मनीषा शर्मा। राजस्थान की राजनीति एक बार फिर गर्मा गई है। पंचायत और निकाय चुनाव नजदीक आते ही भजनलाल शर्मा सरकार ने मंत्रिमंडल विस्तार की तैयारी तेज कर दी है। प्रदेश में अभी मुख्यमंत्री सहित कुल 24 मंत्री हैं, जबकि नियमों के अनुसार अधिकतम 30 मंत्रियों को कैबिनेट में शामिल किया जा सकता है। यानी छह नए चेहरों को मौका मिलने की पूरी संभावना है।
सूत्रों के मुताबिक, भाजपा नेतृत्व न केवल नए चेहरों को मंत्रिमंडल में शामिल करने की योजना बना रहा है, बल्कि कुछ मंत्रियों के विभागों में फेरबदल और खराब प्रदर्शन करने वालों की छुट्टी की संभावना भी जताई जा रही है। यह कदम जातीय और क्षेत्रीय संतुलन साधने के साथ-साथ आगामी पंचायत और निकाय चुनावों में भाजपा की रणनीति का अहम हिस्सा माना जा रहा है।
भजनलाल सरकार में कैबिनेट विस्तार क्यों अहम?
भाजपा की भजनलाल सरकार को सत्ता में आए लगभग 21 महीने हो चुके हैं। इस दौरान कई बार मंत्रिमंडल विस्तार की चर्चा उठी लेकिन अंतिम निर्णय टलता रहा। अब पंचायत और निकाय चुनावों से पहले यह कदम इसलिए अहम है क्योंकि यही चुनाव सरकार के कार्यकाल का पहला बड़ा इम्तिहान होंगे।
प्रदेश की राजनीति में शेखावाटी, आदिवासी इलाकों और पूर्वी राजस्थान पर भाजपा का खास फोकस है। हाल के विधानसभा और लोकसभा चुनावों में भाजपा को इन क्षेत्रों में अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाई थी। ऐसे में कैबिनेट विस्तार के जरिए पार्टी इन इलाकों को राजनीतिक रूप से साधने का प्रयास करेगी।
दिल्ली दौरों से संकेत
मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने बीते कुछ दिनों में कई बार दिल्ली का दौरा किया और पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से मुलाकात की। सूत्रों का कहना है कि इन बैठकों में मंत्रिमंडल विस्तार और संगठनात्मक फेरबदल पर गहन चर्चा हुई। माना जा रहा है कि आलाकमान की अंतिम सहमति के बाद जल्द ही नए मंत्रियों के नामों की घोषणा हो सकती है।
मौजूदा मंत्रियों का रिपोर्ट कार्ड
गुजरात में हाल ही में आयोजित भाजपा विधायकों की कार्यशाला में राजस्थान के मौजूदा मंत्रियों का रिपोर्ट कार्ड प्रस्तुत किया गया। इसमें कई मंत्रियों के कामकाज को लेकर सवाल उठे। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मदन राठौड़ ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि “परिवार के बड़े कभी पूरी तरह खुश नहीं होते, उनकी अपेक्षाएं हमेशा अधिक रहती हैं।” इस बयान को संकेत माना जा रहा है कि कुछ मौजूदा मंत्रियों की छुट्टी कर उन्हें संगठन में नई जिम्मेदारी दी जा सकती है।
भाजपा आलाकमान ने मंत्रियों के प्रदर्शन को आंकने के लिए कुछ पैरामीटर्स तय किए हैं। यदि किसी मंत्री का परफॉर्मेंस बेहद खराब पाया गया तो उन्हें मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता भी दिखाया जा सकता है।
गुटीय संतुलन साधने की कवायद
राजस्थान भाजपा इस बार मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर बेहद सतर्क है। पार्टी चाहती है कि सभी गुटों को उचित प्रतिनिधित्व मिले। खासकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के समर्थकों को स्थान देने पर जोर रहेगा। इस संतुलन का मकसद गुटबाजी को कम करना और शेष कार्यकाल में एकजुट होकर विकास पर ध्यान केंद्रित करना है।
राजनीतिक नियुक्तियों की दौड़
मंत्रिमंडल विस्तार के साथ-साथ राजनीतिक नियुक्तियों पर भी नजर है। अब तक प्रदेश में 9 बोर्ड और आयोगों में अध्यक्षों की नियुक्तियां की जा चुकी हैं। इनमें देवनारायण बोर्ड, राज्य अनुसूचित जाति वित्त विकास आयोग, माटी कला बोर्ड, किसान आयोग, सैनिक कल्याण बोर्ड, राज्य वित्त आयोग आदि शामिल हैं।
हाल ही में संघ से जुड़े नेता और पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी को राज्य वित्त आयोग का चेयरमैन बनाया गया है। वहीं वसुंधरा राजे गुट के नेता अशोक परनामी को तिरंगा यात्रा और विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस का संयोजक बनाया गया है।
अब अगली नियुक्तियों की दौड़ जन अभाव अभियोग निराकरण समिति, हाउसिंग बोर्ड, आरटीडीसी, बीस सूत्री कार्यक्रम उपाध्यक्ष और महिला आयोग जैसे महत्वपूर्ण पदों पर है। इसके लिए जिन नेताओं के नाम चर्चा में हैं उनमें अशोक परनामी, सतीश पूनिया, राजेंद्र राठौड़, नारायण पंचारिया, महेंद्रजीत सिंह मालवीया, सुमन शर्मा और पूजा कपिल मिश्रा शामिल हैं।
सतीश पूनिया का नाम राष्ट्रीय संगठन के लिए भी बताया जा रहा है। यानी संगठन और सत्ता में नए समीकरण गढ़ने की कवायद चरम पर है।
आगे की राह
राजस्थान विधानसभा में 200 सीटें हैं और नियमों के अनुसार अधिकतम 30 मंत्री बनाए जा सकते हैं। वर्तमान में 24 मंत्री होने के चलते छह नए चेहरों की एंट्री तय मानी जा रही है। भाजपा का मकसद है कि पंचायत और निकाय चुनावों से पहले जातीय व क्षेत्रीय समीकरणों को साधा जाए और संगठनात्मक गुटबाजी को कम कर सरकार की छवि मजबूत बनाई जाए।