शोभना शर्मा। बारां की अंता विधानसभा सीट पर उपचुनाव का माहौल गर्म हो गया है। आगामी 11 नवंबर 2025 को होने वाले इस उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। यह सीट भाजपा के पूर्व विधायक कंवरलाल मीणा की सदस्यता रद्द होने के बाद खाली हुई थी। उन्हें तीन साल की सजा मिलने के कारण विधानसभा से अयोग्य घोषित कर दिया गया था। भाजपा इस चुनाव को न केवल अपनी साख का सवाल मान रही है, बल्कि आगामी लोकसभा चुनावों से पहले इसे संगठनात्मक एकता की परीक्षा के रूप में भी देख रही है। पार्टी का पूरा ध्यान जातीय समीकरणों को साधने और हर समुदाय तक प्रभावी पहुंच बनाने पर है।
भाजपा ने मैदान में उतारे सामाजिक प्रतिनिधि नेता
भाजपा ने अपने अभियान को जातीय आधार पर मजबूत करने की रणनीति अपनाई है। ओबीसी वर्ग से आने वाले मंत्री जोराराम कुमावत और झाबर सिंह खर्रा को अंता भेजा गया है ताकि पिछड़े वर्गों में भाजपा का प्रभाव बढ़ाया जा सके। वहीं, अजमेर दक्षिण की विधायक अनीता भदेल, जो अनुसूचित जाति वर्ग से आती हैं, उन्हें भी क्षेत्र में सक्रिय किया गया है ताकि एससी समुदाय के बीच भाजपा का जनाधार मजबूत हो सके। ये तीनों नेता लगातार जनसभाएं और सामाजिक संपर्क बैठकों का आयोजन कर रहे हैं। पार्टी की योजना है कि प्रत्येक समाज को उसकी भाषा में संवाद के जरिये साधा जाए।
राजे खेमे की सक्रियता और संगठनात्मक अनुशासन
भाजपा के भीतर पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और उनके समर्थक गुट भी इस उपचुनाव को प्रतिष्ठा का विषय मान रहे हैं। झालावाड़-बारां सांसद दुश्यंत सिंह, जो राजे के पुत्र हैं, सक्रिय रूप से प्रचार की रणनीति बना रहे हैं। राजे खेमे के वरिष्ठ नेता पर्दे के पीछे से कार्यकर्ताओं के बीच समन्वय बनाए रखने, असंतोष दूर करने और संगठन में अनुशासन बनाए रखने की जिम्मेदारी निभा रहे हैं। राजे खेमे की सक्रियता से यह स्पष्ट है कि अंता उपचुनाव भाजपा के लिए केवल सीट जीतने का सवाल नहीं, बल्कि संगठनात्मक एकजुटता और नेतृत्व की परीक्षा भी है।
कांग्रेस और निर्दलीय प्रत्याशी से कड़ी टक्कर
अंता उपचुनाव में भाजपा को कांग्रेस प्रत्याशी प्रमोद जैन भाया से कड़ी चुनौती मिल रही है। भाया पहले भी इस क्षेत्र से विधायक रह चुके हैं और स्थानीय स्तर पर मजबूत जनाधार रखते हैं। दूसरी ओर, कांग्रेस से नाराज होकर निर्दलीय मैदान में उतरे नरेश मीणा ने भी चुनावी माहौल में नई चुनौती खड़ी कर दी है। मीणा समुदाय अंता क्षेत्र में प्रभावशाली माना जाता है, और नरेश मीणा युवाओं व एसटी मतदाताओं के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं। इससे भाजपा के लिए मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है।
सैनी समाज बना निर्णायक फैक्टर
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, अंता विधानसभा क्षेत्र में सैनी समाज का वोट बैंक निर्णायक भूमिका निभा सकता है। सैनी मतदाता इस क्षेत्र के लगभग 18-20 प्रतिशत हैं, जो किसी भी प्रत्याशी की जीत या हार तय कर सकते हैं। इसके अलावा मीणा, धाकड़, मुस्लिम, ब्राह्मण और गुर्जर समुदाय भी चुनाव में महत्वपूर्ण हिस्सेदारी रखते हैं। भाजपा ने हर जातीय समूह के लिए अलग-अलग प्रचारक और संपर्क प्रभारी नियुक्त किए हैं। सैनी समाज को साधने के लिए स्थानीय सैनी नेताओं को प्रचार की अग्रिम पंक्ति में लाया गया है। पार्टी का पूरा प्रयास है कि यह समाज भाजपा के पक्ष में एकजुट वोट करे।
भाजपा का संगठनात्मक अभियान और प्रचार रणनीति
भाजपा ने अंता उपचुनाव के लिए माइक्रो लेवल मैनेजमेंट की रणनीति अपनाई है। पार्टी के हर बूथ स्तर पर ‘पन्ना प्रमुख’ सक्रिय किए गए हैं। इसके साथ-साथ गांव-गांव में समाज विशेष की बैठकें, संपर्क अभियान और घर-घर जनसंपर्क पर जोर दिया जा रहा है। पार्टी के आईटी और सोशल मीडिया सेल को भी विशेष निर्देश दिए गए हैं कि वे जातीय और विकासात्मक मुद्दों पर केंद्रित संदेश जनता तक पहुंचाएं। भाजपा के प्रदेश मुख्यालय से लगातार अभियान की समीक्षा की जा रही है।
स्थानीय मुद्दे भी बने अहम
अंता क्षेत्र में बेरोजगारी, सिंचाई की कमी और कृषि से जुड़ी समस्याएं लंबे समय से स्थानीय मुद्दे रहे हैं। विपक्ष भाजपा पर इन समस्याओं को नजरअंदाज करने का आरोप लगा रहा है। वहीं, भाजपा विकास कार्यों, सड़क निर्माण और किसानों के लिए की गई योजनाओं को प्रचार में प्रमुखता दे रही है। कांग्रेस प्रत्याशी प्रमोद जैन भाया विकास कार्यों की धीमी रफ्तार और किसानों की बदहाली को मुद्दा बना रहे हैं, जबकि नरेश मीणा “स्थानीय नेतृत्व” और “आदिवासी अस्मिता” के सवाल को प्रमुखता दे रहे हैं।
अंता विधानसभा उपचुनाव 2025 जातीय समीकरणों, स्थानीय मुद्दों और नेतृत्व की रणनीति का एक अनोखा संगम बन गया है। भाजपा जहां संगठन और जातीय संतुलन पर भरोसा कर रही है, वहीं कांग्रेस और निर्दलीय प्रत्याशी नरेश मीणा जमीनी जुड़ाव पर दांव लगा रहे हैं। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि अगर भाजपा सैनी समाज और ओबीसी वर्ग को एकजुट करने में सफल रही, तो वह सीट दोबारा जीत सकती है। अन्यथा, कांग्रेस या निर्दलीय प्रत्याशी भाजपा की गणित को बिगाड़ सकते हैं।


