शोभना शर्मा। बांसवाड़ा इन दिनों एक बड़े राजनीतिक और सामाजिक मुद्दे का केंद्र बना हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 25 सितंबर को नापला गांव में प्रस्तावित न्यूक्लियर पावर प्लांट का शिलान्यास करने आ रहे हैं। राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन इसकी तैयारियों में जुटे हुए हैं और खुद मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने भी कार्यक्रम स्थल का निरीक्षण कर तैयारियों का जायजा लिया है। लेकिन इस आयोजन से ठीक पहले क्षेत्र में विरोध के स्वर तेज हो गए हैं। बांसवाड़ा सांसद और भारत आदिवासी पार्टी के नेता राजकुमार रोत ने 23 सितंबर को अपने सैकड़ों समर्थकों के साथ जिला कलेक्ट्रेट परिसर में धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया। उनका आरोप है कि न्यूक्लियर पावर प्रोजेक्ट से प्रभावित परिवारों को आज तक उचित मुआवजा और आवश्यक सुविधाएं नहीं मिलीं।
पीएम के नाम 30 सूत्री ज्ञापन
धरने के दौरान सांसद राजकुमार रोत ने जिला कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक की मौजूदगी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम 30 सूत्री ज्ञापन सौंपा। लगभग दो घंटे तक चली बातचीत में कुछ स्थानीय मुद्दों पर प्रशासन ने समाधान का आश्वासन दिया, जबकि राज्य स्तर की मांगों को मुख्यमंत्री तक पहुंचाने का भरोसा दिलाया गया। ज्ञापन में प्रमुख रूप से प्रभावित परिवारों को मुआवजा, पुनर्वास, रोजगार और आधारभूत सुविधाओं की मांगें शामिल हैं।
मुआवजे और विस्थापन को लेकर रोष
मीडिया से बातचीत में सांसद रोत ने कहा कि न्यूक्लियर पावर प्लांट से सैकड़ों लोग प्रभावित हुए हैं, लेकिन कई परिवारों को अब तक हक का मुआवजा नहीं मिला। उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ लोग तो दूसरी बार विस्थापन की मार झेल रहे हैं, मगर उन्हें भी पर्याप्त मुआवजा और सुविधाएं नहीं दी गईं। उनका कहना है कि प्रभावित क्षेत्रों में आज भी आंगनवाड़ी, स्कूल, अस्पताल और छात्रावास जैसी मूलभूत सुविधाएं अधूरी हैं। यह स्थिति प्रभावित परिवारों की पीड़ा और बढ़ा रही है।
गरीबों को उजाड़कर कैसा विकास?
सांसद रोत ने प्रधानमंत्री के प्रस्तावित शिलान्यास पर सवाल उठाते हुए कहा, “गरीबों को उजाड़कर विकास नहीं किया जा सकता।” उन्होंने स्पष्ट किया कि जब तक सभी प्रभावित परिवारों को न्याय नहीं मिलेगा, उनका आंदोलन जारी रहेगा। उन्होंने चेतावनी दी कि शिलान्यास के नाम पर पीड़ितों की आवाज दबाने का प्रयास किया गया तो इसका पुरजोर विरोध किया जाएगा।
रोजगार और पर्यावरण सुरक्षा पर जोर
सांसद ने प्रभावित युवाओं के भविष्य को लेकर भी गंभीर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि सरकार सिर्फ नाम मात्र की नौकरियां देकर खानापूर्ति करना चाहती है। प्रभावित युवाओं को प्रशिक्षण देकर बेहतर रोजगार उपलब्ध कराए जाने चाहिए। साथ ही उन्होंने न्यूक्लियर पावर प्लांट से निकलने वाले दूषित पानी को लेकर भी चिंता जताई। रोत ने चेताया कि यह पानी पीने और सिंचाई के स्रोतों में नहीं छोड़ा जाना चाहिए, क्योंकि इससे स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य और खेती दोनों पर बुरा असर पड़ेगा।
कार्यक्रम में नहीं मिला आमंत्रण
इस विवाद में एक और राजनीतिक पहलू जुड़ गया है। सांसद राजकुमार रोत ने बताया कि उन्हें अब तक शिलान्यास कार्यक्रम में आमंत्रित नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि निमंत्रण मिलना या न मिलना ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि असली सवाल यह है कि प्रभावित परिवारों को न्याय कब मिलेगा। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि उन्होंने पहले भी प्रधानमंत्री से मिलकर इन समस्याओं को उठाया था, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। उनके अनुसार, पीड़ितों की अनदेखी कर शिलान्यास करना केवल औपचारिकता होगी।
सरकार की तैयारियां और विरोध की चुनौती
एक ओर जहां राज्य सरकार और प्रशासन शिलान्यास कार्यक्रम को भव्य और सफल बनाने में लगे हुए हैं, वहीं दूसरी ओर स्थानीय स्तर पर विरोध की स्थिति चुनौतीपूर्ण है। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा का बांसवाड़ा पहुंचकर तैयारियों का जायजा लेना इस कार्यक्रम की प्राथमिकता को दिखाता है। लेकिन सांसद रोत का आंदोलन इस आयोजन पर छाया डाल सकता है। उनका कहना है कि यदि सरकार समय रहते प्रभावित परिवारों को राहत नहीं देती तो यह आंदोलन और बड़ा रूप ले सकता है।