मनीषा शर्मा। भारत में रेप पीड़िताओं के गर्भपात के मुद्दे को लेकर अक्सर विवाद और कठिनाइयां सामने आती हैं। इसी समस्या को हल करने के लिए हाईकोर्ट ने नई गाइडलाइन तय करने का संकेत दिया है। राजस्थान हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एमएम श्रीवास्तव और न्यायमूर्ति उमाशंकर व्यास की खंडपीठ ने इस विषय में केंद्र और राज्य सरकार से चार सप्ताह में जवाब मांगा है। यह कदम न्यायपालिका द्वारा रेप पीड़िताओं के अधिकारों की रक्षा और उनकी कठिनाइयों को कम करने के प्रयासों की ओर एक महत्वपूर्ण पहल है।
जनहित याचिका में बदली रेप पीड़िता की याचिका
दिसंबर 2024 में, मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने रेप पीड़िता की गर्भपात की याचिका को निस्तारित करते हुए इसे जनहित याचिका के रूप में लिस्ट करने का आदेश दिया। इस सुनवाई के दौरान अदालत ने राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (रालसा) को मामले में पक्षकार बनाया और न्याय प्रक्रिया में सहयोग के लिए चार महिला अधिवक्ताओं को न्यायमित्र नियुक्त किया।
मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट का जिक्र
अदालत ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) एक्ट, 1971 का हवाला देते हुए कहा कि इस कानून के अनुसार, 24 हफ्ते तक की प्रेग्नेंसी में गर्भपात के लिए अदालत की अनुमति आवश्यक नहीं है। लेकिन इसके बाद गर्भपात के लिए अदालत से अनुमति लेना अनिवार्य है। इसी कानून के तहत 31 सप्ताह की प्रेग्नेंसी वाली पीड़िता की याचिका को खारिज कर दिया गया था, क्योंकि मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार गर्भपात पीड़िता और गर्भस्थ बच्चे दोनों के लिए जान का खतरा पैदा कर सकता था।
महिलाओं में जागरूकता की कमी पर चिंता
हाईकोर्ट ने इस बात पर गहरी चिंता जताई कि रेप पीड़िताएं, विशेषकर नाबालिग, अपने अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं होतीं। पुलिस और अन्य संबंधित एजेंसियां भी अक्सर इन महिलाओं को उनके कानूनी अधिकारों के बारे में सूचित नहीं करतीं। इसका परिणाम यह होता है कि उन्हें न चाहते हुए भी बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
गर्भपात के अधिकारों की रक्षा क्यों है जरूरी?
रेप पीड़िताओं के लिए गर्भपात का अधिकार एक संवेदनशील और जरूरी मुद्दा है। यह न केवल उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ा है, बल्कि उनके भविष्य की संभावनाओं और सामाजिक स्थिति पर भी इसका गहरा प्रभाव पड़ता है। यदि महिलाएं अपने अधिकारों के बारे में जागरूक हों और उन्हें सही समय पर कानूनी सहायता मिले, तो उनकी जिंदगी पर इस तरह के कष्टदायक प्रभावों को रोका जा सकता है।
नई गाइडलाइन की संभावनाएं
हाईकोर्ट द्वारा नई गाइडलाइन बनाने का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि रेप पीड़िताओं को समय पर कानूनी और मेडिकल सहायता मिले। यह गाइडलाइन पुलिस, अस्पताल और अन्य संबंधित संस्थानों को इस मामले में अपनी भूमिका निभाने के लिए बाध्य करेगी। इससे न केवल पीड़िताओं की मुश्किलें कम होंगी, बल्कि उनकी गरिमा और मानवाधिकारों की रक्षा भी होगी।