शोभना शर्मा। राजस्थान हाईकोर्ट ने रेप पीड़िताओं के अधिकारों और गर्भपात के मामलों में हो रही अनदेखी पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। मुख्य न्यायाधीश एमएम श्रीवास्तव और जस्टिस उमाशंकर व्यास की खंडपीठ ने कहा कि रेप पीड़िताओं, विशेषकर नाबालिगों को उनके अधिकारों के बारे में जानकारी नहीं दी जाती। इसके चलते उन्हें न चाहकर भी बच्चे को जन्म देना पड़ता है। यह टिप्पणी एक नाबालिग रेप पीड़िता के गर्भपात की अपील पर सुनवाई के दौरान की गई, जिसमें पीड़िता 31 सप्ताह की प्रेग्नेंट थी। मेडिकल रिपोर्ट में बताया गया कि इस समय गर्भपात करना पीड़िता और बच्चे दोनों के लिए खतरनाक हो सकता है। अदालत ने उसकी अपील खारिज करते हुए यह भी कहा कि इस तरह के मामलों में स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी किए जाने की आवश्यकता है।
गर्भपात पर मौजूदा कानून और न्यायालय की भूमिका
भारत में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 के तहत गर्भपात की प्रक्रिया को कानूनी रूप दिया गया है। 2021 में इस अधिनियम में किए गए संशोधन के अनुसार, 24 सप्ताह तक की प्रेग्नेंसी के लिए गर्भपात की अनुमति डॉक्टरों की सलाह पर बिना न्यायालय की अनुमति के दी जा सकती है। लेकिन 24 सप्ताह के बाद गर्भपात के लिए अदालत की अनुमति अनिवार्य है। हाईकोर्ट ने इस प्रकरण में कहा कि महिलाओं, खासतौर पर नाबालिग लड़कियों को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करना बेहद जरूरी है। पुलिस और संबंधित एजेंसियों का यह कर्तव्य है कि वे यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं को उनके कानूनी अधिकारों की जानकारी दें।
नाबालिग रेप पीड़िता का मामला: मानव तस्करी से लेकर गर्भपात की अपील तक
यह मामला बिहार की एक नाबालिग लड़की का है जिसे मानव तस्करी के जरिए राजस्थान के कोटा लाया गया था। वहां उसके साथ बार-बार यौन शोषण किया गया। बाद में पुलिस ने उसे आरोपियों के चंगुल से छुड़ाकर बाल संरक्षण गृह भेजा। जब पीड़िता को गर्भवती होने का पता चला, तो उसने गर्भपात की अनुमति के लिए अदालत में याचिका दायर की। मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार, उसकी प्रेग्नेंसी 31 सप्ताह की थी, जो सुरक्षित गर्भपात की सीमा से बाहर थी। खंडपीठ ने उसकी याचिका खारिज कर दी क्योंकि मेडिकल रिपोर्ट के मुताबिक, इस समय गर्भपात करने से जान का खतरा था। हालांकि, अदालत ने यह भी माना कि इस मामले ने एक महत्वपूर्ण सवाल उठाया है: रेप पीड़िताओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक क्यों नहीं किया जाता?
रेप पीड़िताओं के अधिकार और जागरूकता की कमी
अदालत ने टिप्पणी की कि रेप पीड़िताएं अक्सर अपने अधिकारों से अनजान होती हैं। कानून स्पष्ट रूप से कहता है कि 24 सप्ताह तक की प्रेग्नेंसी के लिए गर्भपात की अनुमति बिना अदालत की आवश्यकता के दी जा सकती है। लेकिन जागरूकता की कमी के कारण कई महिलाएं और नाबालिग लड़कियां इस कानूनी अधिकार का लाभ नहीं उठा पातीं। न्यायालय ने पुलिस और अन्य संबंधित एजेंसियों की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए कहा कि पीड़िताओं को समय पर उनके विकल्पों और अधिकारों के बारे में सूचित करना चाहिए। यदि पीड़िता को समय पर सही जानकारी और मेडिकल सहायता दी जाती, तो 24 सप्ताह के भीतर गर्भपात संभव होता।
आवश्यक दिशा-निर्देश जारी करने की योजना
हाईकोर्ट ने कहा कि रेप पीड़िताओं के मामलों में प्रभावी और व्यापक दिशा-निर्देश बनाए जाने चाहिए। इस दिशा में न्यायालय स्वप्रेरित प्रसंज्ञान लेकर मामले की सुनवाई करेगा। इस प्रक्रिया में यह सुनिश्चित किया जाएगा कि:
- रेप पीड़िताओं को उनके अधिकारों की पूरी जानकारी दी जाए।
- समय पर मेडिकल परीक्षण और आवश्यक कार्रवाई की जाए।
- गर्भपात की प्रक्रिया को तेज और प्रभावी बनाया जाए।
गर्भपात पर सामाजिक और कानूनी दृष्टिकोण
भारत में गर्भपात हमेशा से एक संवेदनशील विषय रहा है। हालांकि, मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत इसे कानूनी मान्यता दी गई है, लेकिन सामाजिक दबाव और जागरूकता की कमी के कारण महिलाएं अक्सर अपने अधिकारों का उपयोग नहीं कर पातीं। विशेषकर रेप पीड़िताओं और नाबालिग लड़कियों के लिए यह समस्या और गंभीर हो जाती है। कई मामलों में, उन्हें पुलिस और अन्य एजेंसियों की लापरवाही के कारण मजबूरी में बच्चे को जन्म देना पड़ता है।
रेप पीड़िताओं के अधिकार सुनिश्चित करने की दिशा में हाईकोर्ट का प्रयास
यह मामला भारत में यौन उत्पीड़न और उसके बाद की चुनौतियों के प्रति न्यायिक प्रणाली की संवेदनशीलता को दर्शाता है। राजस्थान हाईकोर्ट ने न केवल रेप पीड़िताओं के अधिकारों पर प्रकाश डाला है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करने का प्रयास किया है कि भविष्य में ऐसी स्थितियां न उत्पन्न हों। रेप पीड़िताओं के अधिकारों के प्रति जागरूकता और प्रभावी कार्यान्वयन की दिशा में अदालत का यह कदम एक महत्वपूर्ण पहल है। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि विस्तृत दिशा-निर्देश आने वाले समय में किस प्रकार प्रभावित करते हैं और पीड़िताओं को न्याय और सहायता प्रदान करते हैं।