मनीषा शर्मा । देश में बढ़ती कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और डिजिटल तकनीकों के उपयोग को देखते हुए निर्वाचन आयोग (ECI) ने चुनावी प्रचार में एआई-निर्मित या डिजिटल रूप से संशोधित सामग्री के दुरुपयोग को रोकने के लिए नई गाइडलाइन जारी की है। आयोग ने यह कदम चुनावी पारदर्शिता और मतदाता विश्वास की रक्षा के लिए उठाया है, ताकि फर्जी या भ्रामक डिजिटल सामग्री के जरिए मतदाताओं को गुमराह न किया जा सके।
AI सामग्री पर अनिवार्य होगी लेबलिंग
निर्वाचन आयोग की नई गाइडलाइन के तहत अब चुनाव प्रचार में एआई या डिजिटल रूप से संशोधित सामग्री की स्पष्ट लेबलिंग अनिवार्य होगी। यानी यदि कोई ऑडियो, वीडियो या छवि कृत्रिम रूप से बनाई या बदली गई है, तो उस पर स्पष्ट रूप से लिखा होना चाहिए कि यह “AI-generated” या “Digitally Modified” सामग्री है।
दृश्य सामग्री में यह लेबल कम से कम 10 प्रतिशत क्षेत्र को कवर करेगा, ताकि मतदाता इसे आसानी से देख सकें। वीडियो में यह लेबल ऊपरी भाग में लगातार दिखाई देना चाहिए, जबकि ऑडियो सामग्री में यह घोषणा शुरुआती 10 प्रतिशत अवधि तक सुनाई देनी जरूरी है।
जिम्मेदार इकाई का नाम भी दिखाना होगा
आयोग ने यह भी स्पष्ट किया है कि अब हर एआई या डिजिटल रूप से निर्मित सामग्री में उसे तैयार करने वाली उत्तरदायी इकाई का नाम भी प्रदर्शित करना अनिवार्य होगा। यह जानकारी या तो मेटाडाटा में या कैप्शन में दिखाई देनी चाहिए। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि किसी फर्जी या भ्रामक सामग्री के पीछे जिम्मेदार व्यक्ति या संगठन की पहचान की जा सके।
भ्रामक और फर्जी सामग्री पर पूर्ण प्रतिबंध
गाइडलाइन में यह भी कहा गया है कि अब कोई भी राजनीतिक दल या प्रत्याशी ऐसी फर्जी या भ्रामक सामग्री प्रकाशित या साझा नहीं कर सकता जो किसी व्यक्ति की आवाज, चेहरा या पहचान को उसकी सहमति के बिना प्रस्तुत करती हो। इस तरह की सामग्री न केवल गलत सूचना फैलाती है, बल्कि मतदाताओं की राय को प्रभावित करने का खतरा भी पैदा करती है।
आयोग ने यह स्पष्ट कर दिया है कि चुनावी प्रचार में एआई का उपयोग जिम्मेदारीपूर्वक और पारदर्शी ढंग से किया जाए, ताकि निष्पक्षता बनी रहे और मतदाता भ्रमित न हों।
तीन घंटे में हटानी होगी भ्रामक सामग्री
यदि किसी राजनीतिक दल, प्रत्याशी या उनके आधिकारिक सोशल मीडिया अकाउंट पर भ्रामक, एआई-जनित या डिजिटल रूप से संशोधित सामग्री पाई जाती है, तो उसे रिपोर्ट या संज्ञान में आने के तीन घंटे के भीतर हटाना अनिवार्य होगा। ऐसा न करने पर आयोग द्वारा कड़ी कार्रवाई की जा सकती है।
यह नियम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, वेबसाइट, यूट्यूब चैनल और अन्य डिजिटल माध्यमों पर साझा की जाने वाली सभी प्रचार सामग्रियों पर लागू होगा। इसका उद्देश्य गलत सूचना को समय रहते रोकना और चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता को बनाए रखना है।
अभिलेख रखना होगा अनिवार्य
निर्वाचन आयोग ने एक और महत्वपूर्ण निर्देश जारी किया है जिसके अनुसार, सभी राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों को एआई-निर्मित सामग्री का अभिलेख (Record) रखना अनिवार्य होगा। इसका मतलब है कि यदि कोई प्रचार वीडियो, फोटो या संदेश कृत्रिम तकनीक से बनाया गया है, तो उसकी मूल प्रति, निर्माण की तारीख और जिम्मेदार व्यक्ति की जानकारी संरक्षित रखनी होगी।
यह कदम चुनावों के बाद संभावित शिकायतों या विवादों की स्थिति में जांच को आसान बनाने के लिए उठाया गया है।
संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत कार्रवाई
आयोग ने स्पष्ट किया कि ये दिशा-निर्देश संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत जारी किए गए हैं, जो चुनावी प्रक्रिया के संचालन और निगरानी के लिए निर्वाचन आयोग को व्यापक अधिकार देता है। आयोग का कहना है कि तकनीकी साधनों से तैयार की गई कृत्रिम सामग्री “वास्तविकता का भ्रम” पैदा करती है, जिससे मतदाता गुमराह हो सकते हैं और चुनावी अखंडता को खतरा होता है।
लोकतंत्र की रक्षा की दिशा में बड़ा कदम
नई गाइडलाइन को डिजिटल युग में लोकतंत्र की पारदर्शिता बनाए रखने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है। बीते कुछ वर्षों में चुनावों के दौरान सोशल मीडिया और एआई-आधारित तकनीकों के जरिए भ्रामक वीडियो और फर्जी संदेशों के कई उदाहरण सामने आए हैं।


