शोभना शर्मा, अजमेर। अजमेर की विशेष पॉक्सो कोर्ट ने बुधवार को बहुचर्चित बिजयनगर रेप और धर्मांतरण कांड में आरोपी और पूर्व निर्दलीय पार्षद हकीम कुरैशी की जमानत याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट रूप से कहा कि इस मामले में आरोपित व्यक्ति द्वारा नाबालिग बच्चियों पर धर्मांतरण, रोजा रखने और कलमा पढ़ने का दबाव बनाना गंभीर और सोची-समझी साजिश का हिस्सा है। कोर्ट ने माना कि यह मामला सिर्फ बलात्कार का नहीं, बल्कि सोशल नेटवर्किंग और धार्मिक दबाव के माध्यम से बच्चियों को मानसिक और सामाजिक रूप से तोड़ने की कोशिश का प्रतिनिधित्व करता है।
कोर्ट की सख्त टिप्पणी: धर्मांतरण और ब्लैकमेल गंभीर अपराध
विशिष्ट लोक अभियोजक प्रशांत यादव के अनुसार, कोर्ट ने यह भी कहा कि आरोपी हकीम कुरैशी ने नाबालिग पीड़िताओं को डरा-धमका कर मुख्य आरोपी सोहेल मंसूरी के साथ भेजने का षड्यंत्र रचा था। पीड़िता को बार-बार कहा गया कि जब वह 18 वर्ष की हो जाएगी, तब उसका निकाह जबरन करवा दिया जाएगा। यह केवल यौन शोषण का मामला नहीं, बल्कि धार्मिक पहचान और स्वतंत्रता के विरुद्ध गहरी साजिश है।
गिरोह की कार्यप्रणाली: एक जैसे तरीके से कई बच्चियों को बनाया गया शिकार
जांच में यह बात सामने आई है कि आरोपियों का गिरोह योजनाबद्ध तरीके से नाबालिग छात्राओं को निशाना बनाता था। सबसे पहले 21 वर्षीय टेंपो चालक आशिक, जो कि बिजयनगर निवासी है, ने एक छात्रा को अपने झांसे में लिया। वह नियमित रूप से स्कूल के रास्ते में खड़ा रहता और उसने छात्रा से दोस्ती कर ली। धीरे-धीरे उसने छात्रा को चाइनीज मोबाइल दिलवाया और उसे इंस्टाग्राम पर जोड़कर अश्लील फोटो और वीडियो मंगवाए। इसके बाद उसने छात्रा के फोटो और वीडियो अपने साथियों से साझा किए।
आशिक ने इसी छात्रा के माध्यम से एक अन्य लड़की को भी फंसाया। गिरोह के सदस्यों ने एक के बाद एक कई लड़कियों को इसी तरीके से जाल में फंसाया। इनमें से कोई भी आरोपी स्कूल का छात्र नहीं था। कुछ मजदूरी करते थे, तो कुछ फर्नीचर, पेंट और वेल्डिंग का काम करते थे। गिरोह के सदस्य लड़कियों को अपनी पसंद के कपड़े पहनने के लिए बाध्य करते, उन्हें कैफे और अन्य जगहों पर भेजते और अपने खर्च से यह सब करवाते।
पूर्व पार्षद की संलिप्तता: समाजिक पद का गलत इस्तेमाल
पूर्व पार्षद हकीम कुरैशी पर लगे आरोप बेहद गंभीर हैं। पुलिस रिपोर्ट के अनुसार, कुरैशी नाबालिग लड़कियों को पीड़ितों के साथ दोस्ती करने और उनके साथ शारीरिक संबंध बनाने के लिए दबाव डालता था। वह लड़कियों को अन्य लड़कियों से मिलवाने के लिए प्रेरित करता था ताकि गिरोह का दायरा बढ़ाया जा सके। वह न केवल धर्म परिवर्तन के लिए दबाव बनाता था, बल्कि पीड़िताओं को मानसिक और भावनात्मक रूप से भी तोड़ता था।
पीड़ित परिवारों का विरोध: अदालत से कड़ी कार्यवाही की मांग
तीन मुकदमों में पीड़िताओं के परिवारों ने भी अदालत से स्पष्ट रूप से कहा कि आरोपियों को जमानत न दी जाए। उनका कहना है कि आरोपियों के परिवार वाले उन्हें लगातार धमकियां दे रहे हैं और मामला कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कोर्ट को बताया कि यह सामूहिक षड्यंत्र है, जो केवल बच्चियों की आज़ादी और जीवन को ही नहीं, बल्कि संपूर्ण सामाजिक ताने-बाने को प्रभावित कर रहा है।
15 फरवरी को हुआ था मामला उजागर
इस पूरे प्रकरण की शुरुआत 15 फरवरी 2025 को बिजयनगर थाने में दर्ज पहली एफआईआर से हुई थी, जब एक नाबालिग छात्रा ने आरोप लगाया कि कुछ युवक रेप कर वीडियो बनाकर ब्लैकमेल कर रहे हैं। इसके कुछ ही दिनों में एक और नाबालिग और फिर तीन अन्य लड़कियों के पिता की ओर से भी रिपोर्ट दर्ज की गई। पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए पॉक्सो और आईटी एक्ट सहित अन्य धाराओं में मामला दर्ज कर जांच शुरू की।
जैसे-जैसे पुलिस जांच आगे बढ़ी, वैसे-वैसे इस गिरोह के चेहरों से पर्दा उठता गया। हकीम कुरैशी जैसे राजनीतिक संपर्क रखने वाले व्यक्ति की संलिप्तता ने इस मामले को और भी चौंकाने वाला और गंभीर बना दिया।
समानता: अजमेर ब्लैकमेल कांड से मिलती-जुलती रणनीति
इस मामले की रणनीति और तरीके साल 1992 के अजमेर ब्लैकमेल कांड से काफी मिलते-जुलते पाए गए। वहां भी लड़कियों को पहले प्रेमजाल में फंसाया गया, फिर वीडियो के दम पर ब्लैकमेल किया गया और बाद में धार्मिक या सामाजिक दबाव डाला गया। बिजयनगर कांड में भी कुछ ऐसा ही सामने आया। प्राइवेट स्कूल की बच्चियों को निशाना बनाना, उनका रास्ता देखना, दोस्ती करना और फिर डिजिटल माध्यम से नियंत्रण पाना – यह तरीका लगभग वही है।
पुलिस कार्रवाई और अगली सुनवाई
पुलिस ने अब तक इस मामले में सभी प्रमुख आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है। अभी भी तीन नाबालिग और दो बालिग आरोपियों की जमानत याचिकाएं अदालत में लंबित हैं। एक नाबालिग आरोपी की जमानत पर अगली सुनवाई गुरुवार को होनी है।