मनीषा शर्मा। देवली-उनियारा उप चुनाव के दौरान हुई घटनाओं की सिलसिलेवार जानकारी देते हुए बताया जाता है कि नरेश मीणा की जमानत याचिका पर हाई कोर्ट में सुनवाई आज निर्धारित की गई थी, लेकिन इसे टाल दिया गया है। जस्टिस प्रवीर भटनागर की अध्यक्षता वाली अदालत में इस याचिका पर विचार किया जाना था। राज्य सरकार की ओर से यह कहा गया कि पुलिस इस मामले में 11 फरवरी को चालान पेश करेगी। इस बात के बाद कोर्ट ने सुनवाई को 12 फरवरी तक टाल देने का निर्णय लिया, जिससे नरेश मीणा के वकीलों के मन में आशंका और चिंता की स्थिति बनी हुई है।
नरेश मीणा का मामला उन विवादास्पद घटनाओं में से एक है, जो देवली-उनियारा विधानसभा के समरावता (टोंक) गांव में उप चुनाव के दौरान घटित हुई थीं। चुनावी माहौल में जब वोटिंग का बहिष्कार देखने को मिला, तो निर्दलीय प्रत्याशी नरेश मीणा ने ग्रामीणों के साथ धरने का आयोजन किया। इस धरने के दौरान उन्होंने अधिकारियों पर जबरन मतदान करवाने का आरोप लगाया। उस दिन, मतदान केंद्र पर पहुँचने पर नरेश मीणा ने एसडीएम अमित चौधरी को थप्पड़ मार दिया था। यह थप्पड़ मारने का प्रकरण ही बाद में समरावता हिंसा प्रकरण में तब्दील हो गया।
एसडीएम को थप्पड़ मारने के बाद, नरेश मीणा ने फिर से धरने पर वापस जाने का निर्णय लिया। वहीं उस दिन ग्रामीणों में काफी उथल-पुथल मच गई थी। विरोधाभासी घटनाओं के क्रम में प्रदर्शनकारियों की गाड़ियों को रोकने का विवाद उठ खड़ा हुआ। इस दौरान पुलिस की तेज कार्रवाई देखने को मिली और नरेश मीणा को हिरासत में ले लिया गया। लेकिन घटनाक्रम इससे रुकने वाला नहीं था। जैसे ही उनके समर्थकों को इस बात की जानकारी मिली, वे भी भीड़ में शामिल हो गए और पुलिस के जवानों के साथ आमने-सामने टकराने लगे। भिड़ंत के दौरान पुलिस ने लाठीचार्ज किया और ग्रामीणों पर पथराव भी किया गया। साथ ही, रिपोर्टों के अनुसार, घटना के दौरान कई गाड़ियों में आग लगा दी गई, जिससे माहौल और भी नाजुक हो गया।
नरेश मीणा के खिलाफ पुलिस ने नगर फोर्ट थाने में चार एफआईआर दर्ज कर दी हैं। पहली एफआईआर एसडीएम द्वारा दर्ज कराई गई है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि नरेश मीणा ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) से छेड़छाड़ की तथा उन्हें शारीरिक रूप से भी हमला किया। दूसरी एफआईआर पुलिस द्वारा दर्ज की गई है, जिसमें नरेश मीणा पर आगजनी का आरोप लगाया गया है। इन दोनों मामलों में नरेश मीणा को गिरफ्तार कर लिया गया है। तीसरी एफआईआर हाईवे जाम करने के मामले में दर्ज की गई है, जबकि चौथी एफआईआर रिटर्निंग ऑफिसर द्वारा ईवीएम से छेड़छाड़ करने के आरोप में दर्ज कराई गई है। इन दोनों मामलों में अभी तक नरेश मीणा को गिरफ्तार नहीं किया गया है, लेकिन उनके अधिवक्ताओं का कहना है कि पुलिस प्रशासन उन्हें जेल में रखने की साजिश रच रहा है।
नरेश मीणा के वकीलों ने अदालत में यह दलील दी कि उनके मुवक्किल को बिना उचित सुनवाई के लंबे समय तक हिरासत में रखना न्यायसंगत नहीं है। उनके अनुसार, पुलिस प्रशासन का उद्देश्य नरेश मीणा को जमानत मिलने के बाद भी बार-बार गिरफ्तार कर उन्हें जेल में रखने का है। ऐसा माना जा रहा है कि यदि जमानत मिल भी जाती है, तो पुलिस बाकी मामलों में चालान पेश कर के उन्हें फिर से हिरासत में ले सकती है। इसी सिलसिले में राज्य सरकार ने कहा है कि पुलिस 11 फरवरी को चालान पेश करेगी। इससे यह संकेत मिलता है कि पुलिस के पास इस मामले को लेकर कुछ ठोस सबूत मौजूद हैं, जिन्हें अदालत में पेश करने का इंतजार किया जा रहा है।
समरावता हिंसा प्रकरण में नरेश मीणा 14 नवंबर से हिरासत में हैं। उनके खिलाफ चल रहे इन मामलों में अब तक पहली बार चालान पेश किया जा चुका है। हालांकि, उनके अधिवक्ताओं का कहना है कि ये सभी आरोप राजनीतिक और प्रशासनिक दबाव का परिणाम हैं। वे यह भी बताते हैं कि इन एफआईआरों में दर्ज आरोपों के आधार पर नरेश मीणा की स्थिति गंभीर हो गई है, जिससे उनके समर्थक और विरोधी दोनों में ही चर्चा का विषय बन चुका है।
हाई कोर्ट में सुनवाई के टल जाने से यह स्पष्ट होता है कि अदालत इस मामले में सबूतों की पूरी जांच कर रही है। राज्य सरकार और पुलिस दोनों ने कहा है कि आगामी दिन में इस प्रकरण से संबंधित और भी दस्तावेज अदालत में प्रस्तुत किए जाएंगे। यह कदम न्यायपालिका की ओर से मामला की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए उठाया गया प्रतीत होता है, ताकि निष्पक्ष और सटीक फैसला सुनाया जा सके।
इस पूरे मामले से जुड़ा एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि समरावता हिंसा प्रकरण में नरेश मीणा की गिरफ्तारी और उनके खिलाफ दर्ज मामलों का विवरण राजनीतिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत संवेदनशील है। यह मामला चुनावी माहौल में होने वाले दंगों, प्रदर्शनकारियों के बीच की भिड़ंत और प्रशासन द्वारा उठाए गए कदमों का एक स्पष्ट उदाहरण बन चुका है। प्रशासन के आरोपों के अनुसार, नरेश मीणा ने मतदान प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न करने के साथ-साथ ईवीएम से छेड़छाड़ भी की, जिसके चलते प्रशासन ने उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की।
हालांकि, नरेश मीणा के समर्थकों का कहना है कि यह सब आरोप राजनीतिक स्वार्थ और दबाव का हिस्सा हैं, जिसे उनकी राजनीतिक विरोधी शक्तियाँ इस्तेमाल कर रही हैं। उनके अनुसार, यह मामला केवल कानूनी दायरे में नहीं, बल्कि क्षेत्रीय राजनीति के खेल में भी परिवर्तित हो चुका है। उन्होंने न्यायपालिका से आग्रह किया है कि वह किसी भी प्रकार के राजनीतिक प्रभाव से दूर रहकर निष्पक्ष फैसला सुनाएं।
इस पूरे प्रकरण में पुलिस द्वारा 11 फरवरी को चालान पेश करने का निर्णय भी एक महत्वपूर्ण मोड़ है। यदि पुलिस चालान पेश कर देती है, तो इससे अदालत में नरेश मीणा के खिलाफ मौजूद सबूतों को मजबूत किया जा सकेगा। वहीं, यदि इन चालानों को लेकर और सवाल उठते हैं, तो न्यायपालिका को मामले की जांच में और अधिक समय देने की आवश्यकता पड़ सकती है। वर्तमान में, नरेश मीणा की जमानत याचिका की सुनवाई को 12 फरवरी तक टाल दिया गया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि न्यायिक प्रक्रिया में अभी भी कई महत्वपूर्ण मुद्दों की जांच बाकी है।