शोभना शर्मा, अजमेर। अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के तत्वाधान में राजस्थान के अजमेर स्थित महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय (एमडीएस यूनिवर्सिटी) में रविवार को एक शिक्षक सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस सम्मेलन में राज्यपाल हरिभाऊ बागडे मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए। अपने संबोधन में उन्होंने शिक्षा, शिक्षकों की भूमिका और विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास पर अपने विचार रखे।
राज्यपाल हरिभाऊ बागडे ने अपने संबोधन में कहा कि शिक्षा का पहला शिक्षक माता-पिता होते हैं, जो बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा में अहम भूमिका निभाते हैं। इसके बाद विद्यालय के शिक्षक विद्यार्थियों को मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि विद्यार्थियों को केवल किताबी ज्ञान तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि उन्हें व्यवहारिक ज्ञान भी प्राप्त होना चाहिए।
राज्यपाल ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि हालांकि वे किसी स्कूल में शिक्षक नहीं रहे, लेकिन उन्होंने शाखा में शिक्षक की भूमिका निभाई है। उन्होंने एक महत्वपूर्ण विचार साझा करते हुए कहा कि यदि किसी देश को कमजोर करना हो तो उसकी शिक्षा व्यवस्था को बिगाड़ दो। यदि किसी राष्ट्र की शिक्षा अच्छी है, तो उसका भविष्य उज्ज्वल होगा। कार्यक्रम के दौरान उन्होंने रूस के एक विश्वविद्यालय का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां एक बोर्ड पर लिखा है कि एक देश को बर्बाद करने के लिए बम की जरूरत नहीं होती, उसकी शिक्षा व्यवस्था को बिगाड़ना ही काफी है। इस संदर्भ में उन्होंने भारतीय शिक्षा व्यवस्था को सुधारने और मजबूत करने पर जोर दिया।
राज्यपाल ने एक दिलचस्प घटना का जिक्र करते हुए बताया कि कैसे एक वीडियो में एक छोटे बच्चे ने अपने पिता को करंट लगने से बचाया। इस बच्चे ने टेबल पर खड़े होकर बिजली का बटन बंद कर अपने पिता की जान बचाई। इससे यह स्पष्ट होता है कि बच्चे व्यवहारिक ज्ञान से कितनी महत्वपूर्ण चीजें सीख सकते हैं। इस प्रकार की शिक्षा हमारे देश में भी जरूरी है।
उन्होंने इस बात पर भी ध्यान दिलाया कि कई बार शिक्षक जिस विद्यालय में पढ़ाते हैं, उनके खुद के बच्चे उस विद्यालय में नहीं पढ़ते। उन्होंने इस सोच में बदलाव की आवश्यकता पर बल दिया और कहा कि शिक्षकों को अपने बच्चों को उसी विद्यालय में पढ़ाना चाहिए, जहां वे खुद पढ़ाते हैं। इससे शिक्षा के स्तर में सुधार होगा और समाज में शिक्षकों की जिम्मेदारी बढ़ेगी।
सम्मेलन के दौरान राज्यपाल बागडे ने नई शिक्षा नीति की भी सराहना की और कहा कि इसमें व्यवहारिक ज्ञान और राष्ट्र निर्माण के विचारों को शामिल किया गया है, जो विद्यार्थियों के समग्र विकास में सहायक होंगे। उन्होंने संत ज्ञानेश्वर और महर्षि दयानंद सरस्वती की शिक्षाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि उनके विचारों को जीवन में अपनाने की आवश्यकता है।
राज्यपाल ने अपने संबोधन के अंत में कहा कि शिक्षा सिर्फ किताबी ज्ञान नहीं होनी चाहिए, बल्कि वह विद्यार्थियों की भौतिक और मानसिक क्षमताओं को भी बढ़ाने में सहायक होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि जब तक व्यवहारिक ज्ञान के साथ किताबी ज्ञान नहीं मिलेगा, तब तक विद्यार्थी का ज्ञान सीमित रहेगा। यह सम्मेलन शिक्षकों, विद्यार्थियों और शिक्षा नीति से जुड़े विभिन्न विषयों पर गंभीर चर्चा का केंद्र रहा। कई विश्वविद्यालयों के कुलपति और शिक्षक भी इस आयोजन में शामिल हुए और शिक्षा के विभिन्न पहलुओं पर अपने विचार व्यक्त किए।


