मनीषा शर्मा। कोटा की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान शुद्धाद्वैत प्रथम पीठ श्रीबड़े मथुराधीश मंदिर में इस वर्ष भी शीतकालीन परंपरा की शुरुआत प्रबोधिनी एकादशी से हो गई है। जैसे ही मौसम ने करवट बदली, वैसे ही भगवान मथुराधीश की सेवा-पद्धति, भोग और वस्त्र व्यवस्था में बदलाव किया गया है। मंदिर में अब शीतकालीन भोग और वस्त्र सेवा बसंत पंचमी तक जारी रहेगी। यह परिवर्तन हर वर्ष की तरह भगवान के आराम और स्वास्थ्य के अनुरूप किया जाता है, जिससे उन्हें सर्दी से बचाने के लिए उपयुक्त वातावरण मिल सके।
युवराज गोस्वामी मिलन कुमार बावा ने दी जानकारी
मंदिर के युवराज गोस्वामी मिलन कुमार बावा ने बताया कि पुष्टिमार्ग की परंपरा में सेवा का प्रत्येक परिवर्तन ऋतु परिवर्तन के साथ जुड़ा होता है। उन्होंने कहा कि यह मार्ग भगवान के प्रति स्नेह और वात्सल्य भावना को सर्वोच्च मानता है, और इसलिए जैसे मनुष्य ठंड में अपने परिधान और भोजन में बदलाव करता है, वैसे ही प्रभु की सेवा में भी यह परिवर्तन किया जाता है। मिलन बावा ने बताया कि अब प्रभु के सिंहासन पर रुई की गादी बिछाई जा रही है और उन्हें रुई की ओढ़नी ओढ़ाई जा रही है। यह परंपरा पुष्टिमार्ग में सदियों से चली आ रही है, जिसमें भगवान को ऋतु अनुसार वस्त्र और भोग प्रदान किए जाते हैं।
शीतकालीन भोग व्यवस्था में विशेष व्यंजन शामिल
मंदिर में सर्दी के मौसम को देखते हुए विशेष शीतकालीन भोग की व्यवस्था की गई है। इस दौरान भगवान मथुराधीश को जो व्यंजन अर्पित किए जा रहे हैं, उनमें शामिल हैं –
गोपीवल्लभ भोग
केसर पेठा
जायफल मिश्रित पकवान
गन्ने का रस
बैंगन का भर्ता
रतालु (जमीकंद)
शकरकंद
अन्य पौष्टिक शीतकालीन व्यंजन
इसके अलावा अंबर और हिना के सुगंधित द्रव्य भी अर्पित किए जा रहे हैं ताकि वातावरण सुगंधित और पवित्र बना रहे। झारी जी में कस्तूरी की पोटली भी रखी जा रही है, जिससे मंदिर परिसर में शीतलता और सुगंध का वातावरण बना रहे।
भगवान के आराम हेतु विशेष व्यवस्था
मंदिर प्रशासन ने बताया कि इस मौसम में भगवान के कक्ष में सिगड़ी रखने की परंपरा भी शुरू कर दी गई है। यह परंपरा इसलिए निभाई जाती है ताकि रात के समय प्रभु को ठंड न लगे और वातावरण गर्म बना रहे। मंदिर की दीवारों और फर्श पर भी रुई के आसन बिछाए गए हैं ताकि शीतलता का प्रभाव कम हो। सर्दी में प्रभु के शयन कक्ष में मखमली वस्त्र और ऊनी परिधान का उपयोग किया जा रहा है। भगवान की मूर्ति पर विशेष रूप से बने ऊनी शॉल, टोपी और गरम वस्त्र धारण कराए जा रहे हैं।
दर्शनों के समय में भी परिवर्तन
शीतकालीन मौसम को देखते हुए श्रीबड़े मथुराधीश मंदिर के दर्शनों के समय में भी परिवर्तन किया गया है। अब श्रद्धालुओं को दर्शन निम्न समयानुसार मिलेंगे –
मंगला दर्शन: सुबह 6:30 बजे
ग्वाल दर्शन: सुबह 9:00 बजे
राजभोग दर्शन: सुबह 10:30 से 10:45 बजे तक
उत्थापन दर्शन: दोपहर 3:30 बजे
भोग दर्शन: शाम 4:00 बजे
आरती दर्शन: शाम 4:30 बजे
शयन दर्शन: शाम 6:00 बजे
यह समय-सारिणी सर्दियों की अवधि तक लागू रहेगी। बसंत पंचमी के बाद जैसे-जैसे तापमान में वृद्धि होगी, वैसे ही दर्शनों के समय में पुनः परिवर्तन किया जाएगा।
मथुराधीश मंदिर के विकास कार्य की योजना
कोटा के मथुराधीश मंदिर परिसर में आने वाले समय में व्यापक विकास और सौंदर्यीकरण कार्य प्रस्तावित हैं। मंदिर के जीर्णोद्धार, परिक्रमा पथ और हेरिटेज सिटी निर्माण के लिए विस्तृत प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार की गई है। इस रिपोर्ट के अनुसार, लगभग ₹66.57 करोड़ की लागत से कॉरिडोर विकास और हेरिटेज निर्माण कार्य किए जाएंगे। इस परियोजना के अंतर्गत –
मंदिर की परिक्रमा मार्ग का पुनर्निर्माण
दीवारों और गलियारों का हेरिटेज स्वरूप में विकास
श्रद्धालुओं के लिए सुविधाजनक मार्ग और विश्राम स्थल
प्रकाश व्यवस्था और सजावट कार्य
करवाए जाएंगे।इससे न केवल मंदिर का ऐतिहासिक और धार्मिक स्वरूप निखरेगा बल्कि कोटा का धार्मिक पर्यटन भी सशक्त होगा।
शीतकालीन सेवा की धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता
पुष्टिमार्ग में यह माना जाता है कि भगवान की सेवा उसी प्रकार की जानी चाहिए जैसे एक बालक की देखभाल की जाती है। शीतकाल में प्रभु को गरम वस्त्र, पौष्टिक आहार और सुगंधित वातावरण प्रदान करना भक्तों की भक्ति और संवेदना का प्रतीक है। यह सेवा न केवल धार्मिक कर्तव्य है बल्कि भक्ति और वात्सल्य भाव का प्रतीक भी मानी जाती है। शीतकालीन व्यवस्था के दौरान भक्तों की भीड़ बढ़ जाती है, क्योंकि यह अवधि भगवान मथुराधीश के विशेष श्रृंगार और भोग दर्शन के लिए प्रसिद्ध होती है।


