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जैसलमेर के देगराय ओरण में दिखे चीन से आए दुर्लभ प्रवासी पक्षी ग्रेट कॉर्मोरेंट

जैसलमेर के देगराय ओरण में दिखे चीन से आए दुर्लभ प्रवासी पक्षी ग्रेट कॉर्मोरेंट

मनीषा शर्मा।  राजस्थान के मरुस्थलीय इलाकों में जहां कभी पानी की एक बूंद के लिए तरसना पड़ता था, वहीं अब जीवन का एक नया रंग देखने को मिल रहा है। जैसलमेर जिले के देगराय ओरण क्षेत्र में इस बार दुर्लभ प्रवासी पक्षी ग्रेट कॉर्मोरेंट (Great Cormorant) के दो जोड़े देखे गए हैं। यह दृश्य न केवल पक्षी प्रेमियों के लिए उत्साह का विषय बना हुआ है, बल्कि पर्यावरणविदों के लिए भी आशा की किरण साबित हो रहा है। देगराय ओरण का तालाब, जो कभी सूखे और बंजर भूमि का प्रतीक माना जाता था, अब प्रवासी पक्षियों के लिए एक नया सुरक्षित आश्रय स्थल बन गया है। इस दृश्य ने स्थानीय लोगों में जल संरक्षण और पर्यावरणीय जागरूकता की भावना को और मजबूत किया है।

ग्रेट कॉर्मोरेंट: रेगिस्तान में जल का संकेतक पक्षी

ग्रेट कॉर्मोरेंट, जिसे हिंदी में बड़ा जलकाग कहा जाता है, एक ऐसा पक्षी है जो सामान्यतः झीलों, नदियों और जलाशयों के किनारे पाया जाता है। यह मुख्य रूप से मछलियों का शिकारी होता है और अपने लंबे चोंच और तीव्र दृष्टि की मदद से पानी के भीतर शिकार पकड़ने में माहिर है। वाइल्डलाइफ एक्सपर्ट और पक्षी प्रेमी सुमेर सिंह बताते हैं कि ग्रेट कॉर्मोरेंट हर साल अक्टूबर से मार्च के बीच यूरोप, चीन और उत्तरी एशिया के ठंडे क्षेत्रों से भारत की ओर प्रवास करता है। सामान्यतः यह राजस्थान के जलसमृद्ध क्षेत्रों में देखा जाता है, लेकिन इस बार इसका रेगिस्तान के मध्य बसे देगराय ओरण में डेरा जमाना पर्यावरणीय दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।

रेगिस्तान में जीवन का संकेत: जल स्रोतों के पुनर्जीवन का परिणाम

स्थानीय पर्यावरणविदों का कहना है कि देगराय ओरण में इन प्रवासी पक्षियों की उपस्थिति यह दर्शाती है कि क्षेत्र के जल स्रोतों में पुनर्जीवन हुआ है। पिछले कुछ वर्षों में यहां वर्षा जल संरक्षण, तालाबों की सफाई और पुनर्भरण परियोजनाओं पर गंभीरता से काम किया गया है। अब इस क्षेत्र में लगातार जलभराव, बढ़ते पेड़-पौधे और नमी ने प्रवासी पक्षियों के लिए एक अनुकूल आवास तैयार कर दिया है। जल संरक्षण के इन प्रयासों ने न केवल स्थानीय पर्यावरण को पुनर्जीवित किया है बल्कि अब यह स्थान जैव विविधता (Biodiversity) का नया केंद्र बनता जा रहा है। वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि यह बदलाव संकेत देता है कि रेगिस्तान में भी यदि प्राकृतिक संसाधनों का संतुलन बनाए रखा जाए, तो यहां का पारिस्थितिक तंत्र (Ecosystem) फिर से जीवंत हो सकता है।

रंग बदलने वाला पक्षी: प्रजनन काल की अद्भुत प्रक्रिया

ग्रेट कॉर्मोरेंट की एक और विशेषता इसका प्रजनन काल में रंग बदलना है। सामान्य रूप से यह पक्षी गहरे काले रंग का होता है, लेकिन जैसे ही प्रजनन काल शुरू होता है, इसकी गर्दन के पास सफेद धब्बे और आंखों के चारों ओर सुनहरा आभा दिखाई देने लगती है। यह रंग परिवर्तन इसका साथी को आकर्षित करने का संकेत होता है। देगराय ओरण तालाब के किनारों पर इन पक्षियों को अपने पंख फैलाकर धूप में सुखाते हुए देखा जा सकता है। यह दृश्य न केवल मनमोहक है बल्कि यह संकेत भी देता है कि यह क्षेत्र इन पक्षियों के लिए प्राकृतिक आवास (Habitat) के रूप में सुरक्षित और उपयुक्त है।

प्रवासी पक्षी और स्थानीय समुदाय का संतुलन

वन अधिकारी कुमार शुभम का कहना है कि प्रवासी पक्षियों की सुरक्षा के लिए स्थानीय समुदाय की भूमिका बहुत अहम है। कई बार बच्चे या मछुआरे इन्हें पत्थर मारकर डराने की कोशिश करते हैं, जिससे ये पक्षी क्षेत्र छोड़ देते हैं। उन्होंने अपील की है कि ग्रामीण इन पक्षियों को परेशान न करें और उनके संरक्षण में सहयोग करें, क्योंकि ये पक्षी स्थानीय पारिस्थितिकी का हिस्सा हैं और जलाशयों के स्वास्थ्य के प्रतीक हैं। स्थानीय बुजुर्गों का कहना है कि दशक भर पहले ऐसे प्रवासी पक्षी बहुत कम दिखाई देते थे, लेकिन अब हर सर्दी में इनकी उपस्थिति बढ़ रही है। इसे जल संरक्षण और पर्यावरणीय सुधार के प्रयासों का प्रत्यक्ष परिणाम माना जा रहा है।

राजस्थान प्रवासी पक्षियों का प्रिय ठिकाना क्यों है?

राजस्थान का भूगोल भले ही शुष्क और मरुस्थलीय है, लेकिन इसके कई क्षेत्र जैसे भरतपुर, जैसलमेर, अजमेर और नागौर प्रवासी पक्षियों के लिए बेहद अनुकूल हैं। यहां मौजूद कृत्रिम जलाशय, ओरण तालाब, छोटे नाले और रेतीले मैदानों में बनी नमी प्रवासी पक्षियों को आराम, भोजन और सुरक्षा प्रदान करती है। यही कारण है कि राजस्थान विश्व प्रवासी पक्षी मार्ग (Migratory Bird Route) का एक अहम हिस्सा बन चुका है। हर साल सर्दियों की शुरुआत के साथ हजारों किलोमीटर दूर से पक्षी यहां आते हैं और राजस्थान की झीलों, नदियों और ओरणों में जीवन का उत्सव रचते हैं।

जैसलमेर का देगराय ओरण: नया बर्ड हैबिटेट बनने की दिशा में

देगराय ओरण, जो कभी सूखे मरुस्थल का प्रतीक था, अब स्थानीय प्रशासन और ग्रामीणों के संयुक्त प्रयासों से एक नए बर्ड हैबिटेट (Bird Habitat) के रूप में विकसित हो रहा है। वन विभाग और ग्राम पंचायतों ने मिलकर यहां तालाबों की डीपेनिंग, वर्षा जल संग्रहण और चारागाह विकास जैसे कार्य किए हैं। परिणामस्वरूप, अब यहां न केवल ग्रेट कॉर्मोरेंट बल्कि अन्य प्रवासी पक्षी जैसे पेंटेड स्टॉर्क, ओपनबिल, और स्पूनबिल भी देखे जा रहे हैं।

पर्यावरण के लिए संदेश

देगराय ओरण में ग्रेट कॉर्मोरेंट की उपस्थिति यह दर्शाती है कि यदि प्रकृति के साथ तालमेल बैठाया जाए, तो रेगिस्तान भी जीवन से भर सकता है। यह उदाहरण बताता है कि जल संरक्षण और पर्यावरणीय पुनर्स्थापन केवल सरकारी नीतियों पर निर्भर नहीं, बल्कि स्थानीय समुदायों की भागीदारी से संभव है। आज जब पूरा विश्व जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता के संकट से जूझ रहा है, ऐसे में राजस्थान के रेगिस्तान में इन प्रवासी पक्षियों का लौटना आशा और संतुलन का प्रतीक बन गया है।

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