर पहुंचा, गोल्ड रिजर्व में रिकॉर्ड 6.2 अरब डॉलर की बढ़ोतरी

भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 702.3 अरब डॉलर पहुंचा, गोल्ड रिजर्व में रिकॉर्ड 6.2 अरब डॉलर की बढ़ोतरी

शोभना शर्मा। भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए राहत भरी खबर आई है। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा जारी नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, 17 अक्टूबर 2025 को समाप्त सप्ताह में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Exchange Reserve) 4.5 अरब डॉलर बढ़कर 702.3 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। यह लगातार दूसरा सप्ताह है जब रिजर्व में बढ़ोतरी दर्ज की गई है। यह वृद्धि मुख्य रूप से गोल्ड रिजर्व (Gold Reserves) के बढ़ने की वजह से हुई है। आरबीआई के अनुसार, देश का गोल्ड रिजर्व इस अवधि में 6.2 अरब डॉलर बढ़कर 108.5 अरब डॉलर तक पहुंच गया, जो कि कई दशकों में सर्वाधिक स्तर है।

विदेशी मुद्रा भंडार का घटक क्या होता है

विदेशी मुद्रा भंडार में चार प्रमुख घटक होते हैं —

  1. फॉरेन करेंसी एसेट्स (Foreign Currency Assets)

  2. गोल्ड रिजर्व (Gold Reserves)

  3. आईएमएफ में रिजर्व पोजीशन (IMF Reserve Position)

  4. एसडीआर (Special Drawing Rights)

इनमें से सबसे बड़ा हिस्सा फॉरेन करेंसी एसेट्स का होता है, लेकिन इस सप्ताह इस हिस्से में गिरावट दर्ज की गई है।

फॉरेन करेंसी एसेट्स में गिरावट

आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार, फॉरेन करेंसी एसेट्स (FCA) 1.7 अरब डॉलर घटकर 570.4 अरब डॉलर पर आ गई हैं। फॉरेन करेंसी एसेट्स में यूरो, पाउंड, येन और अमेरिकी डॉलर जैसी मुद्राओं का मूल्य शामिल होता है। इन मुद्राओं के मूल्य में उतार-चढ़ाव सीधे तौर पर भारत के विदेशी मुद्रा भंडार को प्रभावित करता है। वित्तीय विश्लेषकों का कहना है कि अमेरिकी डॉलर की मजबूती और यूरोपीय बाजारों में मुद्रा उतार-चढ़ाव की वजह से FCA में यह कमी आई है।

गोल्ड रिजर्व में उछाल ने संभाला कुल रिजर्व

जहां फॉरेन करेंसी एसेट्स में गिरावट देखी गई, वहीं गोल्ड रिजर्व ने विदेशी मुद्रा भंडार को ऊपर बनाए रखा। 17 अक्टूबर को समाप्त सप्ताह में सोने के भंडार में 6.2 अरब डॉलर की बढ़ोतरी दर्ज की गई। अब भारत का कुल गोल्ड रिजर्व 108.5 अरब डॉलर हो गया है। आंकड़ों के मुताबिक, भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में गोल्ड की हिस्सेदारी बढ़कर 14.7 प्रतिशत हो गई है, जो कि पिछले कई दशकों में सर्वाधिक है। पिछले वर्ष तक यह अनुपात लगभग 7 प्रतिशत था, यानी बीते एक दशक में गोल्ड रिजर्व की हिस्सेदारी लगभग दोगुनी हो चुकी है।

गोल्ड रिजर्व बढ़ने के पीछे की वजह

आरबीआई ने 2024 से अब तक अपने गोल्ड रिजर्व में करीब 75 टन की वृद्धि की है। मॉर्गन स्टेनली की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के पास अब कुल 880 टन सोना है, जो कि कुल विदेशी मुद्रा भंडार का लगभग 14 प्रतिशत हिस्सा बनाता है।

गोल्ड रिजर्व में यह बढ़ोतरी दो प्रमुख कारणों से हुई है:

  1. सोने की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में उछाल

  2. आरबीआई द्वारा बाजार से की गई रणनीतिक खरीदारी

भारत के लिए यह एक रणनीतिक कदम माना जा रहा है, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोना एक स्थिर और सुरक्षित निवेश विकल्प माना जाता है।

IMF रिजर्व पोजीशन में हल्की कमी

आरबीआई के अनुसार, इस सप्ताह अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) में भारत की रिजर्व पोजीशन 3 करोड़ डॉलर घटकर 4.62 अरब डॉलर रह गई है। यह गिरावट आंशिक रूप से विदेशी बाजारों में मुद्रा उतार-चढ़ाव और ब्याज दरों के अंतर के कारण देखी गई है।

गोल्ड की वैश्विक मांग और भारत की भूमिका

वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल (WGC) के आंकड़ों के अनुसार, भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा सोने का उपभोक्ता है, जो अपनी मांग पूरी करने के लिए अधिकांशतः आयात पर निर्भर है। हालांकि, 2025 में भारत ने अब तक सिर्फ चार महीनों में सोने की खरीदारी की है, जबकि 2024 में लगभग हर महीने सोना खरीदा गया था। जनवरी से सितंबर 2025 के बीच भारत ने कुल 4 टन सोना खरीदा, जो पिछले वर्ष की समान अवधि में खरीदे गए 50 टन सोने की तुलना में काफी कम है।
इस गिरावट का कारण डॉलर की मजबूती और आयात शुल्क में बदलाव माना जा रहा है।

भारत के लिए क्या मायने रखता है यह आंकड़ा?

विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी भारत की वित्तीय स्थिति के लिए शुभ संकेत है। इससे देश की आयात भुगतान क्षमता मजबूत होती है। रुपये की स्थिरता बनी रहती है। वैश्विक निवेशकों के बीच भारत की विश्वसनीयता बढ़ती है। वित्तीय विशेषज्ञों का कहना है कि 700 अरब डॉलर का आंकड़ा भारत को उन देशों में शामिल करता है जिनके पास सबसे बड़े विदेशी मुद्रा भंडार हैं। यह न केवल आर्थिक मजबूती का प्रतीक है बल्कि वित्तीय स्थिरता और विदेशी निवेश के लिए भरोसे का संकेत भी देता है।

विशेषज्ञों की राय

इकॉनॉमिक एनालिस्ट्स का मानना है कि आरबीआई द्वारा गोल्ड रिजर्व बढ़ाना एक दीर्घकालिक रणनीति है। “अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करने और सुरक्षित एसेट में निवेश बढ़ाने की दिशा में यह कदम भारत के लिए सही है,” — ऐसा कहना है वरिष्ठ अर्थशास्त्री डॉ. संजीव भट्टाचार्य का। उन्होंने कहा कि यदि आने वाले महीनों में वैश्विक बाजार स्थिर रहता है, तो भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 710-720 अरब डॉलर के स्तर तक जा सकता है।

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