मनीषा शर्मा। राजस्थान यूनिवर्सिटी में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत छात्रों को भारतीय ज्ञान और दर्शनशास्त्र की शिक्षा देने का एक नया पहलू शुरू किया गया है। इस नई पहल का उद्देश्य भारतीय ज्ञान परंपरा और दर्शन को छात्रों के सिलेबस का अनिवार्य हिस्सा बनाना है, ताकि वे भारतीय संस्कृति और प्राचीन ज्ञान के पहलुओं से अवगत हो सकें। इसके तहत यूजी (अंडरग्रेजुएट) और पीजी (पोस्टग्रेजुएट) छात्रों के लिए कुछ महत्वपूर्ण पुस्तकों को शामिल किया गया है, जिनमें करपात्री महाराज की ‘गोपी गीत’ और ‘वेद का स्वरूप और प्रमाण’ प्रमुख हैं। यह सभी कोर्स अनिवार्य वैल्यू ऐडेड कोर्स के रूप में पढ़ाए जाएंगे, जिसमें पास होना अनिवार्य होगा।
भारतीय ज्ञान और दर्शन को सिलेबस में शामिल करने का उद्देश्य
राजस्थान यूनिवर्सिटी की कुलपति प्रोफेसर अल्पना कटेजा ने बताया कि दर्शनशास्त्र विभाग में भारतीय ज्ञान परंपरा को सिलेबस में शामिल करने का मकसद यह है कि छात्रों को भारतीय सभ्यता और उसकी प्राचीन ज्ञान परंपराओं से जोड़ा जाए। प्रो. कटेजा ने बताया कि राजस्थान यूनिवर्सिटी का दर्शनशास्त्र विभाग देश में एक विशेष पहचान रखता है, जिसमें प्रसिद्ध दार्शनिकों जैसे दया कृष्णा, विशंभर पाही और राजेंद्र स्वरूप भटनागर के योगदान से यह संभव हुआ है। उनकी यही कोशिश है कि छात्रों को दर्शनशास्त्र की पढ़ाई के साथ ही प्रतियोगी परीक्षाओं में भी सफलता प्राप्त हो।
अन्य विभागों में भी सिलेबस का होगा सुधार
यह सिर्फ फिलॉसफी डिपार्टमेंट तक सीमित नहीं रहेगा; अन्य विभागों में भी भारतीय ज्ञान को समायोजित करने का प्रयास किया जा रहा है। वर्तमान में वेद और उपनिषद के अध्ययन को करपात्री महाराज की किताबों से जोड़ा गया है। आगे चलकर अन्य विषयों में भी भारतीय ज्ञान को जोड़ा जाएगा ताकि शिक्षा का एक समग्र विकास हो सके।
नई शिक्षा नीति के तहत धीरे-धीरे हो रहा बदलाव
इस बदलाव की प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हुए राजस्थान यूनिवर्सिटी ने नेशनल एजुकेशन पॉलिसी (NEP) 2020 के अनुसार सिलेबस में बदलाव किए हैं। यूनिवर्सिटी के प्रोफेसरों ने इस बात का सुझाव दिया कि छात्रों को भारतीय आध्यात्मिक परंपरा से जोड़ने से उनके व्यक्तित्व और सांस्कृतिक पहचान का विकास होगा। यूनिवर्सिटी में आध्यात्मिक गुरु स्वामी अभिषेक ब्रह्मचारी ने इसे एक सकारात्मक कदम बताते हुए कहा कि बरसों पुरानी मैकाले शिक्षा पद्धति से हटकर अब भारतीय ज्ञान परंपरा को पढ़ाना उचित है।
यूजी और पीजी कोर्स में किया गया बदलाव
राजस्थान यूनिवर्सिटी में दर्शनशास्त्र विषय के यूजी (Undergraduate) और पीजी (Postgraduate) कोर्सेस में भारतीय ज्ञान और शास्त्रीय साहित्य को शामिल किया गया है। फिलॉसफी डिपार्टमेंट के सहायक प्रोफेसर अनुभव वार्ष्णेय ने बताया कि UGC के परामर्श के अनुसार इंडियन वैल्यू सिस्टम के तहत एक मॉड्यूल बनाया गया है। इस बदलाव के तहत छात्रों को प्रथम वर्ष से ही भारतीय ज्ञान परंपरा और शास्त्रीय साहित्य का अध्ययन कराना शुरू किया गया है।
यह पाठ्यक्रम विशेष रूप से पीजी कोर्स में पहले और दूसरे सेमेस्टर के छात्रों के लिए तैयार किया गया है, जिसमें शास्त्रीय भारतीय दर्शन के विभिन्न पहलुओं को सम्मिलित किया गया है। इसके साथ ही यूजी और पीजी के छात्रों को वेद और उपनिषद के पाठ्यक्रम में करपात्री महाराज द्वारा लिखित ‘गोपी गीत’ और ‘वेद का स्वरूप और प्रमाण’ भी पढ़ाई जा रही हैं।
भारतीय ज्ञान परंपरा की ओर कदम बढ़ाने का प्रयास
फिलॉसफी डिपार्टमेंट के इस सिलेबस बदलाव के पीछे यह विचार है कि आधुनिक छात्रों को भारतीय दर्शन और सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति जागरूक किया जाए। भारतीय ज्ञान परंपरा आध्यात्मिक दृष्टिकोण से परे एक गहरा दार्शनिक आयाम भी रखती है, जिसे छात्रों तक पहुंचाना जरूरी है। इसके माध्यम से छात्रों को भारतीय ग्रंथों, विशेषकर वेद और उपनिषद के अध्ययन के महत्व और उनके आध्यात्मिक विचारों के साथ दार्शनिक गहराई से परिचित कराया जाएगा।
‘गोपी गीत’ और ‘वेद का स्वरूप और प्रमाण’ का महत्व
करपात्री महाराज द्वारा लिखित ‘गोपी गीत’ और ‘वेद का स्वरूप और प्रमाण’ को भारतीय ज्ञान परंपरा में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। इन पुस्तकों का सिलेबस में शामिल होना यह दर्शाता है कि यूनिवर्सिटी इस ज्ञान का महत्व समझती है। वेद के विभिन्न पहलुओं को समझाने के साथ-साथ इन ग्रंथों में जीवन को समझने और आध्यात्मिक शांति प्राप्त करने के सूत्र भी शामिल हैं।
छात्रों के भविष्य में सकारात्मक प्रभाव
इस नए सिलेबस से छात्रों को भारतीय दर्शनशास्त्र और भारतीय संस्कृति को करीब से समझने का अवसर मिलेगा। इस बदलाव का मकसद केवल शिक्षा तक सीमित नहीं है, बल्कि छात्रों को एक मूल्यवान जीवन दर्शन और नैतिकता का मार्गदर्शन भी देना है। प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए यह कोर्स सहायक साबित होगा, जिससे छात्रों का सामान्य ज्ञान और संस्कृति की समझ भी बढ़ेगी।