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नसबंदी फेल होने पर कोर्ट ने किया CMHO कार्यालय पर कार्रवाई

नसबंदी फेल होने पर कोर्ट ने किया CMHO कार्यालय पर कार्रवाई

शोभना शर्मा। राजस्थान के दौसा जिले में नसबंदी फेल होने के एक मामले ने स्वास्थ्य विभाग को कठघरे में खड़ा कर दिया है। एक महिला की नसबंदी असफल होने के बाद उसे न्याय दिलाने के लिए कोर्ट ने मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (CMHO) कार्यालय की संपत्ति कुर्क करने का आदेश जारी किया। इस आदेश से न केवल सरकारी विभाग में हड़कंप मच गया, बल्कि यह मामला लापरवाही और न्याय के लिए संघर्ष का प्रतीक बन गया।

नसबंदी फेल का मामला: महिला को मिला प्रीमेच्योर डिलीवरी का सामना

दिसंबर 2022 में, लालसोट के सरकारी अस्पताल में गुड्डी देवी नामक महिला ने नसबंदी करवाई थी। उसे जनवरी 2023 में नसबंदी प्रमाण पत्र भी सौंप दिया गया। हालांकि, जुलाई 2023 में महिला ने एक प्रीमेच्योर शिशु को जन्म दिया, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि नसबंदी की प्रक्रिया असफल रही।

इस घटना से आहत होकर महिला ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। कोर्ट ने इस मामले में पीड़िता के पक्ष में फैसला सुनाते हुए 70 हजार रुपये मुआवजा देने का आदेश CMHO कार्यालय को दिया। लेकिन, CMHO कार्यालय ने केवल 30 हजार रुपये ही अदा किए, जिससे कोर्ट की अवमानना का मामला बन गया।

कुर्की की कार्रवाई और हड़कंप

कोर्ट के आदेश की अवहेलना के चलते शुक्रवार को दौसा कोर्ट की टीम, सेल अमीन विनोद कुमार शर्मा के नेतृत्व में, CMHO कार्यालय की संपत्ति कुर्क करने पहुंची। टीम के वहां पहुंचते ही कार्यालय में अफरा-तफरी मच गई।

गाड़ियां कुर्क करने की कोशिश में ड्राइवर फरार

जब टीम ने CMHO कार्यालय में अधिकारियों को ढूंढा, तो CMHO और डिप्टी CMHO दोनों अनुपस्थित पाए गए। इसके बाद टीम ने कार्यालय की गाड़ियों को कुर्क करने का प्रयास किया। लेकिन गाड़ियों के ड्राइवर मौके का फायदा उठाकर वाहन लेकर फरार हो गए।

सीएमएचओ कार्यालय ने मांगा समय

इस कार्रवाई के दौरान, CMHO कार्यालय ने कोर्ट से 15 दिन का समय मांगा है ताकि बकाया राशि अदा की जा सके। हालांकि, कोर्ट ने इस मामले में सख्त रुख अपनाया है और आगे के निर्देशों के आधार पर कार्रवाई जारी रहेगी।

लापरवाही पर सवाल

यह घटना सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं में लापरवाही का स्पष्ट उदाहरण है। नसबंदी जैसे मामलों में गलतियां न केवल पीड़िता के जीवन पर गहरा असर डालती हैं, बल्कि सरकारी तंत्र की जिम्मेदारी और उत्तरदायित्व पर भी सवाल खड़ा करती हैं।

कोर्ट का कड़ा संदेश

इस मामले में कोर्ट की सख्ती ने यह संदेश दिया है कि सरकारी विभागों को अपनी जिम्मेदारी से बचने का कोई अधिकार नहीं है। न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि यदि आदेश की अवहेलना की गई, तो कठोर कदम उठाए जाएंगे।

स्थानीय और राज्यस्तरीय प्रतिक्रिया

इस घटना ने न केवल दौसा बल्कि पूरे राजस्थान में चर्चा का विषय बना दिया है। सरकारी कार्यालयों में कुर्की जैसी कार्रवाई सामान्य नहीं है और इससे स्वास्थ्य विभाग पर दबाव बढ़ गया है।

न्याय के लिए उम्मीद की किरण

गुड्डी देवी के मामले ने अन्य पीड़ितों को भी आवाज उठाने के लिए प्रेरित किया है। यह घटना साबित करती है कि न्याय पाने के लिए संघर्ष करना मुश्किल हो सकता है, लेकिन कानून की ताकत के सामने लापरवाही और अन्याय टिक नहीं सकता।

नसबंदी फेल होने के मामलों में सुधार की जरूरत

यह मामला एक बड़ी चेतावनी है कि नसबंदी जैसे संवेदनशील मामलों में अत्यधिक सतर्कता की जरूरत है। सरकारी तंत्र को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसी प्रक्रियाएं त्रुटिरहित हों और नागरिकों को किसी प्रकार की परेशानी का सामना न करना पड़े।

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