शोभना शर्मा। राजस्थान विधानसभा उपचुनाव 2024 के परिणामों में सबसे ज्यादा चर्चा खींवसर सीट की हुई। लंबे समय से हनुमान बेनीवाल के अजेय गढ़ के रूप में पहचानी जाने वाली इस सीट पर भाजपा ने इतिहास रच दिया। भाजपा प्रत्याशी रेवंतराम डांगा ने 13,901 मतों से जीत दर्ज कर हनुमान बेनीवाल की पत्नी कनिका बेनीवाल को पराजित किया। यह हार न केवल बेनीवाल परिवार के लिए एक बड़ा झटका है, बल्कि खींवसर की राजनीति में नए समीकरण भी स्थापित करती है।
खींवसर: हनुमान बेनीवाल का गढ़ पहली बार ढहा
2008 से अजेय रहे बेनीवाल
2008 में खींवसर सीट के परिसीमन के बाद से ही हनुमान बेनीवाल का इस पर कब्जा रहा।
- 2008 चुनाव:
- भाजपा प्रत्याशी के रूप में हनुमान बेनीवाल ने 58,760 वोटों से जीत दर्ज की।
- उन्होंने बसपा के दुर्ग सिंह भाटी को 24,443 मतों के अंतर से हराया।
- 2013 चुनाव:
- निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरकर बेनीवाल ने 65,399 वोटों से जीत हासिल की।
- बसपा के दुर्ग सिंह भाटी एक बार फिर दूसरे स्थान पर रहे।
- 2018 चुनाव:
- राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) का गठन कर हनुमान बेनीवाल ने अपनी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा।
- उन्होंने 83,096 वोट लेकर कांग्रेस के सवाई सिंह चौधरी को 16,948 मतों के अंतर से हराया।
2024 उपचुनाव: बेनीवाल की हार का कारण
इस बार के उपचुनाव में हनुमान बेनीवाल ने अपनी पत्नी कनिका बेनीवाल को आरएलपी से मैदान में उतारा। हालांकि, यह दांव उल्टा पड़ गया। भाजपा प्रत्याशी रेवंतराम डांगा ने बेनीवाल परिवार के गढ़ को पहली बार ढहाया।
रेवंतराम डांगा: मिर्धा परिवार के वारिस, भाजपा की जीत के नायक
मिर्धा परिवार की ताकत
रेवंतराम डांगा मिर्धा परिवार से ताल्लुक रखते हैं, जो मारवाड़ क्षेत्र की राजनीति में एक बड़ा नाम है। कांग्रेस ने मिर्धा परिवार के सदस्यों को दो बार खींवसर सीट से मैदान में उतारा, लेकिन वे बेनीवाल को हराने में नाकाम रहे। इस बार भाजपा ने रेवंतराम डांगा को टिकट दिया, जिन्होंने अपनी सटीक रणनीति और मजबूत जनाधार से बाजी पलट दी।
भाजपा की रणनीति
- स्थानीय नेताओं पर भरोसा: भाजपा ने खींवसर सीट के लिए एक स्थानीय और जमीनी नेता का चयन किया।
- माइक्रो मैनेजमेंट: मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और भाजपा संगठन ने डांगा के प्रचार अभियान को बूथ स्तर तक पहुंचाया।
- आरएलपी और कांग्रेस की कमजोरियां: भाजपा ने बेनीवाल की पारिवारिक दावेदारी और कांग्रेस की गुटबाजी को भुनाया।
खींवसर उपचुनाव के नतीजों का महत्व
बेनीवाल परिवार की हार:
पारिवारिक राजनीति पर सवाल: हनुमान बेनीवाल ने अपनी पत्नी कनिका बेनीवाल को उम्मीदवार बनाकर पारिवारिक राजनीति को प्राथमिकता दी। जनता ने इसे नकारते हुए भाजपा को मौका दिया।
स्थानीय मुद्दों की अनदेखी: आरएलपी की चुनावी रणनीति में स्थानीय मुद्दों की जगह बेनीवाल के व्यक्तिगत प्रभाव पर ज्यादा ध्यान दिया गया, जिससे नुकसान हुआ।
भाजपा के लिए मील का पत्थर: भाजपा की यह जीत राज्य में 2024 के विधानसभा चुनाव के लिए सकारात्मक संकेत है। रेवंतराम डांगा की जीत ने साबित कर दिया कि मजबूत स्थानीय उम्मीदवार और बेहतर संगठनात्मक रणनीति के बल पर भाजपा मजबूत होती जा रही है।
उपचुनाव में हार के कारण: आरएलपी और कांग्रेस
आरएलपी की विफलताएं:
परिवारवाद का दांव: जनता ने हनुमान बेनीवाल की पत्नी को टिकट दिए जाने को पारिवारिक राजनीति माना। इससे मतदाताओं का विश्वास कम हुआ।
संगठन की कमजोरी: आरएलपी का संगठनात्मक ढांचा भाजपा और कांग्रेस की तुलना में कमजोर साबित हुआ।
कांग्रेस की कमजोरियां:
गुटबाजी:
कांग्रेस खींवसर में एकजुट रणनीति नहीं बना पाई। पार्टी के गुटों के बीच खींचतान ने चुनावी परिणामों पर असर डाला।
स्थानीय चेहरे की कमी:
कांग्रेस ने मजबूत स्थानीय नेतृत्व को प्राथमिकता नहीं दी, जिससे मतदाताओं का भरोसा कमजोर हुआ।
भाजपा की सफलता के प्रमुख कारण
सटीक उम्मीदवार चयन: भाजपा ने रेवंतराम डांगा जैसे स्थानीय और प्रभावशाली उम्मीदवार पर भरोसा जताया।
माइक्रो मैनेजमेंट: मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और संगठन ने बूथ स्तर तक प्रचार और प्रबंधन पर जोर दिया।
स्थानीय मुद्दों पर फोकस: भाजपा ने खींवसर के किसानों और ग्रामीण विकास से जुड़े मुद्दों को प्रमुखता दी।