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बजट 2025-26: 12.75 लाख रुपये तक की आय पर टैक्स में छूट से मध्यम वर्ग को राहत

बजट 2025-26: 12.75 लाख रुपये तक की आय पर टैक्स में छूट से मध्यम वर्ग को राहत

मनीषा शर्मा। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2025-26 के केंद्रीय बजट में मध्यम वर्ग को बड़ी राहत प्रदान की है। अब 12 लाख रुपये तक की आय आयकर के दायरे से बाहर होगी। स्टैंडर्ड डिडक्शन जोड़ने पर, वेतनभोगी व्यक्तियों के लिए 12.75 लाख रुपये तक की कर योग्य आय पर कोई टैक्स नहीं लगेगा। इस निर्णय से मध्यम वर्ग के कर भार में कमी आएगी, जिससे उनकी घरेलू खपत, बचत, और निवेश में वृद्धि की उम्मीद है।

आयकर स्लैब और दरों में बदलाव

वित्त मंत्री ने घोषणा की है कि सभी करदाताओं को लाभ पहुंचाने के लिए आयकर स्लैब और दरों में बदलाव किया जा रहा है। नई कर व्यवस्था के तहत, 12 लाख रुपये तक की आय पर शून्य आयकर लगेगा। इससे मध्यम वर्ग के लोगों को विशेष लाभ मिलेगा, और उनकी आय का बड़ा हिस्सा कर-मुक्त होगा।

टीडीएस में बदलाव

टीडीएस (स्रोत पर कर कटौती) के मामले में भी महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं। वरिष्ठ नागरिकों के लिए टीडीएस में छूट की सीमा को 50,000 रुपये से बढ़ाकर 1 लाख रुपये किया गया है। किराये से होने वाली आय पर टीडीएस में छूट की सीमा को 2.4 लाख रुपये से बढ़ाकर 6 लाख रुपये किया गया है। नॉन-पैन मामलों में उच्च टीडीएस के प्रावधान लागू रहेंगे। इसके अलावा, अपडेटेड रिटर्न दाखिल करने की सीमा को 2 साल से बढ़ाकर 4 साल कर दिया गया है।

बजट से पहले की स्थिति

पिछले बजट (2024) के अनुसार, यदि किसी करदाता की सालाना आय 7.75 लाख रुपये थी, तो स्टैंडर्ड डिडक्शन के 75,000 रुपये घटाने के बाद उसकी कर योग्य आय 7 लाख रुपये हो जाती थी, जिस पर कोई टैक्स नहीं लगता था। इसका मतलब है कि यदि किसी व्यक्ति का मासिक वेतन लगभग 64,000 से 64,500 रुपये था, तो नई कर प्रणाली के तहत उसकी आय टैक्स फ्री थी।

सरकार की मंशा

सरकार का उद्देश्य मध्यम वर्ग के कर भार को कम करना है, ताकि उनके पास अधिक डिस्पोजेबल आय हो, जिससे घरेलू खपत, बचत, और निवेश में वृद्धि हो सके। वित्त मंत्री ने कहा है कि नई कर व्यवस्था के तहत 12 लाख रुपये तक की आय पर शून्य आयकर लगेगा, जिससे मध्यम वर्ग को विशेष लाभ मिलेगा।

विशेषज्ञों की प्रतिक्रिया

विभिन्न विशेषज्ञों ने बजट के इन प्रावधानों का स्वागत किया है। उनका मानना है कि इन कर राहत उपायों से मध्यम वर्ग की क्रय शक्ति में वृद्धि होगी, जिससे अर्थव्यवस्था में खपत और निवेश को बढ़ावा मिलेगा। हालांकि, कुछ विशेषज्ञों ने चिंता व्यक्त की है कि इन कर कटौतियों से सरकारी राजस्व में कमी आ सकती है, जिसे अन्य स्रोतों से पूरा करना आवश्यक होगा।

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