शोभना शर्मा। जयपुर में आयोजित ‘उद्यमी संवाद: नए क्षितिज की ओर’ कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहनराव भागवत ने संघ की कार्यप्रणाली, विचारधारा और भविष्य की दिशा पर विस्तृत विमर्श रखा। उन्होंने स्पष्ट कहा कि संघ किसी को नष्ट करने के लिए नहीं बना है और संघ को समझने के लिए उसे प्रत्यक्ष अनुभव करना आवश्यक है।
भागवत ने कहा कि भारत की पहचान सांस्कृतिक एकता पर आधारित है, न कि राजनीतिक सीमाओं या राज्यों के आधार पर। उन्होंने कहा कि भारतवर्ष में हमारी पहचान हिन्दू है, और हिन्दू शब्द सबको जोड़ने वाला है।
संघ को पहले जानिए, फिर राय बनाइए
कार्यक्रम में उद्यमियों और सामाजिक प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए सरसंघचालक ने कहा कि संघ के बारे में गलतफहमियां अक्सर दूर से देखने पर पैदा होती हैं। इसलिए उन्होंने लोगों से आग्रह किया कि संघ के बारे में राय बनाने से पहले शाखा में जाकर उसका प्रत्यक्ष अनुभव लें।
उनके अनुसार संघ से जुड़ने का कोई बंधन नहीं है। व्यक्ति अपनी रुचि और समय के अनुसार कोई भी जिम्मेदारी निभा सकता है।
पूरे समाज का संगठन ही संघ का लक्ष्य
भागवत ने स्पष्ट किया कि आरएसएस का मूल उद्देश्य पूरे समाज को संगठित करना है। उनका कहना था कि संघ चाहता है कि समाज का हर नागरिक निस्वार्थ भाव से देशहित में कार्य करे, जिससे समाज का हर व्यक्ति “संघ” की भावना से प्रेरित होकर राष्ट्र निर्माण में योगदान दे।
उन्होंने कहा कि संघ का लक्ष्य किसी व्यक्ति, समुदाय या विचारधारा को अलग करना नहीं, बल्कि एकजुट करना है।
विश्वगुरु भारत बनाना किसी एक व्यक्ति के वश की बात नहीं
संघ प्रमुख ने आरएसएस के 100 वर्षों की यात्रा पर कहा कि शताब्दी वर्ष के कार्यक्रम किसी प्रकार का उत्सव नहीं हैं, बल्कि अगले चरण की तैयारी और अपने कार्यों की समीक्षा का माध्यम हैं।
भागवत ने कहा कि भारत को विश्वगुरु बनाना एक व्यक्ति की क्षमता से संभव नहीं है।
उन्होंने कहा:
— नेता सहायता कर सकते हैं
— नीति और सरकार योगदान दे सकते हैं
— संगठन मार्गदर्शन दे सकते हैं
लेकिन अंतिम परिणाम तभी संभव है जब पूरा समाज एकजुट होकर अपनी भूमिका निभाए।
समाज में समरसता अनिवार्य, मंदिर–पानी–श्मशान सबके लिए खुलें
संघ के आगामी कार्यों पर बोलते हुए भागवत ने सामाजिक समरसता पर विशेष जोर दिया। उन्होंने कहा कि मंदिर, पानी और श्मशान जैसी मूलभूत सुविधाएँ सभी नागरिकों के लिए समान रूप से उपलब्ध होनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि परिवारिक और सामाजिक ढांचे को मजबूत करना भी आज की आवश्यकता है। इसके लिए परिवार के सभी सदस्यों को सप्ताह में कम से कम एक बार एकत्र होकर भोजन, भजन और परंपराओं का पालन करना चाहिए।
पर्यावरण संरक्षण में सामाजिक भागीदारी जरूरी
भागवत ने कहा कि समाज को केवल सामाजिक समरसता ही नहीं, बल्कि प्रकृति के संरक्षण के लिए भी जागरूक होना पड़ेगा। पानी बचाने, पेड़ लगाने और प्लास्टिक हटाने जैसे कार्य हर नागरिक की जिम्मेदारी हैं।
उन्होंने कहा कि ‘स्व’ का बोध और स्वदेशी का भाव देश को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में अनिवार्य है।
नागरिक अनुशासन और संविधान पालन पर जोर
सरसंघचालक ने कहा कि राष्ट्र निर्माण तभी संभव है जब नागरिक अपने कर्तव्यों को समझें और नियम, कानून तथा संविधान का पालन करें।
उन्होंने कहा कि यदि समाज अपनी-अपनी पद्धति से काम करे और एक-दूसरे का पूरक बने, तो देश प्रगति की दिशा में मजबूत कदम उठा सकेगा।


