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डोटासरा का इस्तीफा: प्राक्कलन समिति से हटे, देवनानी पर पक्षपात का आरोप

डोटासरा का इस्तीफा: प्राक्कलन समिति से हटे, देवनानी पर पक्षपात का आरोप

शोभना शर्मा। राजस्थान की राजनीति में एक बार फिर हलचल मच गई है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और वरिष्ठ विधायक गोविंद सिंह डोटासरा ने राजस्थान विधानसभा की प्राक्कलन समिति ‘ख’ के सदस्य पद से तत्काल प्रभाव से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने विधानसभा सचिवालय को भेजे अपने त्यागपत्र में इस्तीफे की वजह भी स्पष्ट रूप से बताई है।

डोटासरा का यह कदम न केवल एक राजनीतिक बयान है, बल्कि उन्होंने इसे लोकतंत्र और संविधान की रक्षा के लिए आवश्यक कदम करार दिया है। इस्तीफे के साथ उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी पर गंभीर आरोप लगाए हैं।

संविधान की आत्मा के विरुद्ध निर्णयों का आरोप

अपने इस्तीफे में डोटासरा ने विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी पर पक्षपातपूर्ण निर्णय लेने का आरोप लगाते हुए कहा, “प्रजातंत्र में संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति की निष्पक्षता सर्वोपरि होती है। लेकिन जब निर्णय पद की गरिमा और लोकतांत्रिक भावना के विरुद्ध हों, तब वह व्यवस्था के लिए घातक सिद्ध होते हैं।”

उन्होंने यह भी कहा कि वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष के निर्णय संविधान की आत्मा को चोट पहुंचाते हैं और इससे लोकतंत्र कमजोर होता है।

समितियों की भूमिका पर गंभीर टिप्पणी

डोटासरा ने विधानसभा की समितियों की भूमिका पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि समितियों को केवल सत्ता पक्ष की मुहर नहीं बनाना चाहिए, बल्कि वे जनप्रतिनिधियों के संवाद और निगरानी का माध्यम होती हैं। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि कांग्रेस विधायक नरेंद्र बुडानिया को हाल ही में विशेषाधिकार समिति का अध्यक्ष बनाया गया था, लेकिन उन्हें मात्र 15 दिनों में ही हटा दिया गया।

डोटासरा ने इसे न केवल असामान्य बल्कि स्तब्ध करने वाला फैसला बताया और कहा कि सामान्यतः ऐसे पदों पर कार्यकाल कम से कम एक वर्ष का होता है। उनका कहना है कि इस तरह की मनमानी समितियों की निष्पक्षता और स्वायत्तता को नुकसान पहुंचाती है।

भाजपा विधायक कंवरलाल मीणा के मामले पर भी जताई नाराजगी

डोटासरा ने अपने पत्र में अंता से भाजपा विधायक कंवरलाल मीणा के मामले को भी उठाया। उन्होंने कहा कि मीणा को तीन साल की सजा हुई है और हाईकोर्ट ने भी उस सजा को बरकरार रखा है। नियमों के अनुसार दो साल से अधिक की सजा मिलने पर कोई भी जनप्रतिनिधि स्वतः अयोग्य घोषित हो जाता है, लेकिन इसके बावजूद विधानसभा अध्यक्ष द्वारा उनकी सदस्यता समाप्त नहीं की गई।

डोटासरा ने इसे संविधान और न्यायपालिका की खुली अवहेलना बताया और कहा कि यह फैसला लोकतांत्रिक मूल्यों की अनदेखी है। उन्होंने यह भी पूछा कि जब कांग्रेस विधायकों के खिलाफ सख्त फैसले लिए जाते हैं, तो भाजपा विधायकों के लिए नियम क्यों बदल जाते हैं?

लोकतंत्र की रक्षा के लिए उठाया गया कदम

डोटासरा ने अपने इस्तीफे में जोर देकर कहा कि जब लोकतंत्र के मंदिर में निष्पक्षता पर सवाल उठने लगें, तब चुप रहना जनादेश और लोकतांत्रिक मूल्यों का अपमान है। उन्होंने कहा, “हम इसका पुरजोर विरोध करते हैं और इसलिए मैं प्राक्कलन समिति ‘ख’ के सदस्य पद से त्यागपत्र देता हूं।”

उन्होंने इस कदम को अपने सिद्धांतों और लोकतंत्र के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतीक बताया।

विधानसभा अध्यक्ष से निष्पक्षता की अपील

इस्तीफे के अंत में डोटासरा ने विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी से अपील की कि वे अपने पद की मर्यादा और संविधान की शपथ का सम्मान करें। उन्होंने कहा कि आसन की गरिमा और लोकतंत्र में जनता का विश्वास तभी कायम रहेगा जब निर्णय निष्पक्ष और पारदर्शी होंगे।

उन्होंने कहा कि विपक्ष के प्रतिनिधियों की आवाज़ को दबाने की प्रवृत्ति लोकतंत्र के लिए खतरनाक संकेत है।

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