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भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने पर धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का बयान

भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने पर धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का बयान

शोभना शर्मा। बागेश्वर धाम के महाराज और प्रसिद्ध कथावाचक पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री 25 जनवरी को प्रयागराज महाकुंभ में हिस्सा लेने पहुंचे। उनके आगमन ने धार्मिक और सामाजिक जगत में एक नई चर्चा को जन्म दिया। 26 जनवरी को उन्होंने महाकुंभ में राष्ट्रप्रेम और भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के विषय पर अपने विचार साझा किए। महाराज ने कहा कि हर मंदिर, मस्जिद और चर्च में रोज राष्ट्रगान होना चाहिए। यह कदम यह जानने में मदद करेगा कि कौन राष्ट्रप्रेमी है और कौन राष्ट्रद्रोही।

महाकुंभ में महाराज धीरेंद्र शास्त्री का कार्यक्रम

धीरेंद्र शास्त्री ने महाकुंभ में अपने व्यस्त कार्यक्रम के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि 27 से 29 जनवरी तक वे परमार्थ निकेतन में हनुमंत कथा का आयोजन करेंगे। कथा के माध्यम से धार्मिक मूल्यों और सामाजिक एकता का संदेश दिया जाएगा। इसके बाद, 30 जनवरी को एक विशाल संत समागम का आयोजन होगा। इस समागम में यह तय किया जाएगा कि भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए क्या कदम उठाने चाहिए।

मौनी अमावस्या और स्नान का महत्व

संगम में स्नान के विषय पर महाराज ने कहा कि वे हर दिन पवित्र स्नान करेंगे, लेकिन मौनी अमावस्या पर विशेष रूप से संतों के साथ डुबकी लगाएंगे। मौनी अमावस्या के महत्व पर उन्होंने कहा, “इस दिन वाणी से मौन रहना चाहिए, लेकिन केवल वाणी से मौन होना पर्याप्त नहीं है। विचारों और संस्कारों से भी मौन रहकर आत्मा की शुद्धि करनी चाहिए।”

26 जनवरी और राष्ट्रगान पर महाराज का संदेश

26 जनवरी को, जो कि भारत का गणतंत्र दिवस है, महाराज ने राष्ट्र को जोड़ने के लिए संत समाज की भूमिका पर चर्चा की। उन्होंने कहा, “हर धर्मस्थल—चाहे वह मंदिर हो, मस्जिद हो या चर्च—में रोज राष्ट्रगान होना चाहिए। जब यह नियम लागू होगा, तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि कौन राष्ट्रप्रेमी है और कौन राष्ट्रद्रोही।” उनका यह बयान राष्ट्रप्रेम की भावना को सुदृढ़ करने और समाज में एकता लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।

हिंदू राष्ट्र पर संत समागम

30 जनवरी को आयोजित होने वाले संत समागम में महाराज धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री और अन्य प्रमुख संत इस बात पर मंथन करेंगे कि भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए क्या प्रयास किए जा सकते हैं। ऐसा माना जा रहा है की यह समागम धार्मिक एकता, सांस्कृतिक पहचान और राष्ट्रीय जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण मंच बनेगा।

 

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