मनीषा शर्मा। राजस्थान में सरकारी नौकरियों में आरक्षण और विशेष कोटे का फायदा उठाने के लिए लंबे समय से फर्जीवाड़े की शिकायतें आती रही हैं, लेकिन हाल ही में राज्य की विशेष ऑपरेशन ग्रुप (SOG) ने जिस घोटाले का खुलासा किया है, उसने पूरे तंत्र की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह मामला दिव्यांग कोटे के तहत सरकारी नौकरी पाने वाले अभ्यर्थियों से जुड़ा है, जिन्होंने फर्जी दिव्यांग सर्टिफिकेट बनवाकर नौकरी हासिल कर ली।
SOG की जांच में अब तक 100 से अधिक ऐसे कर्मचारी और अभ्यर्थी चिन्हित किए जा चुके हैं, जिन्होंने असल में दिव्यांग न होते हुए भी मेडिकल बोर्ड से झूठे प्रमाण पत्र बनवाए और फिर सरकारी सेवा में नियुक्ति पा ली। शुरुआती जांच में सामने आया कि यह फर्जीवाड़ा किसी छोटे स्तर पर नहीं बल्कि बड़े नेटवर्क के जरिए किया गया है, जिसमें सिस्टम के भीतर बैठे कर्मचारियों की मिलीभगत से लेकर मेडिकल बोर्ड की लापरवाही तक सबकुछ शामिल है।
मेडिकल जांच में हुआ बड़ा खुलासा
SOG ने हाल ही में 29 संदिग्ध कर्मचारियों की मेडिकल जांच करवाई थी। इस जांच के नतीजे बेहद चौंकाने वाले रहे। इनमें से केवल 5 कर्मचारियों के प्रमाण पत्र सही पाए गए, जबकि 24 लोग ऐसे निकले जो दिव्यांगता के मानकों पर खरे ही नहीं उतरे। यानी, इन लोगों ने झूठे दस्तावेज़ों के सहारे नौकरी पाई थी।
इसी के बाद विभाग ने और गहराई से जांच शुरू की और अब तक 43 मामलों में मेडिकल बोर्ड ने सत्यापन कर लिया है। इन 43 में से 37 मामलों में सर्टिफिकेट फर्जी पाए गए। यह आंकड़ा दिखाता है कि नेटवर्क कितना गहरा है और किस हद तक सरकारी भर्ती प्रक्रिया के साथ खिलवाड़ किया गया।
डमी कैंडिडेट का मामला
जांच के दौरान एक और बड़ा खुलासा हुआ जिसने इस पूरे घोटाले को और गंभीर बना दिया। जोधपुर के अशोक राम पुत्र चेनाराम भादू नामक व्यक्ति ने मेडिकल बोर्ड के सामने खुद की जगह एक वास्तविक बधिर दिव्यांग व्यक्ति को भेज दिया। जब यह धोखाधड़ी पकड़ में आई तो डमी कैंडिडेट को तुरंत पकड़ लिया गया। हालांकि अशोक राम फिलहाल फरार है और पुलिस उसकी तलाश कर रही है। इस मामले में गांधी नगर पुलिस ने श्रवण दास नामक व्यक्ति को गिरफ्तार कर लिया है, जो इस पूरी साजिश का हिस्सा बताया जा रहा है।
बड़ा नेटवर्क और मिलीभगत की आशंका
SOG अधिकारी वी.के. सिंह ने मीडिया से बातचीत में स्पष्ट कहा है कि यह केवल कुछ व्यक्तियों का मामला नहीं है बल्कि एक बड़े नेटवर्क का हिस्सा है। उन्होंने आशंका जताई कि विभागीय कर्मचारियों और मेडिकल बोर्ड से जुड़े अधिकारियों की मिलीभगत के बिना यह संभव ही नहीं था। सवाल उठता है कि आखिर मेडिकल बोर्ड ने ऐसे प्रमाण पत्रों को बिना पूरी जांच किए क्यों जारी किया।
पांच साल का रिकॉर्ड खंगाला जा रहा है
SOG ने अपनी जांच को सीमित न रखते हुए पिछले पांच साल का रिकॉर्ड खंगालना शुरू कर दिया है। अधिकारियों का कहना है कि जैसे-जैसे शिकायतों का सत्यापन होगा, वैसे-वैसे आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाएगी और गिरफ्तारी की जाएगी। फिलहाल कई आरोपी कर्मचारी गिरफ्तारी से बचने के लिए फरार हो चुके हैं।
राजस्थान पुलिस और SOG की टीम इस मामले को बेहद गंभीरता से ले रही है, क्योंकि यदि यह नेटवर्क उजागर नहीं हुआ तो भविष्य में भी सरकारी भर्ती प्रक्रियाओं में फर्जीवाड़ा जारी रह सकता है।