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बीकानेर के पूर्व राजघराने में बुआ-भतीजी विवाद: संपत्ति और ट्रस्ट पर खींचतान

बीकानेर के पूर्व राजघराने में बुआ-भतीजी विवाद: संपत्ति और ट्रस्ट पर खींचतान

मनीषा शर्मा। बीकानेर के पूर्व राजघराने में संपत्ति और ट्रस्ट को लेकर चल रहे विवाद ने नया मोड़ ले लिया है। पूर्व महाराजा करणी सिंह की बेटी राज्यश्री कुमारी और उनकी भतीजी, भाजपा विधायक सिद्धि कुमारी, के बीच संपत्ति और ट्रस्ट पर अधिकार को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा है। हाल ही में देवस्थान विभाग के आदेश ने इस विवाद को और गहरा दिया है।

देवस्थान विभाग ने पलटा अपना फैसला

कुछ समय पहले देवस्थान विभाग ने भाजपा विधायक सिद्धि कुमारी के पक्ष में फैसला सुनाया था। इस आदेश के तहत राज्यश्री कुमारी और अन्य ट्रस्टियों को ट्रस्ट से हटा दिया गया था। लेकिन अब देवस्थान विभाग ने मुंबई हाईकोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए अपने ही आदेश को बदल दिया है। नए आदेश में राज्यश्री कुमारी, मधुलिका कुमारी, हनुवंत सिंह, और रीमा हूजा को ट्रस्टी के रूप में पुनः बहाल किया गया है।

देवस्थान विभाग ने यह स्पष्ट किया है कि परिवार के वरिष्ठ सदस्य को ट्रस्ट का अधिकार मिलेगा। इस आधार पर राज्यश्री कुमारी को वरिष्ठ सदस्य मानते हुए ट्रस्ट का अधिकार दिया गया है।

राज्यश्री कुमारी का बयान

नए आदेश के बाद राज्यश्री कुमारी ने मीडिया से बातचीत की। उन्होंने अपनी भतीजी सिद्धि कुमारी पर कई गंभीर आरोप लगाए। राज्यश्री ने कहा, “जब से मेरी मां सुशीला देवी का निधन हुआ है, तब से सिद्धि कुमारी मुझे परेशान कर रही हैं। उन्होंने पुलिस थानों में मेरे खिलाफ झूठे मामले दर्ज कराए और जूनागढ़ व लालगढ़ पैलेस के बाहर बाउंसर खड़े कर दिए ताकि मैं वहां प्रवेश न कर सकूं।”

राज्यश्री ने कहा कि वह किसी भी विवाद में नहीं पड़ना चाहतीं और राजपरिवार की गरिमा बनाए रखना चाहती हैं।

संपत्ति और ट्रस्टों का विवाद

राजघराने की बेशकीमती संपत्ति और ट्रस्टों को लेकर बुआ-भतीजी के बीच यह विवाद चल रहा है। महाराजा करणी सिंह के समय में और बाद में पांच ट्रस्टों का गठन किया गया था। इनमें महाराजा गंगा सिंह ट्रस्ट, महाराजा राय सिंह ट्रस्ट, करणी सिंह फाउंडेशन, करणी चैरिटेबल ट्रस्ट, और महारानी सुशीला कुमारी ट्रस्ट शामिल हैं।

इन सभी ट्रस्टों का प्रबंधन पहले राज्यश्री कुमारी के हाथों में था। लेकिन राजमाता सुशीला कुमारी के निधन के बाद विवाद शुरू हो गया। सिद्धि कुमारी ने देवस्थान विभाग के आदेश के माध्यम से ट्रस्टों का नियंत्रण अपने पक्ष में कर लिया था।

देवस्थान विभाग का पहला फैसला

27 मई 2024 को देवस्थान विभाग के सहायक आयुक्त ने आदेश दिया था कि सिद्धि कुमारी परिवार की वरिष्ठ सदस्य हैं और उन्हें ट्रस्ट का अधिकार दिया जाएगा। साथ ही, हनुवंत सिंह के हस्ताक्षर को फर्जी मानते हुए पुराने ट्रस्टियों को हटाकर नए ट्रस्टियों को नियुक्त किया गया।

देवस्थान विभाग का संशोधित आदेश

देवस्थान विभाग के आयुक्त वासुदेव मालावत ने मुंबई हाईकोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए पुराने आदेश को संशोधित किया। नए आदेश में कहा गया कि वरिष्ठ सदस्य राज्यश्री कुमारी हैं, न कि सिद्धि कुमारी। इस आधार पर राज्यश्री कुमारी और अन्य पुराने ट्रस्टियों को बहाल कर दिया गया।

आयुक्त ने स्पष्ट किया कि हनुवंत सिंह के हस्ताक्षर को अवैध मानने का आधार सहायक आयुक्त के आदेश में नहीं था, इसलिए वह आदेश विधि विरुद्ध है।

बुआ-भतीजी के बीच बढ़ती खींचतान

राजघराने के इस विवाद में दोनों पक्षों ने अपने-अपने समर्थकों को ट्रस्टों में शामिल किया है। सिद्धि कुमारी ने देवस्थान विभाग के पहले आदेश का उपयोग कर ट्रस्टियों को बदल दिया था, जबकि राज्यश्री कुमारी ने अदालत का सहारा लिया।

दोनों पक्ष जूनागढ़ और लालगढ़ पैलेस सहित अन्य संपत्तियों पर अपने अधिकार का दावा कर रहे हैं। राज्यश्री का कहना है कि वह राजपरिवार की गरिमा को बनाए रखने के लिए विवाद से बचना चाहती हैं, लेकिन सिद्धि कुमारी की ओर से किए गए व्यवहार के कारण उन्हें यह कदम उठाना पड़ा।

संपत्ति विवाद के पीछे की राजनीति

यह विवाद न केवल संपत्ति का मामला है, बल्कि इसमें राजनीति भी अहम भूमिका निभा रही है। सिद्धि कुमारी भाजपा विधायक हैं और उनका राजनीतिक प्रभाव राजघराने की संपत्ति विवाद में भी दिखाई देता है।

 

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