मनीषा शर्मा। इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (EV) की दुनिया तेजी से विस्तार कर रही है और इसके साथ ही इसमें इस्तेमाल होने वाली तकनीकों की मांग भी बढ़ रही है। आज EV मोटर्स बनाने के लिए सबसे अहम कंपोनेंट्स में से एक हैं रेयर अर्थ मेटल्स, जिनसे बने मैग्नेट मोटरों को हल्का, कॉम्पैक्ट और ज्यादा एफिशिएंट बनाते हैं। लेकिन इन धातुओं की सप्लाई पर चीन का भारी नियंत्रण है। रिपोर्ट्स के अनुसार, दुनिया भर की रेयर अर्थ मटेरियल्स की माइनिंग में चीन की हिस्सेदारी करीब 70% और प्रोडक्शन में लगभग 90% है। हाल ही में चीन ने अमेरिका के साथ चल रहे ट्रेड वॉर के बीच कई धातुओं और मैग्नेट्स के निर्यात पर रोक लगा दी, जिससे ग्लोबल EV इंडस्ट्री में हलचल मच गई। इस स्थिति ने भारत को मजबूर किया है कि वह नई तकनीकों की ओर कदम बढ़ाए और चीन पर निर्भरता कम करे। इसी कड़ी में भारतीय कंपनियों ने मैग्नेट-फ्री मोटर का परीक्षण शुरू कर दिया है, जो रेयर अर्थ मेटल्स का उपयोग किए बिना काम कर सकती हैं।
भारत में मैग्नेट-फ्री मोटर का परीक्षण
इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, फरीदाबाद स्थित 3,500 स्क्वायर फीट की लैब में फोटोनिक सॉल्यूशंस और स्टर्लिंग GTK ई-मोबिलिटी जैसी भारतीय कंपनियां इस दिशा में काम कर रही हैं। ये कंपनियां ब्रिटेन की Advanced Electric Machines (AEM) द्वारा विकसित तकनीक का उपयोग कर रही हैं। इस तकनीक में परमानेंट मैग्नेट की जगह टाइटली वाइंडेड मेटल कॉइल्स का इस्तेमाल किया जाता है, जो पावर जनरेट करते हैं। इसका मतलब यह है कि जहां पारंपरिक EV मोटर में नियोडिमियम, डिस्प्रोसियम और टरबियम जैसे रेयर अर्थ मेटल्स का उपयोग होता है, वहीं नई मोटर्स केवल धातु के कॉइल्स से ही पावर पैदा कर लेंगी। अगर ये परीक्षण सफल होते हैं तो यह भारतीय EV इंडस्ट्री के लिए गेम चेंजर साबित हो सकता है और हमारी निर्भरता चीन पर काफी हद तक कम हो जाएगी।
क्यों जरूरी है Rare Earth Metals से छुटकारा?
रेयर अर्थ मेटल्स का इस्तेमाल EV इंडस्ट्री के अलावा भी कई जगहों पर होता है।
EV मोटर्स: परमानेंट मैग्नेट मोटर्स बनाने के लिए।
पेट्रोल-डीजल गाड़ियां: कैटेलिटिक कन्वर्टर्स में।
इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस: सेंसर, डिस्प्ले और अन्य ऑटोमोबाइल सिस्टम्स में।
डिफेंस और एयरोस्पेस: ड्रोन, रोबोट, मिसाइल और सेमीकंडक्टर कंपोनेंट्स में।
इनका महत्व इतना अधिक है कि इनके बिना आधुनिक इलेक्ट्रिक वाहनों और डिफेंस सिस्टम्स की कल्पना करना मुश्किल है।
चीन ने हाल ही में कार, ड्रोन और रोबोट असेंबलिंग में इस्तेमाल होने वाले चुंबकों के शिपमेंट भी बंद कर दिए हैं। इसका असर न केवल EV बल्कि पूरी टेक्नोलॉजी और ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री पर दिख रहा है।
भारत के लिए संभावनाएं और चुनौतियां
भारत में EV सेक्टर तेजी से बढ़ रहा है और सरकार भी इसे प्रोत्साहित कर रही है। हालांकि, रेयर अर्थ मेटल्स की कमी ने इस इंडस्ट्री की प्रगति को बाधित किया है।
अगर भारत रेयर अर्थ मेटल-फ्री मोटर तकनीक में सफल होता है, तो इसके कई फायदे होंगे:
चीन पर निर्भरता कम होगी – भारत अपनी खुद की सप्लाई चेन पर नियंत्रण पा सकेगा।
लागत कम होगी – रेयर अर्थ मेटल्स महंगे होते हैं, जबकि मेटल कॉइल्स से मोटर बनाना सस्ता होगा।
स्थानीय मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा मिलेगा – भारत में नई टेक्नोलॉजी के आने से घरेलू कंपनियां और स्टार्टअप्स को बड़ा मौका मिलेगा।
ग्लोबल मार्केट में पहचान – भारत इस टेक्नोलॉजी के साथ अन्य देशों को भी समाधान दे सकता है।
हालांकि, चुनौतियां भी कम नहीं हैं। नई मोटर की परफॉर्मेंस, एफिशिएंसी और ड्यूरेबिलिटी पारंपरिक रेयर अर्थ मेटल मोटर्स के बराबर या उससे बेहतर होनी चाहिए। साथ ही, इन मोटर्स का बड़े पैमाने पर प्रोडक्शन करना भी आसान नहीं होगा।
EV इंडस्ट्री का भविष्य और भारत की भूमिका
दुनिया भर में EV का बाजार तेजी से बढ़ रहा है और आने वाले सालों में लाखों नई इलेक्ट्रिक गाड़ियां सड़कों पर उतरेंगी। ऐसे में मैग्नेट-फ्री मोटर्स का सफल होना भारत को एक बड़ा फायदा दिला सकता है। भारत न केवल अपनी घरेलू जरूरतें पूरी कर पाएगा, बल्कि वह इस तकनीक का एक्सपोर्ट भी कर सकता है। इस तरह भारत खुद को EV सप्लाई चेन का अहम खिलाड़ी बना सकता है।


