मनीषा शर्मा। राजस्थान का भूगोल और मौसम हमेशा से ही पानी की कमी और सूखे की चुनौती से जूझता रहा है। यहां के कई जिले हर साल बारिश की कमी का सामना करते हैं। इसी चुनौती को देखते हुए प्रदेश सरकार और टेक्नोलॉजी कंपनियों ने मिलकर एक अनोखा प्रयोग शुरू किया है—ड्रोन की मदद से क्लाउड सीडिंग द्वारा कृत्रिम बारिश करवाने का प्रयास। यह भारत का पहला ऐसा प्रोजेक्ट है जिसमें बड़े पैमाने पर ड्रोन को आसमान में उड़ाकर बारिश कराने की कोशिश की जा रही है।
इस प्रयोग का केंद्र बना है जयपुर के पास जमवारामगढ़ स्थित रामगढ़ बांध, जो लंबे समय से सूखा पड़ा हुआ है। इस बांध के सूखने से न केवल जयपुर शहर बल्कि आसपास के गांव भी पानी संकट से जूझते रहे हैं। अब एक बार फिर से उम्मीद जगी है कि क्लाउड सीडिंग तकनीक से कृत्रिम बारिश कर पानी की कमी को दूर किया जा सकेगा।
10 हजार फीट तक ड्रोन उड़ाने की अनुमति
इस प्रोजेक्ट को सफल बनाने के लिए बड़ी राहत यह है कि नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA) ने 10 हजार फीट तक ड्रोन उड़ाने की अनुमति दे दी है। पहले ड्रोन को केवल 400 फीट तक ही उड़ाया जा सकता था, जिससे बादलों तक पहुंचना संभव नहीं था। अब ऊंचाई की सीमा बढ़ने से ड्रोन सीधे बादलों के बीच जाकर सीडिंग प्रक्रिया को अंजाम दे पाएंगे।
हालांकि अभी भी एयर ट्रैफिक कंट्रोल (ATC) से एनओसी (NOC) मिलना बाकी है। जैसे ही यह अनुमति मिलेगी, ड्रोन की उड़ान का समय तय किया जाएगा और बारिश कराने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी।
कृषि मंत्री की पहल और विदेशी कंपनी की तकनीक
इस पूरे प्रोजेक्ट की शुरुआत राजस्थान के कृषि मंत्री डॉ. किरोड़ी लाल मीणा की पहल पर हुई है। उन्होंने अमेरिका और बेंगलुरु की टेक्नोलॉजी कंपनी जेन एक्स एआई (Gen X AI) को इस प्रोजेक्ट से जोड़ा है। कंपनी आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल कर क्लाउड सीडिंग प्रक्रिया को संभव बना रही है।
हाल ही में कृषि मंत्री ने केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री से भी मुलाकात कर प्रोजेक्ट को मंजूरी दिलाने का प्रयास किया था। कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह प्रयोग सही समय पर सफल हो जाता है तो रामगढ़ बांध में पानी का स्तर काफी बढ़ सकता है और जयपुर सहित आसपास के इलाकों की पानी की कमी दूर हो सकती है।
प्रयोग में आ रही चुनौतियां
हालांकि यह प्रोजेक्ट बेहद महत्वाकांक्षी है, लेकिन अभी तक की कोशिशों में इसे पूरी सफलता नहीं मिल पाई है। 12 अगस्त को किए गए पहले ट्रायल के दौरान भीड़ ज्यादा होने की वजह से जीपीएस सिस्टम काम नहीं कर पाया और प्रयोग असफल रहा। इसके बाद 18 अगस्त को दूसरी बार प्रयास किया गया, लेकिन कुछ ही देर में ड्रोन नियंत्रण से बाहर हो गया और पास के खेत में गिर गया।
इन शुरुआती असफलताओं ने प्रोजेक्ट को धीमा जरूर किया है, लेकिन टीम का कहना है कि तकनीकी गड़बड़ियों को सुधारकर जल्द ही एक और प्रयास किया जाएगा। विशेषज्ञों का मानना है कि क्लाउड सीडिंग जैसी जटिल प्रक्रिया में शुरुआत में रुकावटें आना स्वाभाविक है, लेकिन लगातार प्रयास से सफलता मिल सकती है।
कृत्रिम बारिश से उम्मीदें
राजस्थान जैसे सूखा प्रभावित राज्य में कृत्रिम बारिश की सफलता का मतलब है कि पानी की बड़ी समस्या को काफी हद तक कम किया जा सकता है। अगर यह प्रयोग सफल होता है तो केवल रामगढ़ बांध ही नहीं बल्कि प्रदेश के अन्य बांधों और जलाशयों को भी रिचार्ज किया जा सकता है।
क्लाउड सीडिंग तकनीक में बादलों के भीतर सिल्वर आयोडाइड जैसे रसायन छोड़े जाते हैं, जिससे बादलों में नमी संघनित होकर बारिश के रूप में गिरती है। विकसित देशों में इस तकनीक का उपयोग पहले से किया जा रहा है, लेकिन भारत में यह पहला मौका है जब इतने बड़े पैमाने पर ड्रोन आधारित प्रयोग हो रहा है।