मनीषा शर्मा । गुलाबचंद कटारिया ने रविवार को एक कार्यक्रम में भारतीय लोकतंत्र की मर्यादाओं और वर्तमान राजनीतिक माहौल पर गहरी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि कई बार विधानसभा में दिए गए भाषण रिकॉर्ड पर आ जाते हैं, लेकिन जब हम उन्हें ईमानदारी से पढ़ते हैं, तो स्वयं को झटका लगता है कि हमें ऐसे शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए था। राज्यपाल ने जोर दिया कि लोकतंत्र में आलोचना करना जरूरी है, लेकिन शब्दों के प्रयोग में संयम ही लोकतंत्र की गरिमा को बनाए रखता है।
गुलाबचंद कटारिया सतीश पूनिया की पुस्तक के विमोचन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे। उन्होंने अपने संबोधन में राजनीति में बढ़ती कटुता और असंवेदनशील भाषा के प्रयोग पर गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि आलोचना करना अधिकार है, लेकिन इस अधिकार का इस्तेमाल जिम्मेदारी के साथ होना चाहिए।“शब्दों में कंजूसी लोकतंत्र को कलंकित करती है”
राज्यपाल कटारिया ने कहा कि जब प्रतिनिधि विधानसभा के फ्लोर पर बोलते हैं तो उन्हें यह याद रखना चाहिए कि उनके शब्द केवल विपक्ष पर नहीं, पूरे लोकतंत्र पर असर डालते हैं। उन्होंने कहा— “हमें आलोचना करने का अधिकार है, लेकिन शब्दों के प्रयोग में कंजूसी लोकतंत्र को कलंकित करती है। हमें शब्दों का सोच-समझकर इस्तेमाल करना चाहिए।” कटारिया ने कहा कि राजनीति केवल चुनाव जीतने का माध्यम नहीं, बल्कि जनता के विश्वास का दायित्व है। इसीलिए, नेताओं को अपने व्यवहार और भाषा में संयम दिखाना होगा।
“अग्निपथ को जिसने समझा, वही बना सकता है जनपथ”
कार्यक्रम में कटारिया ने एक और बात कही जो उपस्थित लोगों के बीच चर्चा का विषय बनी। उन्होंने कहा— “वास्तव में यह जो अग्निपथ है, उसे जो ठीक ढंग से पा लेगा, वही इस जनपथ को बना सकेगा। लेकिन दुर्भाग्य है कि हवाई जहाज से जो आता है, वह लोकतंत्र को समझता नहीं है।” इस टिप्पणी को उन्होंने आज की राजनीतिक परिस्थितियों से जोड़ते हुए कहा कि केवल पद या ताकत से लोकतंत्र की गहराई को नहीं समझा जा सकता। इसके लिए जनता के बीच जाना और उनकी नब्ज को समझना जरूरी होता है।
ट्रांसफर कल्चर को बताया लोकतंत्र का सबसे खराब पक्ष
राज्यपाल कटारिया ने अपने संबोधन में एक अहम मुद्दा उठाया—सरकारी सिस्टम में ट्रांसफर कल्चर। उन्होंने कहा कि उन्हें अपने लंबे राजनीतिक जीवन में लोकतंत्र का सबसे खराब पक्ष ट्रांसफर को प्राथमिकता देना लगा। उन्होंने कहा— “पता नहीं कब हम लोग विधानसभा के फ्लोर से ज्यादा महत्व ट्रांसफर के काम को देने लगे। जब विधानसभा चल रही होती है और हम किसी ना किसी के ट्रांसफर कराने के लिए कागज लेकर सचिवालय में घूम रहे होते हैं, तो क्या हम लोकतंत्र का सम्मान कर रहे हैं? क्या हम उस जनता का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, जिसने हमें लोकतंत्र के मंदिर में भेजा है?”
उनका कहना था कि लोकतंत्र का सम्मान केवल भाषणों से नहीं, आचरण से भी होता है। यदि प्रतिनिधि अपना समय जनता के मुद्दों की बजाय व्यक्तिगत और राजनीतिक हितों के लिए ट्रांसफर कराने में लगाएंगे तो लोकतांत्रिक मूल्यों का क्षरण होगा।
“जनता चाहेगी तो आप आएंगे, नहीं चाहेगी तो नहीं आ पाएंगे”
कटारिया ने अपने भाषण में सत्ता और जनमत के बीच संबंध पर भी स्पष्ट विचार रखे। उन्होंने कहा— “जनता चाहेगी तो आप आएंगे, नहीं चाहेगी तो नहीं आ पाएंगे। आप कितनी भी हेकड़ी कर लें, कुछ नहीं कर पाएंगे। जनता यह नहीं सोचती कि किसने उसके लिए क्या किया। वह आपके गुण और अवगुणों को देखती है। ऐसा नहीं है कि बिना गुण-अवगुण देखे भेज दे, कुछ पांच-दस प्रतिशत गड़बड़ हो सकती है, लेकिन इससे ज्यादा नहीं चलता है।” उन्होंने नेताओं को याद दिलाया कि सत्ता स्थायी नहीं होती। जनता के भरोसे को बनाए रखना ही सबसे बड़ी चुनौती होती है।
पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में जुटे बड़े नेता
यह कार्यक्रम सतीश पूनिया की पुस्तक के विमोचन के लिए आयोजित किया गया था। इस अवसर पर कई वरिष्ठ नेता उपस्थित थे। कार्यक्रम में नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने भी मंच साझा किया। टीकाराम जूली ने हंसी-मजाक के अंदाज में राजनीतिक घटनाक्रम पर अपनी बात रखते हुए कहा— “मैं इसलिए भी आया हूं क्योंकि आज तक यह समझ नहीं आया कि हरियाणा चुनाव हम कैसे हार गए। यह सवाल मेरे मन में अब भी है।” उन्होंने कहा कि हरियाणा में पार्टी के जीतने की उम्मीद थी, लेकिन परिणाम उलट आए। जूली ने मंच पर मौजूद कटारिया, पूनिया और अन्य वरिष्ठ नेताओं से इस मुद्दे पर चर्चा की बात कही।
“आपको सबसे ज्यादा मिस करते हैं”
टीकाराम जूली ने कहा— “आज आप तीनों (कटारिया, राठौड़, पूनिया) मंच पर हैं। मैं विधानसभा में सबसे ज्यादा आपको ही मिस करता हूं।” उनके इस बयान पर सभा में मौजूद लोगों ने तालियां बजाईं। जूली ने कहा कि राजनीतिक मतभेदों के बावजूद वे कटारिया के वक्तृत्व और व्यवहार की हमेशा सराहना करते रहे हैं।
लोकतंत्र में गरिमा और जिम्मेदारी का संदेश
कटारिया के बयान ने राजनीतिक हलकों में एक बार फिर से लोकतांत्रिक मूल्यों पर बहस को जन्म दे दिया है। उनके अनुसार, लोकतंत्र में आलोचना जरूरी है, लेकिन उसमें मर्यादा और गरिमा भी उतनी ही अहम है। शब्दों की संयमित भाषा से ही लोकतांत्रिक संस्थाओं का सम्मान बना रह सकता है। उनका ट्रांसफर कल्चर पर निशाना सीधा राजनीतिक प्रतिनिधियों पर था, जो जनता के मुद्दों की बजाय व्यक्तिगत हितों पर ज्यादा जोर देते हैं।