मनीषा शर्मा। राजस्थान के अजमेर जिले में स्थित मशहूर दरगाह शरीफ को लेकर विवाद ने एक नई दिशा ले ली है। हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से दरगाह पर चादर पेश किए जाने को लेकर कोर्ट का रुख किया है। गुप्ता ने अपनी याचिका में प्रधानमंत्री द्वारा चादर भेजने की प्रक्रिया पर रोक लगाने की मांग की है, यह कहते हुए कि इससे चल रहे कानूनी विवाद पर प्रभाव पड़ सकता है।
क्या है मामला?
हिंदू सेना का दावा है कि वर्तमान में मौजूद अजमेर दरगाह, जो ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के रूप में प्रसिद्ध है, मूल रूप से एक शिव मंदिर था। संगठन ने इस दावे के समर्थन में कई कानूनी पहल की हैं और यह मामला अभी अदालत में विचाराधीन है।
हिंदू सेना का कहना है कि जब तक इस विवाद पर अदालत का अंतिम फैसला नहीं आ जाता, तब तक किसी भी सरकारी प्रतिनिधि या प्रधानमंत्री द्वारा चादर चढ़ाने जैसी गतिविधियां चल रहे मामले पर असर डाल सकती हैं। उन्होंने अदालत से आग्रह किया है कि प्रधानमंत्री को इस साल दरगाह पर चादर भेजने से रोका जाए।
अदालत में याचिका दायर
विष्णु गुप्ता ने सिविल जज अजमेर के समक्ष याचिका दायर की है। याचिका में कहा गया है कि प्रधानमंत्री की ओर से चादर भेजने की प्रक्रिया अदालत में विचाराधीन विवाद को प्रभावित कर सकती है और यह न्यायिक निष्पक्षता के खिलाफ होगा। गुप्ता ने यह भी कहा कि सरकार को इस मामले में किसी भी धार्मिक प्रस्तुति से तब तक बचना चाहिए, जब तक कि अदालत कोई अंतिम निर्णय न ले ले।
शनिवार को होगी सुनवाई
इस मामले की सुनवाई शनिवार को सिविल जज अजमेर की अदालत में होगी। हिंदू सेना के इस कदम ने धार्मिक और कानूनी हलकों में चर्चा गर्म कर दी है। यह देखना दिलचस्प होगा कि अदालत इस याचिका पर क्या रुख अपनाती है।
अजमेर दरगाह-मंदिर विवाद का इतिहास
अजमेर दरगाह विवाद लंबे समय से धार्मिक और सामाजिक हलकों में चर्चा का विषय रहा है। हिंदू सेना का दावा है कि यह दरगाह पहले शिव मंदिर था, जिसे बाद में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में बदल दिया गया। संगठन ने इस संबंध में ऐतिहासिक और पुरातात्विक साक्ष्यों का भी हवाला दिया है।
दूसरी ओर, दरगाह के पक्षधर इसे सूफी इस्लाम का एक महत्वपूर्ण केंद्र मानते हैं, जहां हर धर्म और समुदाय के लोग अपनी आस्था प्रकट करने आते हैं।
हिंदू सेना का पक्ष
हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने इस मुद्दे पर कहा कि यह केवल एक धार्मिक स्थल का विवाद नहीं है, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर को बचाने का मामला है। उन्होंने कहा कि जब तक अदालत का अंतिम फैसला नहीं आ जाता, तब तक सरकार को इस मुद्दे पर तटस्थ रहना चाहिए।
सरकारी चादर पर विवाद क्यों?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर साल ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के उर्स के अवसर पर चादर भेजते हैं, जो उनकी सरकार की “सर्वधर्म समभाव” नीति का हिस्सा है। हालांकि, हिंदू सेना का कहना है कि जब यह मामला अदालत में है, तो प्रधानमंत्री द्वारा चादर भेजना विवाद को और बढ़ा सकता है।
धार्मिक और सामाजिक असर
अजमेर दरगाह-मंदिर विवाद ने धार्मिक और सामाजिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा दिया है। जहां एक ओर यह मामला धार्मिक आस्थाओं से जुड़ा है, वहीं दूसरी ओर यह ऐतिहासिक और कानूनी दावों के बीच फंसा हुआ है।
अदालत का फैसला होगा अहम
शनिवार को होने वाली सुनवाई में अदालत इस पर विचार करेगी कि प्रधानमंत्री की ओर से चादर भेजने की प्रक्रिया पर रोक लगाई जाए या नहीं। इस फैसले का असर न केवल इस मामले पर, बल्कि भविष्य में सरकार की धार्मिक गतिविधियों पर भी पड़ सकता है।