शोभना शर्मा। राजस्थान की राजनीति में एक बार फिर गर्मी आ गई है। कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने सोमवार को प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय में मीडिया से बातचीत करते हुए केंद्र और राज्य सरकार पर जमकर निशाना साधा। उनका आरोप है कि सरकार पाकिस्तान से बढ़ते तनाव के बीच कांग्रेस पृष्ठभूमि के कर्मचारियों को जानबूझकर बॉर्डर इलाकों में भेज रही है। इसके अलावा, उन्होंने हाल ही में आयोजित सर्वदलीय बैठक में सत्ताधारी भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड़ तक को आमंत्रित नहीं किए जाने को भी गंभीर लोकतांत्रिक चूक बताया।
कांग्रेस से जुड़े कर्मचारियों को निशाना बनाने का आरोप
डोटासरा ने कहा कि सरकार राजनीतिक विद्वेष के चलते ऐसे कर्मचारियों को सीमावर्ती जिलों में स्थानांतरित कर रही है, जिनका झुकाव कांग्रेस की ओर रहा है। “महीनों से एपीओ चल रहे कर्मचारियों को अचानक बॉर्डर पर भेजा गया। सरकार की यह मंशा संदेहास्पद है। कांग्रेस के कर्मचारी राष्ट्रहित में काम करने से नहीं डरते, लेकिन जब भेदभाव सामने आता है, तब सवाल उठते हैं,” डोटासरा ने कहा।
उन्होंने यह भी जोड़ा कि सरकार को स्पष्ट करना चाहिए कि किन मापदंडों पर इन स्थानांतरणों को अंजाम दिया गया है और क्या यह सिर्फ राजनीतिक प्रतिशोध की भावना से किया गया कदम है?
सर्वदलीय बैठक में भी पक्षपात?
राज्य में बढ़ते सुरक्षा तनाव को देखते हुए हाल ही में जयपुर में एक सर्वदलीय बैठक आयोजित की गई थी, जिसमें कांग्रेस सहित विपक्षी दलों को आमंत्रित नहीं किया गया। डोटासरा ने यह मुद्दा जोरदार तरीके से उठाया। उन्होंने कहा कि जब भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड़ को भी बैठक में नहीं बुलाया गया, तो इसे सर्वदलीय बैठक कैसे माना जा सकता है?
“यह सर्वदलीय बैठक नहीं बल्कि एक अफसरशाही प्रायोजित बैठक थी, जहां सिर्फ वही चेहरे बुलाए गए जिन्हें सरकार सुनना चाहती थी। यह लोकतंत्र के खिलाफ है और आने वाले समय में यही रवैया सरकार के खिलाफ जनाक्रोश को बढ़ाएगा,” डोटासरा ने स्पष्ट कहा।
विदेश नीति और अमेरिकी मध्यस्थता पर गंभीर सवाल
सबसे बड़ा हमला डोटासरा ने केंद्र सरकार की विदेश नीति पर किया। उन्होंने अमेरिका के राष्ट्रपति द्वारा सोशल मीडिया पर भारत-पाकिस्तान युद्धविराम की घोषणा और उसके बाद भारत की ओर से सीजफायर की पुष्टि को अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण बताया।
“देशवासियों के लिए यह बहुत पीड़ादायक है कि अब हमारी विदेश नीति इतनी कमजोर हो गई है कि अमेरिका जैसे देश को हमारे मामलों में पंचायती करनी पड़ रही है। कश्मीर जैसे संवेदनशील मुद्दे पर अगर तीसरे देश की मध्यस्थता स्वीकार कर ली गई है, तो यह सीधे-सीधे देश की संप्रभुता पर सवाल है,” उन्होंने कहा।
प्रधानमंत्री मोदी से राष्ट्र के नाम संबोधन की मांग
डोटासरा ने सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस मुद्दे पर राष्ट्र को संबोधित करने की मांग की। उन्होंने कहा, “जब-जब बड़े फैसले होते हैं, मोदी जी राष्ट्र को संबोधित करते हैं। फिर अब क्यों नहीं? देश जानना चाहता है कि अमेरिका की बात क्यों मानी गई? क्या हमारे पास कूटनीतिक और सैन्य विकल्प नहीं थे?”
उन्होंने आगे कहा कि इस संवेदनशील समय में मोदी सरकार को संसद का विशेष सत्र बुलाकर सभी दलों को विश्वास में लेना चाहिए। “देश को यह जानने का हक है कि हमारी विदेश नीति की दिशा क्या है और क्या हम अपनी संप्रभुता के साथ समझौता कर रहे हैं?” डोटासरा ने जोड़ा।
कारगिल युद्ध से तुलना
डोटासरा ने अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार की विदेश नीति की तुलना मोदी सरकार से करते हुए कहा कि 1999 में जब कारगिल युद्ध हुआ था, तब अमेरिका ने भी हस्तक्षेप की कोशिश की थी, लेकिन वाजपेयी जी ने उसे सिरे से खारिज कर दिया। उन्होंने ‘ऑपरेशन विजय’ के तहत सेना के हाथ में पूरी ताकत दी और पाकिस्तान को करारा जवाब दिया।
“तब भी अमेरिका का दबाव था, लेकिन तब प्रधानमंत्री ने देश की संप्रभुता के साथ समझौता नहीं किया। आज जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री हैं, तब क्यों अमेरिका की पंचायती स्वीकार की गई?” डोटासरा ने कटाक्ष किया।
पड़ोसी देशों से बिगड़ते रिश्तों पर चिंता
डोटासरा ने यह भी कहा कि मौजूदा समय में भारत के लगभग सभी पड़ोसी देश हमारे खिलाफ खड़े हैं। “चीन खुलकर पाकिस्तान का समर्थन कर रहा है, बांग्लादेश का रवैया भी तटस्थ नहीं है और नेपाल, श्रीलंका जैसे देशों से भी हमारे संबंध पहले जैसे नहीं रहे। यह सब हमारी विफल विदेश नीति का परिणाम है,” उन्होंने जोर देकर कहा।
सरकार में ब्यूरोक्रेसी का बढ़ता दखल
अंत में डोटासरा ने कहा कि सरकार पूरी तरह ब्यूरोक्रेसी के हाथ में चली गई है। “मंत्रियों की सुनवाई नहीं हो रही, नौकरशाह निर्णय ले रहे हैं। यह स्थिति अगर नहीं बदली, तो जनता का आक्रोश सड़कों पर दिखेगा। सरकार को अब चेत जाना चाहिए,” उन्होंने चेतावनी दी।