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बीकानेर में लगे थे धर्मेंद्र की गुमशुदगी के पोस्टर, सांसद कार्यकाल रहा विवादों से घिरा

बीकानेर में लगे थे धर्मेंद्र की गुमशुदगी के पोस्टर, सांसद कार्यकाल रहा विवादों से घिरा

शोभना शर्मा। बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता और पूर्व सांसद धर्मेंद्र का निधन हो गया। 89 वर्ष की आयु में उन्होंने सोमवार को मुंबई स्थित घर पर अंतिम सांस ली। धर्मेंद्र सिर्फ फिल्मी दुनिया में ही नहीं, बल्कि राजनीति में भी एक अलग पहचान रखते थे। वर्ष 2004 से 2009 तक वे बीकानेर लोकसभा सीट से भाजपा के सांसद रहे। हालांकि, उनका सांसद कार्यकाल कई विवादों में घिरा रहा और उन्हें राजनीतिक रूप से सक्रिय सांसदों की श्रेणी में नहीं माना गया।

बीकानेर में उनके समर्थक आज भी बड़ी संख्या में हैं, लेकिन उनके सांसद कार्यकाल की कुछ घटनाएं हमेशा चर्चा में रही। इनमें सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोरने वाली घटना थी—उनकी ‘गुमशुदगी’ के पोस्टर। क्षेत्र में कम उपस्थिति के कारण स्थानीय नागरिकों ने उनके खिलाफ ऐसे पोस्टर लगाए, जिसने राष्ट्रीय मीडिया का ध्यान आकर्षित किया था।

गुमशुदा पोस्टर लगने से आहत हुए थे धर्मेंद्र

सांसद चुने जाने के बाद धर्मेंद्र लंबे समय तक बीकानेर नहीं पहुंचे। धीरे-धीरे स्थानीय लोगों में नाराजगी बढ़ती गई। जब लगभग एक वर्ष तक वे क्षेत्र में नहीं आए, तो कुछ नागरिकों ने बीकानेर शहर में उनके ‘गुमशुदा’ पोस्टर लगा दिए। पोस्टरों में उनका फोटो लगाकर लिखा गया—“गुमशुदा”, और पूछा गया कि क्षेत्र के सांसद कहां हैं।

यह मामला मीडिया में व्यापक रूप से छाया रहा, जिसके बाद धर्मेंद्र भावुक हो उठे। कहा जाता है कि पोस्टर देखकर वे काफी दुखी हुए और तुरंत बीकानेर आने का फैसला किया। कुछ ही दिनों में वे बीकानेर पहुंचे, सर्किट हाउस में रुके और बिना किसी राजनीतिक तामझाम के कार्यकर्ताओं और नागरिकों से मिले। उन्होंने पत्रकारों से यह भी कहा कि उनके खिलाफ ऐसे पोस्टर लगाए जाने से उन्हें पीड़ा पहुंची है।

बीकानेर के लिए सूरसागर परियोजना में महत्वपूर्ण भूमिका

हालांकि धर्मेंद्र को बीकानेर में कम समय बिताने के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा, लेकिन सूरसागर की सफाई और विकास कार्य में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सांसद रहते हुए उन्होंने इस मुद्दे को गंभीरता से उठाया और तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से बात की। बजट की समस्या आने पर वे खुद दिल्ली जाकर केंद्रीय मंत्रियों से मिले और अतिरिक्त बजट मंजूर करवाया।

अपने सांसद कोटे से भी उन्होंने इस परियोजना में आर्थिक सहयोग दिया। हालांकि, राजनीतिक परिस्थितियों के कारण इस काम का श्रेय अधिकतर वसुंधरा राजे सरकार को ही मिला।

2004 का चुनाव: रामेश्वर डूडी के खिलाफ यादगार मुकाबला

धर्मेंद्र को भाजपा ने बीकानेर की जाट बहुल सीट पर कांग्रेस के दिग्गज नेता रामेश्वर डूडी के सामने उतारा था। मुकाबला शुरुआत से ही कड़ा रहा।
हालात ऐसे बने कि चुनाव प्रचार को मजबूती देने के लिए धर्मेंद्र को अपने बेटों सनी देओल और बॉबी देओल को बीकानेर बुलाना पड़ा। दोनों अभिनेताओं ने रेलवे स्टेडियम में बड़ी जनसभा की, जिससे शहरी मतदाताओं में उत्साह बढ़ा और माहौल भाजपा के पक्ष में गया।

मतगणना में धर्मेंद्र 57 हजार वोटों से चुनाव जीत गए। दिलचस्प बात यह थी कि गांवों की अधिकांश सीटों पर वे पीछे रहे, लेकिन बीकानेर शहर से इतनी बड़ी बढ़त मिली कि पूरा चुनाव जीत लिया।

डूडी को बताया था छोटा भाई

चुनाव प्रचार के दौरान धर्मेंद्र ने कभी भी रामेश्वर डूडी के खिलाफ व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं की। जब भी मीडिया उनसे पूछती कि डूडी मजबूत उम्मीदवार हैं, तो वे कहते—
“रामेश्वर तो मेरे छोटे भाई जैसे हैं।”
उन्होंने न तो डूडी की कमी बताई, न कोई आरोप लगाया। उधर, रामेश्वर डूडी ने भी व्यक्तिगत आलोचना से परहेज किया, हालांकि उनके कुछ कांग्रेस समर्थकों ने धर्मेंद्र पर धर्म परिवर्तन सहित कई आरोप लगाए थे।

हिटलर राज की टिप्पणी और विवाद

अपने राजनीतिक करियर के दौरान धर्मेंद्र एक बड़े विवाद में तब आए, जब उन्होंने एक बार ‘हिटलर राज’ की तारीफ जैसा बयान दिया। यह टिप्पणी उनके खिलाफ जमकर इस्तेमाल हुई और उन्हें आलोचनाओं का सामना करना पड़ा।

उनकी राजनीतिक टिप्पणी अक्सर सुर्खियों में रहती थी, लेकिन कई बार उनके बयान गलत संदर्भों में चर्चा में आ जाते थे।

‘कोट वाले नेताजी’ के नाम से बुलाते थे सुराना को

बीकानेर लोकसभा चुनाव में भाजपा ने वरिष्ठ नेता मानिकचंद सुराना को धर्मेंद्र का चुनाव प्रभारी बनाया था। सुराना दिनभर के कार्यक्रम तय करते थे और समय प्रबंधन को लेकर अक्सर धर्मेंद्र से नाराज भी हो जाते थे। इसके बावजूद धर्मेंद्र उन्हें बहुत सम्मान देते थे और मजाकिया अंदाज में कहते—

“कोट वाले नेताजी से पूछ लो।”
क्योंकि सुराना हमेशा कोट पहनते थे।

सांसद कोटे का पूरा इस्तेमाल

धर्मेंद्र ने अपने सांसद कोटे का पूर्ण उपयोग किया। कोई भी सामाजिक संस्था, विद्यालय, संगठन या धार्मिक स्थल उनसे सहयोग मांगता, तो वे इंकार नहीं करते थे। बीकानेर में आज भी कई स्थानों पर ऐसे बोर्ड लगे हैं जिनमें लिखा है कि यह निर्माण कार्य धर्मेंद्र के सांसद कोटे से कराया गया है।

उनके कोटे से राशि स्वीकृत करने में भाजपा नेता सत्यप्रकाश आचार्य और उनके निजी सचिव कमल व्यास महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे।

बीकानेर में आज भी हैं बड़े फैन

धर्मेंद्र ने बीकानेर से सिर्फ एक बार चुनाव लड़ा, लेकिन उनका प्रशंसक आधार आज भी मजबूत है। एक युवक ने तो उनके नाम से मंदिर बना दिया था और बाद में उसी ने ‘धर्मेंद्र स्टूडियो’ नाम से अपना प्रतिष्ठान भी खोला। अमरसिंहपुरा इलाके में भी उनके कई प्रशंसक हैं, जो हर साल उनका जन्मदिन मनाते थे।

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