अजमेर में मौजूद अढ़ाई दिन का झोंपड़ा ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती दरगाह से आगे कुछ ही दूरी पर स्थित है और इसका इतिहास लगभाग 800 साल पुराना है ।’अढ़ाई दिन का झोंपड़ा’ 1192 ईस्वी में अफगान सेनापति मोहम्मद गोरी के आदेश पर कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनवाया था।माना जाता है कि इस मस्जिद को बनने में ढाई दिन यानी मात्र 60 घंटे का समय लगा था, इसलिए इसे ‘अढ़ाई दिन का झोंपड़ा’ कहा जाने लगा। हालांकि कुछ लोगों का यह भी मानना है कि यहां चलने वाले ढाई दिन के उर्स (मेला) के कारण इसका नाम ‘अढ़ाई दिन का झोंपड़ा’ पड़ा था।
क्या है इतिहास
ऐसा माना जाता है कि इस जगह पर एक बहुत बड़ा संस्कृत विद्यालय और मंदिर थे, जिन्हें तोड़कर मस्जिद में बदल दिया गया था। अढ़ाई दिन के झोपड़े के मुख्य द्वार के बायीं ओर संगमरमर का बना एक शिलालेख भी है, जिस पर संस्कृत में उस विद्यालय का जिक्र किया गया है। इस खंडहरनुमा मस्जिद की इमारत में कुल 70 स्तंभ हैं, असल में ये स्तंभ उन मंदिरों के हैं, जिन्हें धवस्त कर दिया गया था, लेकिन स्तंभों को वैसे ही रहने दिया गया था। इन स्तंभों की ऊंचाई करीब 25 फीट है और हर स्तंभ पर खूबसूरत हिंदू-मुस्लिम कारीगिरी की गई है।अढ़ाई दिन के झोंपड़े का अधिकांश हिस्सा मंदिर का होने के कारण यह अंदर से किसी मंदिर की तरह ही दिखाई देता है। हालांकि जो नई दीवारें बनवाई गईं, उन पर कुरान की आयतें लिखी गई हैं, जिससे पता चलता है कि यह एक मस्जिद है।