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घुश्मेश्वर मंदिर में 25 फरवरी से शुरू होगा पांच दिवसीय लक्खी मेला

घुश्मेश्वर मंदिर में 25 फरवरी से शुरू होगा पांच दिवसीय लक्खी मेला

शोभना शर्मा। राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले के शिवाड़ कस्बे में स्थित घुश्मेश्वर महादेव मंदिर, जो देश के 12वें और अंतिम ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रतिष्ठित है, में 25 फरवरी से 29 फरवरी तक महाशिवरात्रि के अवसर पर पांच दिवसीय लक्खी मेले का आयोजन होने जा रहा है। इस अवसर पर मंदिर ट्रस्ट द्वारा विशेष तैयारियां की गई हैं। रंग-रोगन और भव्य लाइट डेकोरेशन से मंदिर एवं देवगिरी पर्वत चमकने लगे हैं। महाशिवरात्रि के शुभ अवसर पर हजारों श्रद्धालु मंदिर में जलाभिषेक करेंगे और भगवान शिव के दर्शन कर पुण्य लाभ अर्जित करेंगे।

घुश्मेश्वर महादेव मंदिर: आस्था और इतिहास का अद्भुत संगम

सवाई माधोपुर जिला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर दूर स्थित घुश्मेश्वर महादेव मंदिर का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व अत्यंत विशिष्ट है। यह मंदिर भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है और इसकी पौराणिक कथा भी भक्तों के लिए अत्यंत प्रेरणादायक है।

पौराणिक मान्यता के अनुसार, देवगिरी पर्वत के समीप सुधर्मा नामक ब्राह्मण और उनकी पत्नी सुधर्मा रहते थे। संतान सुख से वंचित होने के कारण समाज से उपहास झेलने के बाद, उन्होंने अपनी छोटी बहन सुषमा का विवाह संपन्न कराया। सुषमा भगवान शिव की अनन्य भक्त थीं। भगवान शिव की कृपा से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, लेकिन इस घटना के बाद सुधर्मा के मन में जलन उत्पन्न हो गई।

अहंकार और ईर्ष्या में आकर उन्होंने अपने ही भतीजे की हत्या कर दी और उसके शव को एक सरोवर में फेंक दिया। जब पुत्र वधू ने इस घटना की जानकारी दी, तो सुषमा ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की। शिव जी की कृपा से मृत बालक पुनर्जीवित हो गया और आकाशवाणी हुई कि सुधर्मा ही इस पाप की जिम्मेदार हैं। भगवान शिव ने उन्हें दंडित करने का निर्णय लिया, लेकिन सुषमा ने प्रार्थना की कि भगवान उनकी बहन को केवल सद्बुद्धि दें। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने इस स्थान को “घुश्मेश्वर” नाम से प्रसिद्ध कर दिया और यहीं वास करने का संकल्प लिया।

पांच दिवसीय मेले में होंगे विशेष धार्मिक आयोजन

हर वर्ष महाशिवरात्रि के अवसर पर शिवाड़ कस्बे में भव्य मेला आयोजित किया जाता है। 2024 में यह मेला 25 फरवरी से 29 फरवरी तक चलेगा। इस दौरान मंदिर ट्रस्ट द्वारा विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा।

मेले का शुभारंभ मंगलवार को ध्वजारोहण और दीप प्रज्वलन के साथ होगा। साथ ही मंदिर परिसर में विशाल शोभायात्रा निकाली जाएगी, जिसमें हजारों श्रद्धालु भाग लेंगे। धार्मिक आयोजनों के तहत विशेष पूजन, रुद्राभिषेक, भजन-कीर्तन और प्रवचन होंगे। इसके अलावा, मंदिर में भक्तों के लिए विशेष दर्शन व्यवस्था की गई है ताकि अधिकतम संख्या में श्रद्धालु भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त कर सकें।

घुश्मेश्वर मंदिर और देवगिरी पर्वत की अद्वितीय भव्यता

घुश्मेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण प्राचीन काल में हुआ था और इसका इतिहास लगभग 900 वर्षों से भी अधिक पुराना बताया जाता है। यह शिवलिंग स्वयं प्रकट हुआ माना जाता है और इसे पाताल लोक से जुड़ा हुआ कहा जाता है।

वेदों और उपनिषदों में भी इस ज्योतिर्लिंग का उल्लेख मिलता है। महर्षि वेदव्यास ने उपनिषदों में घुश्मेश्वर मंदिर की महिमा का वर्णन किया है।

मंदिर के पास स्थित देवगिरी पर्वत भी भक्तों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र है। मंदिर ट्रस्ट द्वारा पर्वत क्षेत्र को विकसित कर वहां कई देवी-देवताओं की भव्य प्रतिमाएं स्थापित की गई हैं। इस पर्वत से मंदिर का विहंगम दृश्य अत्यंत मनमोहक लगता है, जो श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है।

मुरादें पूरी करने वाला मंदिर

घुश्मेश्वर महादेव मंदिर के बारे में मान्यता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से यहां भगवान शिव के दर्शन करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इस मंदिर में जल चढ़ाने और पूजा-अर्चना करने से भक्तों को विशेष फल प्राप्त होता है।

सालभर यहां भक्तों का आना-जाना लगा रहता है, लेकिन महाशिवरात्रि के अवसर पर मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। देश के कोने-कोने से श्रद्धालु यहां दर्शन करने के लिए आते हैं और भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

शिवाड़ महाशिवरात्रि मेला: धार्मिक, सांस्कृतिक और पर्यटन महत्व

पांच दिवसीय शिवाड़ मेला केवल धार्मिक आयोजन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पर्यटन और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह मेला राजस्थान की धार्मिक परंपराओं, लोक संस्कृति और श्रद्धालुओं की अटूट आस्था का प्रतीक है।

पर्यटक और श्रद्धालु इस अवसर पर न केवल भगवान शिव के दर्शन करने आते हैं, बल्कि देवगिरी पर्वत के प्राकृतिक सौंदर्य का भी आनंद लेते हैं। इस मेले में आने वाले लोग शिव भक्ति में लीन होकर आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त करते हैं।

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