शोभना शर्मा। राजस्थान के अजमेर में स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती दरगाह से जुड़ी एक वक्फ संपत्ति का विवाद अब राजस्थान हाईकोर्ट तक पहुंच गया है। हाईकोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करते हुए संबंधित संपत्ति पर यथास्थिति (Status Quo) बनाए रखने के आदेश दिए हैं। अदालत ने निचली अदालत, यानी डीजे कोर्ट के उस फैसले पर भी रोक लगा दी है, जिसमें संपत्ति को वक्फ की बताकर अपीलकर्ता का दावा खारिज किया गया था।
मामले की सुनवाई जस्टिस सुदेश बंसल की एकलपीठ में हुई, जहां अपीलकर्ता मनोहरदास की ओर से अधिवक्ता अविन छंगाणी ने पक्ष रखा।
डीजे कोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर की गई अपील
इस विवाद का केंद्र अजमेर के आशागंज क्षेत्र में स्थित एक संपत्ति है। इससे पहले डीजे कोर्ट ने इस संपत्ति को वक्फ की संपत्ति घोषित करते हुए मनोहरदास की याचिका को खारिज कर दिया था। इसके बाद अपीलकर्ता ने हाईकोर्ट में अपील दायर की और डीजे कोर्ट के फैसले को चुनौती दी।
अपील में कहा गया कि यह संपत्ति अपीलकर्ता के पूर्वजों ने वर्ष 1975 में शहादत अली से रजिस्ट्री के माध्यम से खरीदी थी, और तब से वे इस संपत्ति पर कब्जे में हैं। अपीलकर्ता का दावा है कि वे वैध रूप से संपत्ति के स्वामी हैं और वक्फ बोर्ड या दरगाह को इस संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं है।
दरगाह पक्ष का तर्क: शहादत अली को बेचने का अधिकार नहीं था
दूसरी ओर, दरगाह कमेटी की ओर से यह तर्क दिया गया कि शहादत अली को यह संपत्ति बेचने का कोई अधिकार नहीं था क्योंकि यह संपत्ति दरगाह की वक्फ संपत्ति के अंतर्गत आती है। दरगाह पक्ष ने कहा कि यह संपत्ति धार्मिक उपयोग के लिए निर्धारित है और इस पर किसी निजी व्यक्ति का स्वामित्व नहीं हो सकता।
हालांकि, अपीलकर्ता के अधिवक्ता अविन छंगाणी ने यह दलील दी कि वक्फनामे में इस संपत्ति का कोई उल्लेख नहीं है, और निचली अदालतों ने इस महत्वपूर्ण तथ्य पर ध्यान नहीं दिया। उन्होंने कहा कि रजिस्ट्री वैध रूप से की गई थी, और किसी भी स्तर पर इसे अवैध घोषित नहीं किया गया।
हाईकोर्ट ने दी यथास्थिति बनाए रखने के निर्देश
हाईकोर्ट ने प्राथमिक सुनवाई के बाद माना कि मामला गहन तथ्यों और स्वामित्व से संबंधित है, जिसे विस्तृत सुनवाई में देखा जाना आवश्यक है। इसलिए अदालत ने फिलहाल दोनों पक्षों को यथास्थिति बनाए रखने के निर्देश जारी किए हैं।
इस आदेश के तहत फिलहाल संपत्ति की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं किया जा सकेगा, और दोनों पक्षों को वर्तमान स्थिति बनाए रखनी होगी। कोर्ट अब इस मामले की अगली सुनवाई में विस्तृत रूप से पक्षों के तर्क सुनेगा।
क्या है पूरा विवाद
अजमेर दरगाह और अपीलकर्ता परिवार के बीच यह विवाद पिछले कई वर्षों से चला आ रहा है। अपीलकर्ता का कहना है कि वे संपत्ति के वैध मालिक हैं, जबकि दरगाह कमेटी का दावा है कि यह वक्फ की संपत्ति है, जिसे बेचा नहीं जा सकता।
इस मामले में पहले मजिस्ट्रेट कोर्ट और बाद में डीजे कोर्ट ने दरगाह पक्ष के पक्ष में निर्णय दिया था। अब हाईकोर्ट द्वारा यथास्थिति आदेश दिए जाने से इस मामले पर अंतिम निर्णय आने तक दोनों पक्ष कोई कानूनी या भौतिक कार्रवाई नहीं कर सकेंगे।


