मनीषा शर्मा, अजमेर । राजस्थान के अजमेर में स्थित विश्व प्रसिद्ध ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह एक बार फिर विवादों में आ गई है। दरगाह परिसर में प्राचीन शिव मंदिर होने के दावे को लेकर चल रही कानूनी लड़ाई अब राजस्थान हाईकोर्ट तक पहुँच गई है। दरगाह से जुड़े खादिमों की संस्था अंजुमन सैयद ज़ादगान ने अजमेर की सिविल कोर्ट में इस मामले की सुनवाई पर रोक लगाने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की है।
बुधवार को राजस्थान हाईकोर्ट के जस्टिस विनोद कुमार भारवानी की एकलपीठ में इस मामले पर सुनवाई हुई। अंजुमन कमेटी की ओर से पेश हुए अधिवक्ता आशीष कुमार सिंह और वागीश कुमार सिंह ने तर्क दिया कि प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के तहत देश में किसी भी धार्मिक स्थल की स्थिति को उसी रूप में बरकरार रखने का प्रावधान है, जैसी वह 15 अगस्त 1947 को थी। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस एक्ट को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान स्पष्ट आदेश दिया था कि तब तक देशभर की किसी भी अदालत में इस प्रकार के वाद पर सुनवाई नहीं की जाएगी। कमेटी ने दलील दी कि इसके बावजूद अजमेर सिविल कोर्ट इस मामले की सुनवाई कर रही है, जो कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन है। इसलिए हाईकोर्ट को सिविल कोर्ट की सुनवाई पर तत्काल रोक लगानी चाहिए।
केंद्र सरकार ने जताया विरोध
हाईकोर्ट में केंद्र सरकार की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल आर.डी. रस्तोगी ने अंजुमन कमेटी की याचिका का विरोध किया। उन्होंने कहा कि इस मामले में अंजुमन कमेटी पक्षकार नहीं है, इसलिए उसे इस प्रकार की याचिका दाखिल करने का अधिकार नहीं है। ऐसे में याचिका विचार योग्य नहीं है। कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अगली सुनवाई के लिए एक सप्ताह बाद की तारीख तय की है।
क्या है अजमेर दरगाह विवाद
दरअसल, 25 सितंबर 2024 को हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने अजमेर सिविल कोर्ट में याचिका दायर कर दावा किया था कि ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह परिसर में एक प्राचीन शिव मंदिर मौजूद है। 38 पेज की याचिका में उन्होंने इस दावे को दो साल की रिसर्च और ‘अजमेर: हिस्टॉरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव’ नामक पुस्तक के हवाले से प्रमाणित बताया।
विष्णु गुप्ता ने तीन बिंदुओं के आधार पर अपने दावे को मजबूत किया:
दरगाह के बुलंद दरवाजे की बनावट और नक्काशी हिंदू मंदिरों जैसी है।
दरगाह का ऊपरी स्ट्रक्चर भी मंदिरों की संरचना जैसा प्रतीत होता है।
दरगाह परिसर में पानी और झरनों की उपस्थिति, जो प्राचीन शिव मंदिरों में आमतौर पर होती है।
कोर्ट कार्यवाही का अब तक का घटनाक्रम
27 नवंबर 2024 को याचिकाकर्ता के वकील योगेश सिरोजा ने सिविल कोर्ट में तथ्यों के साथ पक्ष रखा। सिविल कोर्ट ने याचिका को सुनवाई योग्य मानते हुए अजमेर दरगाह कमेटी, अल्पसंख्यक मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को नोटिस जारी कर दिया। इसके बाद से मामला लगातार चर्चा में है। 24 जनवरी को हुई सुनवाई में दरगाह कमेटी ने याचिका को सुनवाई योग्य नहीं मानते हुए कोर्ट से समय मांगा। फिर 1 मार्च को सुनवाई होनी थी, लेकिन बिजयनगर कांड के चलते अजमेर बंद के कारण अदालत की कार्यवाही स्थगित हो गई। अब अगली सुनवाई 19 अप्रैल 2025 को होगी।