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राजस्थान में कांग्रेस का संगठन सृजन अभियान विवादों में

राजस्थान में कांग्रेस का संगठन सृजन अभियान विवादों में

मनीषा शर्मा। राजस्थान में Indian National Congress का संगठन सृजन अभियान पार्टी को जमीनी स्तर पर मजबूत करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था, लेकिन अब यह अभियान गुटबाजी और आंतरिक मतभेदों का केंद्र बन गया है। जिला अध्यक्षों के चयन की प्रक्रिया को लेकर न केवल प्रदेश कांग्रेस में तनाव बढ़ा है, बल्कि पूर्व मुख्यमंत्री Ashok Gehlot की नाराजगी ने भी इस विवाद को और गहरा कर दिया है।

गहलोत ने सार्वजनिक रूप से इस अभियान को कांग्रेस अध्यक्ष Mallikarjun Kharge और Rahul Gandhi का “नायाब प्रयोग” बताया, लेकिन साथ ही राजस्थान में इसके क्रियान्वयन पर गंभीर सवाल उठाए। उन्होंने बड़े नेताओं के प्रभाव और एकतरफा प्रस्ताव पारित किए जाने पर आपत्ति जताई।

उद्देश्य और प्रक्रिया क्या है?

संगठन सृजन अभियान का उद्देश्य जिला अध्यक्षों का चयन पारदर्शी और लोकतांत्रिक तरीके से करना है। गुजरात मॉडल पर आधारित इस अभियान में पर्यवेक्षकों को जिला स्तर पर कार्यकर्ताओं और नेताओं से राय लेकर 3 से 6 नामों का पैनल बनाना होता है। इसके बाद यह रिपोर्ट हाईकमान को सौंपी जाती है। इस प्रक्रिया को 20 अक्टूबर तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है।

कांग्रेस का मकसद था कि इस प्रक्रिया से गुटबाजी कम होगी और संगठन में सभी की भागीदारी सुनिश्चित होगी। लेकिन वास्तविकता में इस प्रक्रिया में बड़े नेताओं का दखल और शक्ति प्रदर्शन से विवाद गहराता जा रहा है।

जोधपुर में सबसे बड़ा टकराव

सबसे अधिक विवाद Jodhpur में देखने को मिला, जो गहलोत का राजनीतिक गढ़ माना जाता है। यहां एआईसीसी पर्यवेक्षक सुशांत मिश्रा ने कार्यकर्ताओं से फीडबैक लेने के लिए सरदारपुरा, सूरसागर और जोधपुर शहर में बैठकें कीं। इसी दौरान सूरसागर में गहलोत समर्थक प्रीतम शर्मा और पायलट समर्थक राजेश रामदेव के बीच तीखी नोकझोंक हो गई।

वन-टू-वन मीटिंग की लिस्ट को लेकर दोनों गुटों में विवाद इतना बढ़ा कि एक-दूसरे पर व्यक्तिगत आरोप लगाए गए और अन्य कार्यकर्ताओं को बीच-बचाव करना पड़ा। इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जिससे अभियान की पारदर्शिता पर सवाल उठने लगे।

गहलोत ने जताई नाराजगी

इस घटनाक्रम पर गहलोत ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर नाराजगी जताई। उन्होंने लिखा कि हाईकमान का मकसद इस अभियान के जरिए सभी कार्यकर्ताओं की राय लेकर जिला अध्यक्षों का चयन करना है। लेकिन कई जगह एकतरफा प्रस्ताव पारित किए जा रहे हैं या सीनियर नेताओं को निर्णय का अधिकार दिया जा रहा है, जो इस प्रयोग की भावना के खिलाफ है।

गहलोत की इस टिप्पणी के बाद अजमेर, कोटा और दौसा में गुटबाजी और तेज हो गई है। सूत्रों के अनुसार, कई जिलों में सीनियर नेता अपने समर्थकों को जिला अध्यक्ष बनाने के लिए दबाव बना रहे हैं।

अन्य जिलों में भी गुटबाजी

जोधपुर के अलावा अजमेर, कोटा और दौसा में भी संगठन सृजन अभियान के दौरान गुटबाजी खुलकर सामने आई। अजमेर में गहलोत और पायलट समर्थकों में तनातनी हुई। कोटा में पूर्व मंत्री प्रहलाद गुंजल और शांति धारीवाल के समर्थक आमने-सामने आ गए। दौसा में सीनियर नेताओं ने मौजूदा जिला अध्यक्ष को दोबारा नियुक्त करने का सुझाव दिया, जो अभियान के मकसद के खिलाफ है।

सोशल मीडिया पर भी इस पर तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली है। कई यूजर्स ने तंज कसा कि “संगठन सृजन अभियान” अब “गुट सृजन अभियान” बन गया है।

हाईकमान की सख्ती और तटस्थ पर्यवेक्षक

विवाद को बढ़ता देख कांग्रेस हाईकमान ने हस्तक्षेप किया है। राजस्थान प्रभारी Sukhjinder Singh Randhawa ने पर्यवेक्षकों को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया जाए और किसी भी गुटबाजी को बर्दाश्त न किया जाए। जोधपुर में तटस्थ पर्यवेक्षक भेजने की संभावना भी जताई जा रही है।

वहीं, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष Govind Singh Dotasra ने कहा है कि गुटबाजी की कोई गुंजाइश नहीं है और सभी दावेदार पार्टी के सच्चे कार्यकर्ता हैं।

बड़े नेताओं का दखल

सूत्रों के अनुसार, कई जिलों में सीनियर नेताओं द्वारा अपने समर्थकों को जिला अध्यक्ष बनाने के लिए दबाव डाला जा रहा है। सीकर में सुनीता गठाला, हनुमानगढ़ में शबनम गोदारा, गंगानगर में अंकुर मिगलानी, बालोतरा में प्रियंका मेघवाल, बाड़मेर में लक्ष्मण गोदारा और करनाराम मेघवाल, जोधपुर देहात में राकेश चौधरी और प्रमिला चौधरी जैसे नाम चर्चा में हैं।

क्या अभियान सफल होगा?

हाईकमान की मंशा इस अभियान के जरिए संगठन को मजबूत करने की थी। Rahul Gandhi, Mallikarjun Kharge और K. C. Venugopal चाहते हैं कि जिला अध्यक्षों का चयन पारदर्शी और लोकतांत्रिक तरीके से हो। लेकिन गुटबाजी और शक्ति प्रदर्शन से यह उद्देश्य कमजोर होता दिख रहा है।

प्रदेश में कांग्रेस की पुरानी गुटबाजी फिर से उभरकर सामने आ रही है। आने वाले दिनों में जब पर्यवेक्षक अपनी अंतिम रिपोर्ट हाईकमान को सौंपेंगे, तब यह तय होगा कि यह अभियान पार्टी को मजबूत करेगा या गुटबाजी को और गहरा।

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