मनीषा शर्मा। राजस्थान के पूर्व मंत्री रामलाल जाट और अन्य आरोपियों के खिलाफ सीबीआई जांच पर सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम रोक लगा दी है। राजस्थान हाईकोर्ट ने इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपने का आदेश दिया था, जिसे राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
राज्य सरकार की दलील: पुलिस निष्पक्ष जांच कर रही
राजस्थान सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि हाईकोर्ट द्वारा सीबीआई जांच का आदेश देना अनुचित था। सरकार ने कहा कि राज्य पुलिस निष्पक्ष जांच कर रही है और इस मामले में बाहरी हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है।
राज्य सरकार ने अपनी अपील में कहा-
“CBI जांच केवल असाधारण परिस्थितियों में ही की जानी चाहिए। इसे नियमित जांच का विकल्प नहीं बनाया जा सकता।”सरकार का यह भी तर्क था कि बिना ठोस सबूत के हाईकोर्ट ने मामले को राजनीतिक प्रभाव वाला बताकर सीबीआई जांच का आदेश दे दिया।
शिकायतकर्ता ने हाईकोर्ट के आदेश का किया बचाव
मामले के शिकायतकर्ता और माइनिंग व्यवसायी परमेश्वर जोशी ने हाईकोर्ट के आदेश का समर्थन किया। उन्होंने राज्य पुलिस पर पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाने का आरोप लगाते हुए कहा कि निष्पक्ष जांच के लिए सीबीआई ही उपयुक्त एजेंसी है।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की दलीलों को मानते हुए हाईकोर्ट के आदेश पर फिलहाल रोक लगा दी।
क्या है पूरा मामला?
भीलवाड़ा के करेड़ा थाना क्षेत्र में जयपुर निवासी अरविंद श्रीवास्तव उर्फ मनीष धाबाई, मथुरा निवासी श्यामसुंदर गोयल, गाजियाबाद निवासी चंद्रकांत शुक्ला, जोधपुर निवासी राजकुमार विश्नोई और जयपुर निवासी जितेंद्र धाबाई के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था।
इन पर आरोप है कि 2018 से जनवरी 2021 के बीच इन लोगों ने षड्यंत्रपूर्वक शिकायतकर्ता परमेश्वर जोशी की खान से एस्केवेटर मशीन, डंपर, डीजल एयर कंप्रेसर, लेथ मशीन और टेक मशीनें चोरी कर उदयपुर और केरल में खुर्दबुर्द कर दीं।
शिकायतकर्ता ने यह भी आरोप लगाया कि इस मामले में पूर्व राजस्व मंत्री रामलाल जाट, सूरज जाट, पूरण लाल गुर्जर, महिपाल सिंह, महावीर प्रसाद चौधरी और सुरेश जाट भी शामिल थे।
फर्जी दस्तावेजों का इस्तेमाल
मामले की जांच के दौरान एक आरोपी ने पुलिस के सामने फर्जी किराए का समझौता पेश कर दिया। आरोप है कि इसी दस्तावेज के आधार पर दो पुलिस अधिकारियों ने केस में नकारात्मक अंतिम रिपोर्ट (FRT) पेश कर दी, जिससे आरोपियों को बचाने की कोशिश की गई।
शिकायतकर्ता का आरोप है कि पुलिस इस मामले की निष्पक्ष जांच नहीं कर रही थी, इसलिए उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर सीबीआई जांच की मांग की थी।
राज्य सरकार का पक्ष
राजस्थान सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि हाईकोर्ट ने बिना पर्याप्त आधार के सीबीआई जांच का आदेश दे दिया। सरकार ने यह भी स्पष्ट किया कि इस केस में नामजद एडीजी स्तर के अधिकारी आनंद श्रीवास्तव के भाई अरविंद श्रीवास्तव का नाम केवल इसलिए आया क्योंकि वे एक आरोपी हैं, जबकि स्वयं अधिकारी का इस जांच से कोई लेना-देना नहीं था।
राज्य सरकार ने तर्क दिया-
“सीबीआई जांच को सामान्य प्रक्रिया नहीं बनाया जा सकता, जब राज्य पुलिस पूरी तरह सक्षम है।”
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर अंतरिम रोक लगाते हुए मामले की अगली सुनवाई तक राज्य पुलिस को ही जांच जारी रखने की अनुमति दी।