मनीषा शर्मा। जयपुर में बीआरटीएस (बस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम) कॉरिडोर को हटाने का फैसला लिया गया है। यह फैसला केंद्रीय सड़क अनुसंधान संगठन (सीआरआरआई) की रिपोर्ट के आधार पर किया गया है। जयपुर विकास प्राधिकरण (जेडीए) ने इस परियोजना को लेकर अपनी कार्यकारी समिति की बैठक में यह निर्णय लिया।
बीआरटीएस कॉरिडोर का निर्माण 170 करोड़ रुपए की लागत से जवाहरलाल नेहरू नेशनल अरबन रिन्यूअल मिशन (जेएनएनयूआरएम) के तहत किया गया था। इसका उद्देश्य शहरी परिवहन की बसों के लिए एक अलग कॉरिडोर प्रदान करना था ताकि लोग तेज और समयबद्ध यात्रा का अनुभव कर सकें।
बीआरटीएस परियोजना क्यों असफल हुई?
बीआरटीएस को सफल बनाने के लिए ऑफ-बोर्ड टिकटिंग, इंटेलिजेंट ट्रैफिक मैनेजमेंट सिस्टम और एक केंद्रीय कंट्रोल रूम जैसी सुविधाएं स्थापित की जानी थीं। हालांकि, इन पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया। इसके अलावा, कॉरिडोर में अन्य वाहनों का चलना शुरू हो गया, जिससे बसों को प्राथमिकता नहीं मिल सकी।
स्थानीय लोगों की शिकायत थी कि कॉरिडोर ने सड़क की जगह को सीमित कर दिया है, जिससे यातायात की समस्याएं बढ़ गईं। सीआरआरआई की रिपोर्ट में यह सुझाव दिया गया कि या तो इस परियोजना को पूरी तरह लागू किया जाए या इसे समाप्त कर दिया जाए।
मध्यप्रदेश में भी असफल रहा बीआरटीएस
जयपुर से पहले मध्यप्रदेश के भोपाल और इंदौर में भी बीआरटीएस प्रोजेक्ट फेल हो चुका है। भोपाल में इसे पहले ही हटा दिया गया है, और इंदौर में इसे हटाने की प्रक्रिया चल रही है।
स्थानीय संगठनों की मांग और निर्णय
जयपुर में यह कॉरिडोर सीकर रोड और न्यू सांगानेर रोड पर बनाया गया था। सीकर रोड पर एक्सप्रेस-वे से अंबाबाड़ी तक 7.1 किलोमीटर लंबा कॉरिडोर और अजमेर रोड पर किसान धर्मकांटा से न्यू सांगानेर रोड तक 9 किलोमीटर लंबा कॉरिडोर बनाया गया।
स्थानीय संगठनों ने लंबे समय से इसे हटाने की मांग की थी। वर्ष 2009 में राज्य सरकार ने तय किया था कि 45 मीटर से अधिक चौड़ी सड़कों पर ही बीआरटीएस कॉरिडोर बनाया जाएगा।
सीआरआरआई की रिपोर्ट और जेडीए का निर्णय
जेडीए द्वारा सीआरआरआई से स्टडी कराई गई, जिसमें यह सुझाव दिया गया कि या तो इस कॉरिडोर को हटाया जाए या इसे पूरी तरह से लागू किया जाए। जेडीए ने इस रिपोर्ट के आधार पर कॉरिडोर को हटाने का निर्णय लिया।