मनीषा शर्मा। राजस्थान में इन दिनों यूरोलॉजी से संबंधित बीमारियों के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी देखी जा रही है। जयपुर स्थित सवाई मान सिंह (SMS) मेडिकल कॉलेज के वरिष्ठ चिकित्सकों का कहना है कि पेशाब (यूरिन) से जुड़ी छोटी-छोटी समस्याओं को हल्के में लेना आगे चलकर गंभीर किडनी रोगों का कारण बन सकता है। विशेषज्ञों ने खासतौर पर चेतावनी दी है कि यदि किसी व्यक्ति को लगातार तीन महीने या उससे अधिक समय तक यूरिन संबंधी परेशानी बनी रहती है, तो यह स्थिति क्रोनिक किडनी डिजीज (Chronic Kidney Disease) का रूप ले सकती है।
यूरोलॉजी अवेयरनेस सप्ताह का आयोजन
25 सितंबर को एसएमएस मेडिकल कॉलेज से जुड़े सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल में यूरोलॉजी अवेयरनेस सप्ताह के तहत एक जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम में यूरोलॉजी विभाग और नेफ्रोलॉजी विभाग के वरिष्ठ डॉक्टरों ने जनता को यूरिन और किडनी से जुड़ी बीमारियों के लक्षण, कारण और बचाव के उपाय बताए। इस मौके पर हॉस्पिटल के अधीक्षक और नेफ्रोलॉजी विभाग के सीनियर प्रोफेसर डॉ. विनय मल्होत्रा, यूरोलॉजी विभाग के एचओडी डॉ. शिवम प्रियदर्शी, सीनियर प्रोफेसर डॉ. नीरज अग्रवाल, एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सोमेन्द्र बंसल, नेफ्रोलॉजी विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ. धनंजय अग्रवाल सहित कई अन्य डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ मौजूद रहे।
हर 10 में से एक व्यक्ति किडनी रोग से जूझ रहा
डॉक्टर्स का कहना है कि बीते कुछ वर्षों में यूरोलॉजी रोगियों की संख्या दोगुनी हो गई है। वर्तमान समय में हर 10 में से एक व्यक्ति किसी न किसी प्रकार की किडनी से जुड़ी बीमारी से परेशान है। इनमें किडनी स्टोन (पथरी), यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन (UTI), प्रोस्टेट संबंधी रोग और क्रोनिक किडनी डिजीज प्रमुख हैं।
पेशाब से जुड़ी दिक्कतों को नजरअंदाज न करें
कार्यक्रम के दौरान अधीक्षक डॉ. विनय मल्होत्रा ने कहा कि पेशाब करते समय अक्सर जलन, अत्यधिक पीलापन, हल्की रुकावट, ब्लड आना या थक्के निकलना जैसी समस्याएं सामने आती हैं। आमतौर पर लोग इन्हें छोटी-मोटी समस्या समझकर नजरअंदाज कर देते हैं। लेकिन यदि ये दिक्कतें तीन महीने या उससे ज्यादा समय तक बनी रहती हैं, तो ये किडनी से संबंधित गंभीर बीमारी का संकेत हो सकती हैं।
काउंसलिंग रूम शुरू करने की योजना
यूरोलॉजी विभाग के एचओडी डॉ. शिवम प्रियदर्शी ने बताया कि सुपर स्पेशियलिटी ब्लॉक में सरकार द्वारा एडवांस मशीनरी और जांच की आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध करवाई गई हैं। उन्होंने कहा कि आमजन को नियमित रूप से ब्लड और यूरिन टेस्ट करवाना चाहिए, ताकि शुरुआती स्तर पर ही बीमारी का पता लगाया जा सके। उन्होंने यह भी जानकारी दी कि अस्पताल में जल्द ही एक काउंसलिंग रूम शुरू करने का प्रस्ताव है। यहां पर भर्ती मरीजों और ओपीडी में आने वाले मरीजों के परिजन यूरोलॉजी से जुड़ी बीमारियों के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकेंगे। साथ ही जांच की सुविधा भी इस रूम के साथ जोड़ी जाएगी, जिससे लोगों को समय रहते सही परामर्श और उपचार मिल सके।
क्या है क्रोनिक बीमारी?
डॉक्टरों के अनुसार क्रोनिक (दीर्घकालिक) बीमारी ऐसी स्थिति होती है, जिसमें रोग पूरी तरह खत्म नहीं होता, बल्कि लंबे समय तक उसका इलाज करना पड़ता है। इन बीमारियों में मरीज को जीवनभर दवाइयों और उपचार की आवश्यकता होती है। हालांकि, दवाइयों और जीवनशैली में सुधार के जरिए बीमारी की गति को धीमा किया जा सकता है।
क्यों बढ़ रही हैं किडनी से जुड़ी बीमारियां?
डॉक्टर्स के मुताबिक राजस्थान सहित पूरे देश में किडनी रोगियों की संख्या बढ़ने के पीछे कई प्रमुख कारण हैं—
शुगर (मधुमेह) की बढ़ती बीमारी – डायबिटीज आज सबसे बड़ा कारण बन चुकी है।
वर्कलोड और स्ट्रेस – अधिक काम का बोझ और तनाव के कारण बीपी (ब्लड प्रेशर) बढ़ता है, जो सीधे किडनी पर असर डालता है।
खराब लाइफस्टाइल – जंक फूड, फिजिकल एक्टिविटी की कमी और अनियमित दिनचर्या किडनी के लिए खतरनाक साबित हो रही है।
स्मोकिंग और केमिकल्स – धूम्रपान और जंक फूड में मौजूद हानिकारक रसायनों से किडनी, प्रोस्टेट और लिवर कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं।
पानी की कमी – पर्याप्त मात्रा में पानी न पीने से यूरिन इंफेक्शन और पथरी की समस्या आम हो गई है, जो किडनी को नुकसान पहुंचाती है।
बचाव के उपाय
डॉक्टरों ने लोगों से अपील की है कि वे नियमित रूप से हेल्थ चेकअप करवाएं और पेशाब से जुड़ी किसी भी समस्या को हल्के में न लें। साथ ही—
पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं।
संतुलित और हेल्दी डाइट अपनाएं।
शुगर और बीपी को नियंत्रित रखें।
धूम्रपान और जंक फूड से बचें।
किसी भी असामान्य लक्षण पर तुरंत चिकित्सक से संपर्क करें।
राजस्थान में यूरोलॉजी से संबंधित बीमारियों का बढ़ना एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या बनता जा रहा है। यदि लोग समय रहते सतर्क न हुए और नियमित जांच पर ध्यान नहीं दिया, तो आने वाले समय में किडनी रोगियों की संख्या और बढ़ सकती है। विशेषज्ञों ने यह भी स्पष्ट किया है कि स्वास्थ्य जागरूकता और जीवनशैली में सुधार ही इन बीमारियों से बचने का सबसे प्रभावी तरीका है।


