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दिवाली से पहले GST काउंसिल में 12% स्लैब खत्म करने पर चर्चा

दिवाली से पहले GST काउंसिल में 12% स्लैब खत्म करने पर चर्चा

शोभना शर्मा। त्योहारी सीजन से ठीक पहले देश के आम आदमी और कारोबारियों के लिए एक बड़ी खुशखबरी की संभावना बन रही है। सितंबर में होने वाली GST काउंसिल की बैठक इस बार सिर्फ एक रूटीन चर्चा नहीं होगी, बल्कि इसे ‘नेक्स्ट जेनरेशन GST रिफॉर्म्स’ की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। इस बैठक से करोड़ों लोगों की जेब हल्की और त्योहारी खरीदारी भारी हो सकती है, क्योंकि सरकार 12% वाले टैक्स स्लैब को पूरी तरह खत्म करने की तैयारी कर रही है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से अपने संबोधन में GST में अगली पीढ़ी के सुधारों का संकेत दिया था। उन्होंने कहा था कि टैक्स सिस्टम को और सरल, पारदर्शी और आम जनता के अनुकूल बनाया जाएगा, जिससे महंगाई का बोझ कम हो। अब सितंबर की यह बैठक उसी वादे को जमीन पर उतारने का मौका मानी जा रही है।

12% टैक्स स्लैब को अलविदा?

वर्तमान में GST के पांच प्रमुख स्लैब हैं – 0%, 5%, 12%, 18% और 28%। 12% के दायरे में फिलहाल कई जरूरी और रोजमर्रा की चीजें आती हैं, जैसे प्रोसेस्ड फूड (मक्खन, घी, सॉस), सिलाई मशीन, छाता, और कुछ प्रकार के मोबाइल फोन। सूत्रों के मुताबिक, अगर 12% स्लैब हटता है, तो इन उत्पादों को सीधे 5% स्लैब में डालने का प्रस्ताव है। इसका सीधा मतलब है कि इनकी कीमतें घट जाएंगी और उपभोक्ताओं को तुरंत राहत मिलेगी।

त्योहारों से पहले कीमतों में यह गिरावट बाजार में खरीदारी की रफ्तार को तेज कर सकती है। मक्खन और घी जैसे उत्पाद जहां रसोई का हिस्सा हैं, वहीं मोबाइल और सिलाई मशीन जैसे सामान घर और रोजगार से जुड़े हैं। इनकी कीमतें घटने से घर का बजट संतुलित रहेगा और मिडिल क्लास की जेब पर बोझ कम होगा।

इंश्योरेंस होगा सस्ता

कोरोना महामारी ने लोगों को स्वास्थ्य और जीवन बीमा की अहमियत समझा दी है, लेकिन हेल्थ और लाइफ इंश्योरेंस पर 18% GST आज भी लोगों के लिए एक बड़ा बोझ है। इस पर लगने वाला टैक्स प्रीमियम को महंगा बना देता है, जिससे कई लोग इसे खरीदने से बचते हैं। अब काउंसिल इस पर बड़ा फैसला ले सकती है।

सूत्रों के अनुसार, हेल्थ और लाइफ इंश्योरेंस पर GST को या तो काफी कम किया जा सकता है, या इसे शून्य (0%) भी किया जा सकता है। अगर ऐसा होता है तो लोगों को बीमा पॉलिसी सस्ती मिलेगी, और ज्यादा से ज्यादा परिवार खुद को मेडिकल और वित्तीय जोखिम से बचा पाएंगे। यह कदम खासतौर पर मिडिल और लोअर मिडिल क्लास के लिए राहत भरा साबित होगा।

रसोई का बजट होगा हल्का

महंगाई का सबसे सीधा असर रसोई पर पड़ता है। यही कारण है कि सरकार की नजर रोजमर्रा की जरूरी चीजों पर भी है। काउंसिल इस बैठक में कुछ ‘Essential Items’ पर GST घटाने पर विचार कर सकती है, ताकि आम आदमी को त्योहारी सीजन में राहत मिले। हालांकि किन-किन चीजों पर यह कटौती होगी, इसकी आधिकारिक घोषणा बैठक के बाद ही होगी, लेकिन संकेत साफ हैं कि ध्यान ‘थाली’ को सस्ती करने पर है।

छोटे कारोबारियों के लिए राहत

GST सिस्टम में लंबे समय से ‘ब्लॉक्ड इनपुट टैक्स क्रेडिट’ (Blocked ITC) एक बड़ी समस्या रही है। जब कोई व्यापारी कच्चा माल खरीदता है, तो वह GST चुकाता है, लेकिन CGST एक्ट की धारा 17(5) के तहत कुछ मामलों में उसे यह टैक्स वापस नहीं मिलता। इसका मतलब है कि कारोबारियों का पैसा फंस जाता है और उनकी कैश फ्लो पर असर पड़ता है।

काउंसिल अब इस नियम को आसान बनाने का फॉर्मूला ला सकती है, जिससे लाखों छोटे और मझोले कारोबारियों (MSMEs) को राहत मिलेगी। उनके पास ज्यादा पूंजी बचेगी, जिसे वे उत्पादन बढ़ाने, नए कर्मचारियों को रखने और बाजार में प्रतिस्पर्धा करने में इस्तेमाल कर सकेंगे।

तेज रजिस्ट्रेशन और रिफंड

बैठक में छोटे कारोबारियों के लिए GST रजिस्ट्रेशन को सिर्फ तीन दिन में पूरा करने का प्रस्ताव भी है। इसके साथ ही रिफंड की प्रक्रिया को टेक्नोलॉजी की मदद से ऑटोमेटिक और तेज बनाया जाएगा, जिससे व्यवसायियों का समय और ऊर्जा बचेगी।

अच्छी खबर यह भी है कि सरकार इस समय कोई नया सेस लगाने के मूड में नहीं है। सिर्फ कुछ सेस के नाम बदलने का सुझाव है, जिससे कर प्रणाली को और सरल बनाया जा सके।

त्योहारी सीजन में बाजार को बूस्ट

अगर यह सभी प्रस्ताव पास हो जाते हैं, तो दिवाली, दशहरा और अन्य त्यौहारों पर बाजार में खरीदारों की भीड़ बढ़ना तय है। जब रोजमर्रा का सामान और बीमा जैसे महत्वपूर्ण उत्पाद सस्ते होंगे, तो उपभोक्ता ज्यादा खर्च करेंगे। इससे न सिर्फ बाजार में रौनक आएगी, बल्कि छोटे कारोबारियों और MSMEs को भी बढ़ावा मिलेगा।

टैक्स सिस्टम के सरल होने से ज्यादा लोग समय पर और सही तरीके से टैक्स भरेंगे, जिससे सरकार की राजस्व वसूली भी बढ़ेगी। यह एक ‘विन-विन’ स्थिति होगी – उपभोक्ताओं को राहत, कारोबारियों को बढ़ावा और सरकार को स्थिर आय।

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