मनीषा शर्मा। टोंक जिला इन दिनों एक हिजाब विवाद को लेकर चर्चा का केंद्र बना हुआ है। जिला अस्पताल में स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर बिंदु गुप्ता और एक इंटर्न छात्रा के बीच हिजाब को लेकर हुए टकराव ने न केवल अस्पताल परिसर में तनाव पैदा किया बल्कि अब यह मुद्दा राजनीतिक रंग भी ले चुका है। ड्यूटी के दौरान हिजाब पहनने को लेकर दोनों के बीच हुई बहस का वीडियो वायरल होते ही यह मामला सुर्खियों में आ गया। वीडियो सामने आने के बाद यह विवाद सियासत के गलियारों में पहुंच गया। एक ओर भारतीय जनता पार्टी (BJP) डॉक्टर के समर्थन में खड़ी हो गई है तो वहीं दूसरी ओर मुस्लिम संगठन और कांग्रेस इंटर्न छात्रा के पक्ष में उतर आए हैं।
डॉक्टर और इंटर्न के बीच विवाद कैसे शुरू हुआ?
सूत्रों के अनुसार, जिला अस्पताल के महिला वार्ड में ड्यूटी के दौरान डॉक्टर बिंदु गुप्ता ने इंटर्न छात्रा को हिजाब पहनकर काम करने से रोक दिया। डॉक्टर का कहना था कि अस्पताल जैसे सरकारी संस्थानों में ड्यूटी के दौरान धार्मिक प्रतीकों को पहनना अनुशासन और नियमों के खिलाफ है। वहीं, इंटर्न छात्रा ने इस बात का विरोध किया और साफ कहा कि वह हिजाब पहनकर ही ड्यूटी करेगी। इस दौरान छात्रा ने पूरी घटना का वीडियो भी बना लिया और सोशल मीडिया पर अपलोड कर दिया। वीडियो वायरल होते ही यह मामला तूल पकड़ गया और राजनीतिक बहस का विषय बन गया।
बीजेपी डॉक्टर के समर्थन में
टोंक बीजेपी जिलाध्यक्ष चन्द्रवीर सिंह चौहान ने इस पूरे प्रकरण में डॉक्टर का समर्थन करते हुए जिला कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन में मांग की गई कि अस्पताल में धर्म और आस्था के नाम पर राजनीति न हो और सभी को सरकारी नियमों का पालन करना चाहिए। बीजेपी नेताओं ने मीडिया से बातचीत में कहा कि “यहां इंटर्न छात्रा और कुछ कांग्रेसी नेता इस मुद्दे पर राजनीतिक रोटियां सेकना चाहते हैं। यह किसी भी कीमत पर नहीं होने दिया जाएगा।” पार्टी नेताओं का यह भी कहना था कि अस्पताल जैसे सार्वजनिक स्थान पर केवल सेवा और पेशेवर आचरण होना चाहिए, धर्म या आस्था को बीच में लाना पूरी तरह गलत है।
मुस्लिम संगठन और कांग्रेस इंटर्न के पक्ष में
दूसरी ओर, मुस्लिम संगठनों ने इस विवाद को लेकर डॉक्टर बिंदु गुप्ता के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। उन्होंने जनाना अस्पताल प्रभारी से मुलाकात कर डॉक्टर के खिलाफ कार्रवाई की मांग की। संगठनों का कहना है कि हिजाब मुस्लिम महिलाओं की आस्था और पहचान है, इसे ड्यूटी के दौरान पहनने से किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। वहीं, कांग्रेस नेताओं ने भी इंटर्न छात्रा के समर्थन में बयान दिए और कहा कि यह धार्मिक स्वतंत्रता का मुद्दा है। कांग्रेस का तर्क है कि किसी भी नागरिक को अपने धर्म और आस्था का पालन करने का अधिकार है और डॉक्टर द्वारा इस तरह की रोक लगाना अनुचित है।
पुलिस का बयान
इस मामले में पुलिस की ओर से स्पष्ट किया गया कि अब तक इस संबंध में कोई औपचारिक शिकायत दर्ज नहीं हुई है। हालांकि सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल होने के बाद पुलिस भी सतर्क हो गई है और मामले पर नजर बनाए हुए है।
सरकारी नियम बनाम धार्मिक आस्था
टोंक का यह विवाद अब एक बड़े सवाल को जन्म दे रहा है – क्या सरकारी संस्थानों में धार्मिक प्रतीकों का इस्तेमाल करना उचित है? डॉक्टर का पक्ष है कि अस्पताल में ड्यूटी के दौरान किसी भी तरह का धार्मिक प्रदर्शन नहीं होना चाहिए, क्योंकि इससे संस्थान की तटस्थता प्रभावित होती है। वहीं, इंटर्न और उसके समर्थकों का कहना है कि भारत का संविधान धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है, ऐसे में हिजाब पहनना व्यक्तिगत अधिकार के दायरे में आता है।
विवाद का राजनीतिक रंग
राजस्थान में यह मामला इसलिए और भी गरमा गया है क्योंकि यहां पहले से ही धार्मिक ध्रुवीकरण की राजनीति संवेदनशील मुद्दा बनी हुई है। बीजेपी जहां इसे “नियम और अनुशासन” का मामला बता रही है, वहीं कांग्रेस और मुस्लिम संगठन इसे “धार्मिक स्वतंत्रता” से जोड़कर देख रहे हैं। बीजेपी का तर्क है कि कांग्रेस इस मुद्दे को भड़का रही है ताकि अल्पसंख्यक वोट बैंक को साधा जा सके। वहीं कांग्रेस का आरोप है कि बीजेपी अनावश्यक रूप से इसे बड़ा मुद्दा बनाकर समाज को बांटने की कोशिश कर रही है।
समाज में बढ़ती बहस
इस विवाद के बाद स्थानीय स्तर पर समाज में भी बहस छिड़ गई है। एक तबका मानता है कि अस्पताल जैसे स्थानों पर धर्म को नहीं लाना चाहिए, क्योंकि वहां मरीजों की सेवा ही सर्वोपरि है। वहीं, दूसरा वर्ग इसे आस्था का सवाल बताते हुए कह रहा है कि हिजाब पहनने से किसी की सेवा भावना पर असर नहीं पड़ता, इसलिए इसे रोकना गलत है।


