मनीषा शर्मा । राजस्थान हाईकोर्ट ने एक संपत्ति विवाद मामले में ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है, जो भविष्य में इस तरह के कई मामलों में मिसाल साबित हो सकता है। जस्टिस फरजंद अली की बेंच ने स्पष्ट किया कि किसी भी समझौते पर आधारित डिक्री को केवल कब्जा देकर पूरा नहीं माना जा सकता। डिक्री का वास्तविक लाभ तभी मिलेगा जब डिक्री धारक को उस संपत्ति का वैध स्वामित्व दस्तावेज उपलब्ध कराया जाए।
मामला: भीलवाड़ा की पूजा बनाम महेंद्र सिंह विवाद
यह मामला भीलवाड़ा जिले के गंगापुर की निवासी पूजा से जुड़ा है। उन्होंने अपनी पैतृक संपत्ति के बंटवारे को लेकर मुकदमा दायर किया था। 17 अगस्त 2022 को दोनों पक्षों के बीच एक समझौता हुआ, जिसमें तय किया गया कि पूजा को भूतल पर स्थित दुकान नंबर 3 दी जाएगी। इस समझौते में यह भी शर्त रखी गई कि पूजा को अलग से पट्टा (lease deed) दिलाने में मदद की जाएगी और जब भी उनके हस्ताक्षर की जरूरत होगी, तो सहयोग किया जाएगा। आर्थिक स्थिति को देखते हुए यह भी तय किया गया कि विक्रय विलेख (Sale Deed) की जगह दान विलेख (Gift Deed) बनाया जाएगा ताकि उन पर आर्थिक बोझ न पड़े।
कब्जा मिला, मगर स्वामित्व का हक अधूरा
समझौते के बाद ट्रायल कोर्ट ने पूजा के पक्ष में फैसला सुनाया और उन्हें दुकान नंबर 3 का अधिकार दे दिया। 25 जुलाई 2023 को पूजा को दुकान का कब्जा तो मिल गया, लेकिन उन्हें अब तक स्वामित्व के वैध दस्तावेज यानी गिफ्ट डीड नहीं दी गई। इस स्थिति में पूजा दुकान को बेचने, गिरवी रखने, किसी कॉन्ट्रैक्ट में इस्तेमाल करने या बैंक से लोन लेने में असमर्थ रहीं। मजबूर होकर उन्होंने कोर्ट से गुहार लगाई कि उनके पिता महेंद्र सिंह और भाइयों पुनीत व विनीत को गिफ्ट डीड बनाने का निर्देश दिया जाए।
निचली अदालत का फैसला: आवेदन खारिज
एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज, गंगापुर ने 5 अक्टूबर 2023 को पूजा का आवेदन खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि कब्जा पहले ही दे दिया गया है और जजमेंट डेटर्स (महेंद्र सिंह और उनके बेटे) कोई आपत्ति नहीं जता रहे हैं। ऐसे में सिविल कोर्ट का दखल देना उचित नहीं है। अदालत का यह भी मानना था कि अगर नगरपालिका पट्टा नहीं दे रही है, तो यह विवाद डिक्री होल्डर और नगरपालिका के बीच का होगा, जिसमें सिविल कोर्ट की कोई भूमिका नहीं है। इस फैसले से निराश होकर पूजा ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
हाईकोर्ट का सख्त रुख: डिक्री सिर्फ “कागज का टुकड़ा” नहीं
जस्टिस फरजंद अली की अदालत ने निचली अदालत के फैसले को गलत ठहराते हुए कहा कि समझौते पर आधारित डिक्री को केवल कब्जा देकर पूरा मानना न्याय की मूल भावना के खिलाफ है। कोर्ट ने कहा: “सिविल कोर्ट द्वारा पारित डिक्री को केवल कागज का टुकड़ा या दीवार पर सजाने की वस्तु नहीं बनने दिया जा सकता। डिक्री का अर्थ केवल औपचारिकता पूरी करना नहीं है, बल्कि डिक्री धारक को वास्तविक और ठोस लाभ दिलाना है।” कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कब्जा मिलने के बावजूद स्वामित्व दस्तावेज न मिलना, डिक्री की मूल भावना के खिलाफ है। केवल कब्जा मिलना मालिकाना हक के बराबर नहीं माना जा सकता।
गिफ्ट डीड का खर्च उठाएंगे जजमेंट डेटर्स
हाईकोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि गिफ्ट डीड बनाने का पूरा खर्च महेंद्र सिंह और उनके बेटे ही उठाएंगे। उन्होंने ही समझौते में गिफ्ट डीड का विकल्प चुना था ताकि पूजा पर आर्थिक बोझ न पड़े। इसलिए, डीड की तैयारी, स्टांपिंग और रजिस्ट्रेशन का पूरा खर्च उन्हें ही देना होगा।
रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया और नगरपालिका का सहयोग अनिवार्य
कोर्ट ने निर्देश दिया कि एग्जीक्यूटिव कोर्ट एक तारीख तय करे और उस दिन सभी पक्ष सब-रजिस्ट्रार कार्यालय गंगापुर या भीलवाड़ा में उपस्थित हों। रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया पूरी करने के लिए कोर्ट का एक अधिकारी भी मौजूद रहेगा। गिफ्ट डीड रजिस्ट्रेशन के बाद इसकी प्रमाणित प्रति पूजा को दी जाएगी, ताकि वह इसे नगर पालिका या संबंधित प्राधिकरण के समक्ष प्रस्तुत कर अलग टाइटल दस्तावेज या पट्टा प्राप्त कर सकें।
उल्लंघन पर कड़ी कार्रवाई की चेतावनी
हाईकोर्ट ने साफ चेतावनी दी कि यदि जजमेंट डेटर्स या नगरपालिका अधिकारी गिफ्ट डीड बनाने या पट्टा जारी करने में देरी या आनाकानी करेंगे, तो इसे डिक्री का उल्लंघन माना जाएगा और सख्त कार्रवाई की जाएगी।
हाईकोर्ट का उद्देश्य: वास्तविक न्याय, न कि औपचारिकता
जस्टिस फरजंद अली ने अपने आदेश में कहा कि अदालत का उद्देश्य डिक्री होल्डर को वास्तविक न्याय दिलाना है। डिक्री को केवल दिखावटी औपचारिकता नहीं बनने दिया जा सकता। अदालत ने एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज, गंगापुर के 5 अक्टूबर 2023 के आदेश को रद्द कर दिया और पूजा को उनका वैध अधिकार दिलाने का रास्ता साफ किया।