मनीषा शर्मा। राजस्थान विधानसभा में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर टिप्पणी से शुरू हुआ विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। इस मुद्दे पर कांग्रेस के विधायकों ने सदन का बहिष्कार करते हुए मंगलवार को विधानसभा के मुख्य द्वार पर धरना दिया। इस प्रदर्शन में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट, नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा सहित तमाम विधायक मौजूद रहे।
गहलोत और पायलट के एक साथ धरने में बैठने के बाद राजनीतिक गलियारों में चर्चाएं तेज हो गई हैं—क्या दोनों नेताओं के बीच मतभेद वाकई खत्म हो गए हैं? यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि दो साल पहले सचिन पायलट ने खुद गहलोत सरकार के खिलाफ धरना दिया था, लेकिन अब दोनों एक मंच पर नजर आए।
धरने की वजह: इंदिरा गांधी पर टिप्पणी
गतिरोध की शुरुआत शुक्रवार, 21 फरवरी को तब हुई जब विधानसभा में कैबिनेट मंत्री अविनाश गहलोत ने इंदिरा गांधी को लेकर टिप्पणी की। उन्होंने कहा—
“हर बार की तरह आपने अपनी दादी इंदिरा गांधी के नाम पर योजना बनाई थी।”इसमें ‘दादी’ शब्द के इस्तेमाल पर कांग्रेस विधायकों ने कड़ा विरोध जताया और इसे पूर्व प्रधानमंत्री का अपमान करार दिया। इसके बाद से ही सदन में हंगामा जारी है और कांग्रेस माफी की मांग पर अड़ी हुई है।
मंगलवार को कांग्रेस विधायकों ने विधानसभा का बहिष्कार कर धरना दिया, जिसमें गहलोत और पायलट पहली बार एक साथ बैठे।
क्या कांग्रेस में आपसी मतभेद खत्म हो गए?
गहलोत और पायलट के एक साथ धरने पर बैठने से यह कयास लग रहे हैं कि कांग्रेस में पुरानी रार खत्म हो रही है। हालांकि, सियासी विश्लेषकों का मानना है कि यह केवल मुद्दे के कारण कांग्रेस की एकजुटता दिखाने की कोशिश है।
दो साल पहले सचिन पायलट ने अशोक गहलोत के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए 11 अप्रैल 2023 को जयपुर में एक दिन का अनशन किया था। उन्होंने आरोप लगाया था कि गहलोत सरकार वसुंधरा राजे के भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रही है। इसके बाद उन्होंने अजमेर से जयपुर तक ‘न्याय यात्रा’ निकाली थी।
गहलोत ने भी पायलट पर खुलकर हमला बोला था और उन्हें ‘निकम्मा, नकारा और गद्दार’ तक कह दिया था। इन बयानों के बाद दोनों नेताओं के बीच दूरियां और बढ़ गई थीं।
अब जब इंदिरा गांधी पर टिप्पणी को लेकर कांग्रेस एकजुट हुई है, तो यह सवाल उठ रहा है कि क्या पार्टी में वाकई मतभेद खत्म हो गए हैं या यह केवल एक राजनीतिक मजबूरी है?
राजनीतिक रणनीति या सच्ची एकता?
विशेषज्ञों का मानना है कि कांग्रेस नेताओं की यह एकता अस्थायी हो सकती है।
यह धरना एक गंभीर मुद्दे (इंदिरा गांधी का अपमान) पर था, जिससे पार्टी को मजबूरन एकजुटता दिखानी पड़ी।
लोकसभा चुनाव नजदीक हैं, ऐसे में कांग्रेस गुटबाजी की छवि से बचना चाहती है।
हाईकमान की ओर से स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि पार्टी को एकजुट दिखना होगा।
कांग्रेस की मांग क्या है?
कांग्रेस विधायकों ने स्पष्ट कर दिया है कि जब तक मंत्री अविनाश गहलोत सदन में माफी नहीं मांगते और उनकी टिप्पणी को विधानसभा की कार्यवाही से नहीं हटाया जाता, तब तक विरोध जारी रहेगा।
आगे क्या होगा?
कांग्रेस इस मुद्दे को और ज्यादा तूल देने की तैयारी में है।
पार्टी इसे लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा के खिलाफ प्रचार का हिस्सा बना सकती है।
गहलोत और पायलट की एकता कितनी टिकाऊ है, यह आने वाले दिनों में साफ हो जाएगा।