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RUHS दीक्षांत समारोह में राज्यपाल हरिभाऊ बागडे ने जताई नाराजगी

RUHS दीक्षांत समारोह में राज्यपाल हरिभाऊ बागडे ने जताई नाराजगी

शोभना शर्मा।  राजस्थान यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ एंड साइंसेज (RUHS) के 10वें दीक्षांत समारोह के दौरान एक अप्रत्याशित दृश्य देखने को मिला, जब राज्यपाल हरिभाऊ बागडे ने कार्यक्रम में भाग ले रहे डॉक्टरों और स्टूडेंट्स के अनुशासन पर सार्वजनिक रूप से नाराजगी जताई। बिड़ला सभागार में आयोजित इस दीक्षांत समारोह में जैसे ही कुछ डॉक्टर्स डिग्री और सर्टिफिकेट लेकर बीच कार्यक्रम में ही जाने लगे, राज्यपाल ने सख्त लहजे में उनकी आलोचना की।

राज्यपाल ने कार्यक्रम के दौरान मंच से स्पष्ट कहा, “जिन डॉक्टर्स ने अभी सर्टिफिकेट लिए हैं, वो बाहर जा रहे हैं। क्या सिर्फ आपको ही काम है और बाकी लोगों को नहीं? किसी को भी बाहर मत जाने दो।” उनका यह बयान सभागार में मौजूद लोगों के लिए एक गंभीर चेतावनी जैसा था, जो दर्शाता है कि राज्यपाल उच्च शिक्षा और मेडिकल पेशे में अनुशासन की कितनी अहमियत मानते हैं।

डिग्री मिलने में देरी पर उठाए सवाल

राज्यपाल ने केवल डॉक्टर्स के व्यवहार पर ही नहीं, बल्कि विश्वविद्यालय की प्रशासनिक प्रक्रियाओं पर भी सवाल उठाए। उन्होंने पूछा कि जब परीक्षा वर्ष 2023 में पूरी हो चुकी थी, तो डिग्रियां अब 2025 में क्यों दी जा रही हैं? उन्होंने सुझाव दिया कि भविष्य में जिस वर्ष परीक्षा संपन्न हो, उसी वर्ष दीक्षांत समारोह आयोजित कर डिग्रियां वितरित की जाएं। इससे स्टूडेंट्स को समय पर अपनी चिकित्सा प्रैक्टिस शुरू करने में सुविधा होगी और उनके करियर में अनावश्यक विलंब नहीं होगा।

उन्होंने यह भी कहा कि डिग्री देना केवल एक रस्म न बन जाए, बल्कि छात्रों को वास्तविक ज्ञान भी दिया जाए। वर्तमान शिक्षा प्रणाली पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा कि आज छात्र केवल डिग्री लेने तक सीमित रह गए हैं, जबकि उनके पास बौद्धिक समझ और व्यावहारिक ज्ञान की भारी कमी है। इस स्थिति को उन्होंने आने वाली पीढ़ियों के लिए हानिकारक बताया।

यूनिवर्सिटी के वैश्विक कोलैबोरेशन पर चिंता

राज्यपाल हरिभाऊ बागडे ने एक और गंभीर विषय उठाया—यूनिवर्सिटी के वैश्विक स्तर पर कोलैबोरेशन की कमी। उन्होंने कहा कि RUHS को स्थापित हुए 10 से 12 साल से ज्यादा हो चुके हैं, लेकिन आज तक इस यूनिवर्सिटी का किसी अन्य देश या विदेश की यूनिवर्सिटी से कोई शैक्षणिक समझौता नहीं हुआ है। उन्होंने बताया कि दुनिया की कई प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटीज में भारत और राजस्थान के प्रोफेसर काम कर रहे हैं। ऐसे में यदि कोलैबोरेशन होता तो छात्रों को नए अवसर और ज्ञान के आयाम मिल सकते थे।

राज्यपाल ने यह भी कहा कि इस तरह के वैश्विक जुड़ाव से छात्रों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मेडिकल शिक्षा के नए मानकों से परिचित कराया जा सकता है, जिससे उनकी समझ और दक्षता में वृद्धि होगी। उन्होंने कहा कि सिर्फ नाम के लिए यूनिवर्सिटी चलाना अब काफी नहीं है, बल्कि उसे वैश्विक शिक्षा प्रणाली का हिस्सा बनाना जरूरी है।

मेडिकल शिक्षा में गुणवत्ता की कमी पर चिंता

राज्यपाल बागडे ने मेडिकल शिक्षा की वर्तमान स्थिति को भी आड़े हाथों लिया। उन्होंने कहा कि यह बेहद अजीब है कि आजकल इंजीनियर और डॉक्टर जैसे पेशे से जुड़े लोग भी बेरोजगारी का सामना कर रहे हैं। इसका मुख्य कारण उन्होंने ‘टैलेंट की कमी’ बताया। उन्होंने कहा कि जब छात्रों को केवल डिग्री दी जाती है लेकिन उन्हें विषय का गहराई से ज्ञान नहीं दिया जाता, तो यह उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ है।

उन्होंने मेडिकल स्टूडेंट्स और विश्वविद्यालयों से आग्रह किया कि वे केवल शैक्षणिक प्रमाणपत्रों पर नहीं, बल्कि शिक्षा की गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित करें। यदि आज इस दिशा में काम नहीं किया गया, तो भविष्य में चिकित्सा क्षेत्र की साख और सेवा दोनों पर गंभीर संकट आ सकता है।

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