मनीषा शर्मा। राजस्थान की राजनीति और न्यायपालिका से जुड़ा एक अहम मामला मंगलवार को सामने आया, जब राजस्थान हाईकोर्ट ने सांसद हनुमान बेनीवाल को फिलहाल विधायक आवास खाली करने से राहत दे दी। जस्टिस समीर जैन की एकलपीठ ने सुनवाई करते हुए संपदा अधिकारी द्वारा की जा रही कार्रवाई पर रोक लगा दी और राज्य सरकार को नोटिस जारी कर दो सप्ताह में जवाब मांगा है।
याचिका में क्या कहा गया?
हनुमान बेनीवाल ने अपनी याचिका में कहा कि उन्हें प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का पालन किए बिना आवास खाली करने का आदेश दिया जा रहा है। उनका आरोप है कि सरकार पक्षपातपूर्ण रवैया अपना रही है और सुनवाई में उनकी बात रखने का पर्याप्त अवसर नहीं दिया गया। बेनीवाल की ओर से पेश अधिवक्ताओं सुमित्रा चौधरी और प्रेमचंद शर्मा ने दलील दी कि संपदा अधिकारी जल्दबाजी में काम कर रहे हैं और याचिकाकर्ता द्वारा दाखिल आवेदनों को मनमाने ढंग से अपमानजनक टिप्पणियों के साथ खारिज किया जा रहा है। यह आचरण राज्य के पक्ष में उनके पूर्वाग्रह को दर्शाता है।
कोर्ट की टिप्पणी और नोटिस
हाईकोर्ट ने मामले में राज्य सरकार से कई अहम सवाल पूछे। अदालत ने कहा कि सरकार यह स्पष्ट करे कि इस तरह के अन्य कौन-कौन से सांसद या विधायक हैं जो पद पर नहीं रहते हुए भी सरकारी आवास का इस्तेमाल कर रहे हैं। इससे यह संकेत मिलता है कि अदालत इस पूरे मामले को व्यापक दृष्टिकोण से देखना चाहती है और यह जांचना चाहती है कि कहीं सरकार ने हनुमान बेनीवाल को चुनिंदा तौर पर निशाना तो नहीं बनाया।
सुनवाई का सिलसिला
इस मामले की शुरुआत तब हुई जब संपदा अधिकारी ने 1 जुलाई को हनुमान बेनीवाल को नोटिस जारी किया। इस नोटिस की पहली सुनवाई 11 जुलाई को हुई। इसके बाद से संपदा अधिकारी लगातार मामले को तेजी से निपटाने की कोशिश कर रहे थे। बेनीवाल के अधिवक्ताओं का कहना है कि बिना पर्याप्त अवसर दिए उनके पक्ष को नजरअंदाज किया जा रहा था। यही कारण है कि उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर की और कार्रवाई को रद्द करने की मांग की।
कब और कैसे मिला था विधायक आवास?
करीब दो साल पहले हनुमान बेनीवाल को विधानसभा के सामने स्थित विधायक आवास परिसर में फ्लैट A-3/703 आवंटित किया गया था। उस समय वे विधायक थे और उन्हें यह सुविधा नियमों के अनुसार दी गई थी। लेकिन बाद में बेनीवाल लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद बन गए। ऐसे में सरकार का मानना है कि अब उन्हें विधायक आवास पर कब्जा बनाए रखने का अधिकार नहीं है। इसी आधार पर जून माह में संपदा अधिकारी के यहां आवास खाली कराने का प्रार्थना पत्र दायर किया गया था।
सरकार और बेनीवाल के बीच टकराव
सरकार का तर्क है कि सांसद और विधायक दोनों को अलग-अलग श्रेणी की सुविधाएं मिलती हैं। यदि हनुमान बेनीवाल सांसद के रूप में सुविधाएं ले रहे हैं, तो उन्हें विधायक आवास खाली करना होगा। वहीं, बेनीवाल का कहना है कि कई अन्य पूर्व विधायक और सांसद भी आवास का इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा रही। इससे यह प्रतीत होता है कि सरकार सिर्फ उन्हीं को निशाना बना रही है, जो कि न्यायसंगत नहीं है।
कोर्ट की अगली कार्यवाही
हाईकोर्ट ने सरकार को दो सप्ताह का समय दिया है ताकि वह इस पूरे मामले में जवाब दाखिल कर सके। इसके साथ ही अदालत ने पूछा है कि सरकार अन्य ऐसे कितने लोगों की सूची पेश कर सकती है जो पद पर नहीं रहते हुए भी सरकारी आवास का उपयोग कर रहे हैं। इस बीच, अदालत ने संपदा अधिकारी द्वारा जारी नोटिस और उससे जुड़ी कार्रवाई पर रोक लगा दी है। यानी फिलहाल हनुमान बेनीवाल को आवास खाली नहीं करना होगा।
राजनीतिक महत्व
हनुमान बेनीवाल राजस्थान की राजनीति में एक चर्चित और मुखर नेता माने जाते हैं। वे कई बार सरकार की नीतियों की आलोचना करते रहे हैं। ऐसे में इस मामले को केवल प्रशासनिक कार्रवाई नहीं, बल्कि एक राजनीतिक विवाद के रूप में भी देखा जा रहा है। विपक्ष इसे सरकार का राजनीतिक बदला बता सकता है, जबकि सरकार इसे नियमों के पालन की कार्रवाई कह रही है। आने वाले दिनों में कोर्ट में होने वाली सुनवाई से यह तय होगा कि यह मामला किस दिशा में जाएगा।