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न्याय की देवी का इतिहास, प्रतीक और आधुनिक बदलाव

न्याय की देवी का इतिहास, प्रतीक और आधुनिक बदलाव

शोभना शर्मा। लेडी जस्टिस, जिसे न्याय की देवी के रूप में जाना जाता है, विश्वभर में न्याय का प्रतीक रही है। इसका इतिहास कई हजार साल पुराना है और इसका संबंध ग्रीक, मिस्र और रोमन सभ्यताओं से है। न्याय के इस प्रतीक की मूर्ति, जिसने न्याय और निष्पक्षता का संदेश दिया, विश्व के न्यायालयों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। आधुनिक समय में, न्याय की देवी की मूर्ति के कुछ प्रतीक बदल दिए गए हैं, खासकर भारत में, जहां सुप्रीम कोर्ट में नई लेडी जस्टिस की मूर्ति स्थापित की गई है।

प्राचीन सभ्यताओं में न्याय की अवधारणा

लेडी जस्टिस की अवधारणा प्राचीन ग्रीक, रोमन और मिस्र की सभ्यताओं से आती है। ग्रीक देवी थीमिस कानून, व्यवस्था और न्याय का प्रतिनिधित्व करती थीं, जबकि मिस्र में देवी मात को व्यवस्था और सत्य का प्रतीक माना जाता था। मात से ही ‘मजिस्ट्रेट’ शब्द आया, जिसका मतलब न्याय करने वाला होता है। रोमन साम्राज्य में जस्टीशिया नाम की देवी न्याय की प्रतीक थीं।

रोम के सम्राटों ने जस्टीशिया को न्याय के गुण का प्रतीक मानते हुए उन्हें महत्व दिया। सम्राट ऑगस्टस ने जस्टीशिया की मूर्ति को अपने दरबार में स्थापित किया था, जबकि सम्राट टिबेरियस ने रोम में उनका एक मंदिर बनवाया। जस्टीशिया को सम्राटों ने अपने शासन का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया, और उनकी छवि को सिक्कों पर उकेरा गया।

लेडी जस्टिस के तीन मुख्य प्रतीक: तराजू, तलवार और पट्टी

न्याय की देवी की मूर्ति के तीन मुख्य प्रतीक होते हैं:

  1. तराजू: निष्पक्षता का प्रतीक, जो दर्शाता है कि अदालत में प्रस्तुत सभी तथ्यों को बराबरी से तौला जाता है। कोर्ट के फैसले संतुलित और निष्पक्ष होते हैं, जिसमें दोनों पक्षों की बातें सुनी जाती हैं।
  2. तलवार: न्याय की देवी के हाथ में तलवार का अर्थ कानून की शक्ति और सम्मान है। तलवार यह बताती है कि न्याय पारदर्शी और कठोर हो सकता है, और इसका फैसला निष्पक्षता के साथ किया जाता है।
  3. आंखों पर पट्टी: 16वीं शताब्दी में पहली बार लेडी जस्टिस की मूर्ति की आंखों पर पट्टी बांधी गई थी। इसका मतलब था कि न्याय बिना किसी भेदभाव के किया जाता है। आधुनिक समय में भी यह पट्टी कानून की निष्पक्षता और वस्तुनिष्ठता का प्रतीक है।

भारत में लेडी जस्टिस की नई मूर्ति

हाल ही में, भारत के सुप्रीम कोर्ट में न्याय की देवी की एक नई मूर्ति स्थापित की गई है, जिसमें कुछ महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं। इस मूर्ति की आंखों से पट्टी हटा दी गई है, जो पहले इस बात का प्रतीक थी कि न्याय अंधा होता है। अब नई मूर्ति यह संदेश देती है कि कानून अंधा नहीं है और वह सचेत होकर फैसले करता है। इसके अलावा, तलवार की जगह न्याय की देवी के हाथ में संविधान की किताब दी गई है, जो यह दर्शाता है कि न्याय संविधान और कानून के आधार पर किया जाता है।

आधुनिक न्याय प्रणाली में बदलाव

भारत की नई न्यायिक व्यवस्था, विशेषकर भारतीय न्याय संहिता (BNS) को लागू करना और लेडी जस्टिस की नई मूर्ति को स्थापित करना, ब्रिटिश शासन की विरासत से अलग होने की एक कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। ब्रिटिश काल में बने इंडियन पीनल कोड (IPC) के स्थान पर भारतीय न्याय संहिता को लागू किया गया, जो इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। लेडी जस्टिस की मूर्ति में किए गए बदलाव न्याय की आधुनिक सोच को दर्शाते हैं, जहां कानून न केवल निष्पक्षता से, बल्कि जागरूकता और संवेदनशीलता से भी लागू होता है।

न्याय की देवी का महत्व

न्याय की देवी का महत्व प्राचीन समय से आज तक कायम है। चाहे वह मिस्र की मृतकों की किताब में दिल और सत्य के पंख का तुलनात्मक दृश्य हो, या ग्रीक देवी थीमिस के न्याय के प्रतीक, इन मूर्तियों और प्रतीकों ने हमेशा न्याय के मूल्यों को ऊंचा रखा है। वर्तमान समय में भी, न्याय की देवी की मूर्तियां विश्वभर के न्यायालयों में स्थापित हैं, जो निष्पक्षता, पारदर्शिता और शक्ति के प्रतीक के रूप में देखी जाती हैं।

लेडी जस्टिस की मूर्ति और उसके प्रतीक न केवल न्याय की निष्पक्षता को दर्शाते हैं, बल्कि यह भी दिखाते हैं कि समय के साथ न्यायिक व्यवस्था में कैसे बदलाव होते रहे हैं। भारत में सुप्रीम कोर्ट की नई मूर्ति और भारतीय न्याय संहिता जैसे सुधार इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हैं, जो यह संदेश देते हैं कि न्याय अब अंधा नहीं, बल्कि जागरूक और संवेदनशील है।

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