मनीषा शर्मा। प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता और हास्य कलाकार असरानी ने अजमेर में हुए सिंधी मेला के दौरान राजस्थान और सिंधी समाज की जमकर तारीफ की। शनिवार रात अजमेर के आजाद पार्क में आयोजित इस कार्यक्रम में उन्होंने न केवल अपनी हास्यपूर्ण शैली से लोगों का मनोरंजन किया बल्कि सिंधी समाज की मेहनत और उनकी सभ्यता के अनोखे पहलुओं को भी सामने रखा।
कार्यक्रम में राजस्थान विधानसभा स्पीकर वासुदेव देवनानी और ‘जूनियर हेमा मालिनी’ के नाम से प्रसिद्ध कलाकार भी मौजूद थीं।
फिल्मी डायलॉग से बांधा समां
असरानी ने अपने चिर-परिचित अंदाज में मंच पर शोले का मशहूर डायलॉग सुनाया, “हम अंग्रेजों के जमाने के जेलर हैं, हमारी जेल में सुरंग… आधे इधर जाओ, आधे उधर जाओ, बाकी मेरे पीछे आओ।” यह डायलॉग सुनकर अजमेर की जनता ने जमकर तालियां और सीटियां बजाईं।
उन्होंने कहा, “हम जानते हैं, हम नहीं सुधर रहे, तो अजमेर वालों तुम क्या सुधरोगे?” इस बयान से न केवल दर्शकों के चेहरे पर मुस्कान आई बल्कि पूरे कार्यक्रम का माहौल हल्का-फुल्का और मनोरंजक हो गया।
राजस्थान का प्यार सबसे खास
असरानी ने कहा, “मैं दुनियाभर में गया, लेकिन जो प्यार और सम्मान मुझे राजस्थान में, खासकर अजमेर में मिला, वैसा कहीं और नहीं मिला। मैं इस संदेश को हिंदुस्तान की फिल्म इंडस्ट्री तक ले जाऊंगा।” उन्होंने बताया कि राजस्थान का मेहमाननवाजी में कोई मुकाबला नहीं है और यहां की सभ्यता और संस्कृति की झलक पूरे विश्व को दिखानी चाहिए।
उन्होंने कहा कि राजस्थान में कलाकारों को जिस तरह की सराहना और समर्थन मिलता है, वह किसी अन्य जगह संभव नहीं। “तालियां और सीटियां ही कलाकार का असली ऑक्सीजन हैं। बड़े से बड़े कलाकार को भी यह चाहिए। यह सब न हो, तो बड़ी से बड़ी गाड़ियां और बंगलों का कोई मतलब नहीं।”
सिंधी समाज की मेहनत और आत्मसम्मान की तारीफ
असरानी ने सिंधी समाज की आत्मनिर्भरता और मेहनतकश स्वभाव की प्रशंसा करते हुए कहा, “आपने कभी सिंधी भिखारी नहीं देखा होगा। सिंधी लोग किसी भी परिस्थिति में अपने आत्मसम्मान को बनाए रखते हैं। उन्होंने कपड़े, पकौड़े और पकवान बेचे, लेकिन भीख नहीं मांगी। यही उनकी सबसे बड़ी खासियत है।”
उन्होंने कहा कि सिंधी समाज ने अपनी मेहनत के बल पर हर देश में अपना नाम रोशन किया है। “जापान, मलेशिया, ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड—कोई देश नहीं छोड़ा जहां सिंधियों ने व्यापार न किया हो। मेरे पिता और मां ने भी मेहनत की, कपड़े सिले लेकिन कभी भीख नहीं मांगी। यह गर्व की बात है।”
असरानी की जयपुर से मुंबई तक की यात्रा
1936 में कराची से जयपुर आकर बसे असरानी के पिता ने एमआई रोड पर स्थित इंडियन आर्ट्स कार्पेट फैक्ट्री में नौकरी की थी। जयपुर में 1 जनवरी, 1941 को जन्मे असरानी की प्रारंभिक शिक्षा सेंट जेवियर स्कूल और राजस्थान कॉलेज में हुई।
1962 में मुंबई पहुंचने के बाद उनकी मुलाकात किशोर साहू और ऋषिकेश मुखर्जी से हुई। उन्होंने असरानी को पुणे के एफटीआईआई से अभिनय का कोर्स करने की सलाह दी। कोर्स पूरा करने के बाद असरानी को फिल्म इंडस्ट्री में काम मिला। 1975 में आई फिल्म शोले के बाद वह बड़े पर्दे पर छा गए।
सिंधी मेला: संस्कृति और सभ्यता का उत्सव
अजमेर में सिंधी संगीत समिति द्वारा आयोजित यह मेला सिंधी समाज की सभ्यता और संस्कृति को बढ़ावा देने का एक महत्वपूर्ण मंच है। असरानी ने इस आयोजन की भव्यता की तारीफ करते हुए कहा, “सिंधी संस्कृति को बढ़ाने के लिए इतना बड़ा आयोजन मैंने पहले कभी नहीं देखा। अमेरिका, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में भी इतना भव्य आयोजन नहीं हुआ। यह राजस्थान और सिंधी समाज की खासियत को दर्शाता है।”
डायरेक्टर और डायलॉग का जिक्र
असरानी ने मंच पर कहा, “सिनेमा के पर्दे पर जो डायलॉग हम बोलते हैं, वह डायरेक्टर के कहे अनुसार होता है। लेकिन यहां पर मैं अपने दिल की बात कह रहा हूं। यहां न कोई डायरेक्टर है और न कोई लिखित स्क्रिप्ट। यही मंच का असली आनंद है।”
राजस्थान से जुड़ा असरानी का भावनात्मक रिश्ता
असरानी ने कहा कि उनका परिवार 1936 में कराची से जयपुर आया था। उनकी परवरिश और शुरुआती जीवन जयपुर में ही बीता। आज भी वह राजस्थान से जुड़े हुए महसूस करते हैं और यहां का हर अनुभव उनके लिए खास है।
उन्होंने कहा कि राजस्थान की मेहमाननवाजी और प्रेम को वह हमेशा अपने दिल में संजोकर रखते हैं। “राजस्थान का प्यार मेरे लिए अमूल्य है। मैं इसे कभी नहीं भूल सकता। यह मेरी जड़ों का हिस्सा है।”