शोभना शर्मा। राजस्थान के शैक्षणिक जगत में शुक्रवार को बड़ा घटनाक्रम सामने आया है। मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर की कुलगुरू प्रोफेसर सुनीता मिश्रा का इस्तीफा राज्यपाल द्वारा मंजूर कर लिया गया है। पिछले कुछ महीनों से लगातार विवादों के केंद्र में रही प्रो. मिश्रा के इस्तीफे पर अब आधिकारिक मुहर लगने के बाद मामला पूरी तरह निर्णायक मोड़ पर पहुंच गया है।
प्रो. मिश्रा उस समय सुर्खियों में आई थीं जब उनका एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था जिसमें उन्होंने इतिहास चर्चा के दौरान मुगल बादशाह औरंगज़ेब को कुशल प्रशासक बताया था। यह बयान उदयपुर सहित पूरे राजस्थान में तीखी प्रतिक्रिया का कारण बना। कई विद्यार्थी संगठनों ने इसे राष्ट्रनायकों और इतिहास के अपमान से जोड़ते हुए कड़ा विरोध जताया और विश्वविद्यालय प्रशासन से कार्रवाई की मांग की। विरोध प्रदर्शन कैंपस के अंदर और बाहर दोनों जगह हुए तथा कई संगठनों ने कुलगुरू के खिलाफ लिखित शिकायतें भी प्रस्तुत कीं।
जैसे-जैसे विवाद बढ़ा, आरोपों का दायरा भी व्यापक होता गया। प्रो. मिश्रा पर प्रशासनिक लापरवाही, कथित पक्षपातपूर्ण व्यवहार और विश्वविद्यालय स्तर पर निर्णय प्रक्रिया में अनियमितताओं जैसी अन्य शिकायतें भी दर्ज की गईं। इन सभी गंभीर शिकायतों को ध्यान में रखते हुए उदयपुर संभागीय आयुक्त की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय जांच समिति गठित की गई। समिति ने छात्र संगठनों, शिक्षकों तथा संबंधित पक्षों के बयान दर्ज किए और उपलब्ध साक्ष्यों का परीक्षण करने के बाद अपनी विस्तृत रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंप दी।
समिति की रिपोर्ट के बाद विवाद और गहरा गया। इसी दौरान राज्य सरकार के तकनीकी सलाहकार बी.पी. सारस्वत ने भी खुले तौर पर प्रो. मिश्रा के बयान की आलोचना की और इसे विश्वविद्यालय के सर्वोच्च पद पर बैठे व्यक्ति के लिए अनुचित बताया। राजनीतिक और शैक्षणिक दोनों स्तरों पर दबाव बढ़ने के बाद प्रो. सुनीता मिश्रा ने स्वयं कुलगुरू पद से इस्तीफा सौंप दिया। अब राज्यपाल द्वारा इस्तीफा स्वीकार कर लिए जाने के बाद यह मामला औपचारिक रूप से समाप्त माना जा रहा है।
विवाद कैसे शुरू हुआ?
इस पूरे मामले की शुरुआत एक सेमिनार में दिए गए बयान से हुई। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो के 23 सेकंड के अंश में प्रो. मिश्रा को यह कहते सुना गया कि इतिहास को बड़े परिप्रेक्ष्य में देखने की आवश्यकता है और कई राजा-महाराजा और शासकों की चर्चा की जानी चाहिए। इस संदर्भ में उन्होंने औरंगज़ेब को भी एक कुशल प्रशासक बताया था। वीडियो के प्रसार के बाद आरोप लगे कि उन्होंने मेवाड़ के वीर योद्धाओं जैसे महाराणा प्रताप और पृथ्वीराज चौहान के साथ तुलनात्मक रूप से मुगलों का महिमामंडन करने की कोशिश की है।
इस बयान के बाद उदयपुर में तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली। छात्र संगठनों ने प्रदर्शन करते हुए कहा कि विश्वविद्यालय जैसे संस्थान में राष्ट्रनायकों और धर्मनिष्ठ गौरव के विपरीत विचार स्वीकार्य नहीं हैं। विरोध की तीव्रता बढ़ते हुए कई दिनों तक जारी रही और मामला सीधे विश्वविद्यालय प्रशासन एवं राज्य सरकार तक पहुंच गया।
मिश्रा की सफाई
विवाद के बढ़ते स्वरूप के बीच प्रो. सुनीता मिश्रा ने मीडिया को सफाई देते हुए कहा कि उनके बयान को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया है। उन्होंने कहा कि वायरल क्लिप केवल 23 सेकंड की है, जबकि वह पूरा भाषण विषयवस्तु के रूप में शासकों के इतिहास, प्रशासनिक शैली और राजनीतिक परिप्रेक्ष्य पर आधारित था। उनका कहना था कि पूरा संदर्भ हटाकर केवल एक वाक्य को दुर्भावनापूर्ण तरीके से वायरल किया गया, जिससे गलत संदेश गया।
लेकिन विरोध कम नहीं हुआ और छात्र संगठनों ने उनकी सफाई को अस्वीकार करते हुए कहा कि कुलगुरू का पद प्रतिष्ठा, शैक्षणिक नेतृत्व और विचारधारा की जिम्मेदारी के साथ आता है, इसलिए विवादित बयान किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं है।
जांच और इस्तीफा
लगातार उभरते तनाव को देखते हुए राज्य सरकार ने मामले को गंभीरता से लिया और जांच समिति गठित की। समिति की रिपोर्ट में शिकायतों का उल्लेख होने के बाद सुनीता मिश्रा ने दबाव को देखते हुए पद छोड़ने का निर्णय लिया। अब राज्यपाल द्वारा इस्तीफा स्वीकार किए जाने के बाद विश्वविद्यालय के लिए नए कुलगुरू की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू होगी।
यह विवाद एक बार फिर यह सवाल खड़ा करता है कि विश्वविद्यालयों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और ऐतिहासिक विश्लेषण किस सीमा तक स्वीकार्य है और किस स्तर पर इसे संस्थान की नैतिक जिम्मेदारी से जोड़कर परखा जाना चाहिए। शिक्षण संस्थानों में विचार-विमर्श की स्वतंत्रता का महत्व सर्वविदित है, लेकिन सामाजिक और सांस्कृतिक संवेदनशीलताओं के मद्देनज़र शैक्षणिक अभिव्यक्ति का संतुलन भी एक चुनौती बना हुआ है।


