मनीषा शर्मा। राजस्थान में एक बार फिर इतिहास और राजनीति के संगम से उपजा विवाद सुर्खियों में आ गया है। मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय की कुलगुरु सुनीता मिश्रा के औरंगजेब को “कुशल प्रशासक” कहने वाले बयान को लेकर उठे विवाद पर राज्यपाल हरिभाऊ बागडे ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि “जिस शासक ने मंदिर तोड़े, छत्रपति शिवाजी महाराज के बेटे संभाजी के शरीर के टुकड़े किए, वह कुशल प्रशासक कैसे हो सकता है।” राज्यपाल ने इस विवाद को लेकर न केवल अपना रुख स्पष्ट किया बल्कि यह भी कहा कि सार्वजनिक मंच पर किसी भी व्यक्ति को अपने शब्दों के प्रयोग में जिम्मेदारी और संवेदनशीलता दिखानी चाहिए।
“औरंगजेब कुशल प्रशासक नहीं हो सकता” — राज्यपाल बागडे
राज्यपाल हरिभाऊ बागडे ने कहा — “ये पिछले दिनों उदयपुर की घटना है। मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय की कुलगुरु प्रो. सुनीता मिश्रा ने बयान दिया था कि औरंगजेब का मैनेजमेंट अच्छा था। ऐसे में लोगों ने उनसे पूछा कि बताओ कैसे अच्छा था? औरंगजेब ने छत्रपति शिवाजी महाराज के बेटे संभाजी के हाथ तोड़े, जीभ काटी और शरीर के टुकड़े किए। उसने राजस्थान में मंदिर तोड़े, फरमान निकाले। तो क्या यह अच्छा प्रशासन कहलाएगा?” उन्होंने कहा कि किसी भी लोकतांत्रिक या सामाजिक मंच पर दिए गए शब्दों का वजन होता है। ऐसे में किसी ऐतिहासिक व्यक्ति को लेकर दिए गए बयानों में संतुलन जरूरी है।
वाणी में संयम और शब्दों की जिम्मेदारी
राज्यपाल बागडे ने अपने संबोधन में आगे कहा — “जीवन में अच्छा बोलना चाहिए। सोच-समझकर अपने शब्दों को मुंह से निकालना चाहिए। अपने शब्द और वाणी का ध्यान रखना बेहद जरूरी है क्योंकि शब्द अपनी संपत्ति होते हैं। अगर कोई भी कुछ भी बोलता है तो उसका प्रभाव अच्छा या बुरा दोनों हो सकता है। इसलिए बोलते समय यह समझना चाहिए कि सामने वाला क्या ग्रहण करेगा।” उन्होंने कहा कि शब्दों में संयम और सावधानी ही किसी भी व्यक्ति की विश्वसनीयता को स्थापित करती है।
“कंपनी और व्यवहार के अकाउंट को सही रखो” — कौटिल्य का उदाहरण
राज्यपाल ने अपने संबोधन में कौटिल्य के अर्थशास्त्र का उदाहरण देते हुए कहा — “कंपनी और व्यवहार के अकाउंट को सही रखना बेहद महत्वपूर्ण है। कौटिल्य ने एक दीपक राष्ट्रीय खजाने के तेल से जलाया था, क्योंकि वह सरकारी काम कर रहे थे। जैसे ही उनका निजी काम शुरू हुआ, उन्होंने दूसरा दीपक जलाया ताकि राष्ट्रीय संपत्ति का दुरुपयोग न हो। यही अच्छी प्रशासनिक सोच और आदर्श व्यवहार होता है।” उन्होंने कहा कि अच्छी सोच और अच्छे व्यवहार से ही देश की प्रगति होती है। इसी सोच को बच्चों में भी विकसित करने की जरूरत है ताकि वे अच्छे नागरिक और अधिकारी बन सकें।
“राष्ट्र हित की सोच से बनेंगे आदर्श नागरिक”
राज्यपाल ने कहा — “अच्छे व्यवहार और राष्ट्र हित की सोच रखने वाले बच्चे ही देश का भविष्य बनते हैं। आदर्श रूप को अपने जीवन में अपनाना चाहिए। यदि हर व्यक्ति राष्ट्र हित को ध्यान में रखकर आचरण करेगा तो देश की प्रगति निश्चित है। इससे न केवल अच्छे अधिकारी बल्कि अच्छे नागरिक भी तैयार होंगे।” उन्होंने शिक्षा संस्थानों से भी आग्रह किया कि वे छात्रों में इस सोच को विकसित करें ताकि आने वाली पीढ़ी जिम्मेदार नागरिक बन सके।
विवाद की जड़ — सुनीता मिश्रा का बयान
इस विवाद की शुरुआत 12 सितंबर 2025 को मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के एक कार्यक्रम में हुई। कार्यक्रम के दौरान कुलगुरु प्रो. सुनीता मिश्रा ने कहा था — “ऐतिहासिक दृष्टिकोण से हम महाराणा प्रताप, पृथ्वीराज चौहान और अकबर जैसे कई राजा-महाराजाओं के बारे में सुनते हैं। इनमें कुछ औरंगजेब जैसे कुशल प्रशासक (एडमिनिस्ट्रेटर) भी थे।”
जैसे ही उनका यह बयान सार्वजनिक हुआ, परिसर में हंगामा मच गया। छात्रों और कई संगठनों ने कुलगुरु के बयान का विरोध करते हुए धरना-प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों का कहना था कि औरंगजेब जैसे शासक को ‘कुशल प्रशासक’ कहना इतिहास और समाज दोनों के साथ अन्याय है।
माफी के बाद भी थमा नहीं विवाद
विवाद बढ़ते ही कुलगुरु प्रो. सुनीता मिश्रा ने माफी मांग ली। उन्होंने कहा कि उनके बयान को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया। उन्होंने कहा — “मैंने औरंगजेब की प्रशंसा में कुछ नहीं कहा। मैं मूलतः अहिन्दी भाषी हूं, जिसके कारण सुनने में भाषा संबंधी असमंजस हुआ। मेरा मकसद किसी की भावनाओं को आहत करना नहीं था। अगर किसी को ठेस पहुंची है तो मैं क्षमा चाहती हूं।” इसके बावजूद इस बयान को लेकर विरोध थमा नहीं और अब राज्यपाल हरिभाऊ बागडे की प्रतिक्रिया से यह मामला और राजनीतिक रूप से भी संवेदनशील हो गया है।
राजनीतिक और सामाजिक हलकों में प्रतिक्रिया
औरंगजेब को लेकर दिया गया यह बयान अब इतिहास, राजनीति और शिक्षा के बीच टकराव का मुद्दा बन गया है। एक ओर जहां कुछ लोगों का मानना है कि ऐतिहासिक व्यक्तियों पर अकादमिक बहस हो सकती है, वहीं बड़ी संख्या में लोग इस बात को मानते हैं कि जिन शासकों ने धार्मिक स्थलों को नष्ट किया, उनके लिए ‘कुशल प्रशासक’ जैसे शब्द का प्रयोग उचित नहीं। राज्यपाल की टिप्पणी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि संवेदनशील ऐतिहासिक विषयों पर बोलते समय सार्वजनिक पदों पर बैठे लोगों को अधिक जिम्मेदारी दिखानी चाहिए।